हिन्दी साहित्य का वैज्ञानिक दृष्टिकोण

याद रखिए! हिंदी साहित्य को ठोस आधार, उसके वैज्ञानिक दृष्टिकोण से ही प्राप्त हो सकेगा। प्राचीन को साथ लेकर नवीनता का संयोजन करके ही हिंदी साहित्य की रीढ़ को सुदृढ़ बनाया जा सकता है । आने वाला समय विज्ञान का समय है। समय के साथ परिवर्तन स्वीकार करना ही समय के साथ चलने का एक मात्र उपाय है,अन्यथा जिस किसी ने परिवर्तन स्वीकार नहीं किया उसे समय ने समूल नष्ट कर दिया है। इसलिए समय रहते साहित्य में वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपना लिया जाए तो हिंदी साहित्य को अवश्य ही विस्तार प्राप्त होगा।

Dec 2, 2024 - 15:20
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हिन्दी साहित्य का वैज्ञानिक दृष्टिकोण
Scientific
जैसे कि हम सब जानते हैं कि, किसी देश की सभ्यता एवं संस्कृति को जानना हो तो उस देश का साहित्य पढ़ना चाहिए। साहित्यकार अपने अनुभवों से लिखता है। उसने जो देखा महसूस किया, अनुभव किया उसी के अनुरूप उसका लेखन होता है । समय काल के अनुरूप साहित्य का भी निरंतर परिवर्तन होता आया है।
पुराने सड़े-गले प्रारूप को छोड़कर, नवीन पद्धति को स्वीकार करना ही हिंदी साहित्य के लिए श्रेयस्कर होगा। हिंदी साहित्य में वैज्ञानिक दृष्टिकोण को अपनाकर वही नवीन हिंदी साहित्य का प्रादुर्भाव होता है।
हिंदी साहित्य का वैज्ञानिक दृष्टिकोण में मुख्यतः दो बिंदुओं पर चर्चा की जानी चाहिए। एक हिंदी साहित्य और दूसरा वैज्ञानिक दृष्टिकोण।
हिंदी साहित्य का विवरण: हिंदी साहित्य की बात की जाए तो, यह बहुत ही पुराना साहित्य है। वैदिक काल से ही हिंदी साहित्य लिखा जा रहा है। जिसे चार भागों में बांटा गया है। आदिकाल, भक्तिकाल, रीतिकाल और आधुनिक काल। हिंदी साहित्य पर बहुत कुछ लिखा और बोला गया है। कई तरह के साहित्य यहां मौजूद है। सामाजिक, पारिवारिक, धार्मिक नीति-नियम,निर्देश युक्त देश-विदेश, स्त्री विमर्श आदि कई विषयों पर बहुत कुछ लिखा गया है। अब इन्हीं साहित्य को तर्कसम्मत और तथ्य परक लिखें तो साहित्य का यह वैज्ञानिक आधार माना जाता है जिससे, इसकी ना केवल इसकी गुणवत्ता बढ़ती है बल्कि स्वीकार्यता भी कई गुना बढ़ जाती है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण का अर्थ: इस प्रकार वैज्ञानिक दृष्टिकोण का अर्थ यह है कि, जब हम किसी तथ्य का मूल्यांकन कर उसकी सत्यता प्रमाणित करते हैं तो, वह ज्यादा मूल्यवान हो जाती है।
महत्व: साहित्य में केवल कल्पना रच देने से मनोरंजन तो किया जा सकता है, किंतु यदि यथार्थ चित्रण किया जा रहा हो और उस बात का वैज्ञानिक आधार भी मौजूद हो तो, उस साहित्य का महत्व सौ गुना बढ़ जाता है।
उदाहरण; जैसे सामाजिक उत्थान की दृष्टि से अंध विश्वास उन्मूलन पर रचे साहित्य में यदि कोई तथ्य प्रस्तुत करें या प्रयोग प्रस्तुत कर सिद्ध करें,साथ ही विस्तृत जानकारी दें कि, बिना वजह के अंध विश्वास से प्रगति में बाधा उत्पन्न होती है तो, लोगों में जागृति पैदा होने की संभावना बढ़ जाती है । वे अंधविश्वास से होने वाले दुष्प्रभाव को समझतें हैं क्योंकि, तर्कों, तथ्यों पर आधारित साहित्य ज्यादा सार्थक होता है।
स्त्री-शिक्षा की आवश्यकता पर लिखे साहित्य में यदि उसकी महत्ता दर्शाने हेतु कोई तर्क दिया जाए कि, किस तरह स्त्री- शिक्षा से घर-परिवार के साथ-साथ समाज एवं देश भी विकास की और तेजी से अग्रसर होता है एवं आर्थिक स्थिति में भी सुधार आता है। इसका विस्तृत तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत कर स्त्री शिक्षा के महत्व पर प्रकाश डाला जा सकता है।जिससे लोगों में जागरूकता फैले और वे लड़कियों की शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करें। ऐसे हिंदी साहित्य के लेख तार्किक रूप से अपना वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखते हुए लोगों को इस बात की पुष्टि करतें है कि, स्त्री शिक्षा कितनी अनिवार्य है! ऊपर दिए गए उदाहरणों से यह पता चलता है कि, यदि हम वैज्ञानिकता के आधार पर किसी तथ्य को रखते हैं तो, उसकी विश्वसनीयता बढ़ जाती है। देश या सामाज की क्रमिक विकास का आकलन करने हेतु भी साहित्य का सहारा लिया जाता है। समय-समय पर उसकी सांख्यिकीय, गणितीय व्याख्या की जाती है जिससे, सटीक जानकारी उपलब्ध हो सके। साहित्य से उपलब्ध सामग्री का विशेष महत्व इसलिए भी होता है कि साहित्यकार अपने लेख में महत्वपूर्ण जानकारी भी सहेजता जाता है। आध्यात्मिक,भौगोलिक, सामाजिक, शैक्षिक विभिन्न क्षेत्रों पर लिखे साहित्य में मौजूद सामग्री यदि वैज्ञानिक दृष्टिकोण को ध्यान में रखकर लिखी गई हो तो इससे बहुत आसानी से कई क्षेत्रों में क्रांति लाई जा सकती है। किसी युद्ध के समय के साहित्य से युद्ध की विभीषिका का आकलन किया जा सकता है और आने वाले समय में इसकी मदद से युद्ध जैसी परिस्थितियां उत्पन्न होने पर युद्ध के समय और उसके बाद की परिस्थितियों पर नियंत्रण किया जा सकता है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ हिंदी साहित्य के संयोजन के लिए कुछ उपाय-
प्रमाणिकता के साथ साहित्य लेख लिखने के लिए कुछ बिंदुओं को ध्यान में रखा जाना चाहिए जैसे कि:
१) किसी भी साहित्य में तथ्यों को जांच परख करके लिखना चाहिए। इस हेतु लेखक तथ्यों को जिस जगह से भी एकत्रित करता है, उसकी प्रमाणिकता जांच कर ही ,तथ्यों को साहित्य में समाविष्ट करे।
२) आधुनिक काल में गूगल के द्वारा बहुत सारी जानकारी उपलब्ध हो चुकी है। किसी भी लेख को लिखने के पहले उसकी जांच कर लेना अनिवार्य है ताकि किसी भी प्रकार से उसका खंडन ना किया जा सके।
३) प्राचीन पुस्तकालय अथवा प्राचीन लेखों से भी कई तथ्य को लिया जा सकता है। साथ ही इसका साभार उस लेख विशेष को देना अति आवश्यक है।
४) सामाज मे व्याप्त कुरीतियों को हटाने के लिए जरूरी है कि प्रयोगात्मक विधि से सत्यापित लेख लिखें जाएं ।
५) तुलनात्मक अध्ययन के साथ प्रस्तुत किए गए हिंदी साहित्य को समृद्ध किया जा सकता है।
६) विवरण प्रस्तुत करने के लिए वैज्ञानिक आधार को प्रयोग में लाया जा सकता है।
कुल मिलाकर आधुनिक युग में कुछ परिवर्तन को स्वीकार कर यदि हिंदी साहित्य को परिमार्जित किया जाए तो हम हिंदी साहित्य को समृद्ध कर सकेंगे और नए सोपान तय कर सकेंगे। 
सार:
गल्प साहित्य से परे, सार्थक हिंदी साहित्य का विस्तार करने के लिए वैज्ञानिकता को अपनाना, एक सही निर्णय साबित होगा।
जिज्ञासा को शांत करने के लिए मजबूत आधार वैज्ञानिक दृष्टिकोण से ही, पाया जा सकता है।
कैसे, कब, क्यों के उत्तर के साथ प्रमाणिक लेखन ही हिंदी साहित्य को उत्कृष्टता प्रदान करती है।
याद रखिए! हिंदी साहित्य को ठोस आधार,उसके वैज्ञानिक दृष्टिकोण से ही प्राप्त हो सकेगा। प्राचीन को साथ लेकर नवीनता का संयोजन करके ही हिंदी साहित्य की रीढ़ को सुदृढ़ बनाया जा सकता है ।
पल्लवी वर्मा

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