अंग्रेजी ने हमसे क्या छीना है

इस प्रकार हम देखते है कि अंग्रेजी ने हमसे हमारी भाषा का अपनापन छीन लिया है , निज भाषा का अभिमान छीन लिया है , घर घर में बोली जाने वाली बोलियों की मिठास हमसे दूर होने लगी है . लगभग दो शताब्दी पहले थामस बेबिंग्टन उर्फ लॉर्ड मेकाले द्वारा जो कहा गया था

Mar 29, 2024 - 12:06
 0  20
अंग्रेजी ने हमसे क्या छीना है
ENGLISH

प्रतिवर्ष चौदह सितंबर को हम हिंदी दिवस मनाने की औपचारिकता का निर्वहन करते हैं लेकिन अंग्रेजी शब्दों को अपनाने की अनोचारिकता की गति उतनी ही तेजी से बढ़ने लगती है . हिंदी दिवस मनाने से अच्छा है कि अंग्रेजी दिवस मनाया जाए संभव है अंग्रेजी इसी बहाने शायद इस देश के नागरिकों के हृदय से अंग्रेजों की तरह विदा हो जाए . एक भाषा के रूप में उसका सम्मान होना चाहिए उस के माध्यम से ज्ञान प्राप्त करना अच्छी बात है लेकिन उसी प्रकार जैसे विश्व की अन्य भाषाएं होती है चाहे जर्मनी हो जापानी चीनी या फ्रांसीसी आदि . अंग्रेजी ने हमें क्या-क्या दीया यह तो कोई भी बता सकता है जैसे विज्ञान , साहित्य , कला , आईटी , कंप्यूटर , शोध , उद्योग और भी अन्य किसी भी क्षेत्र में विकास करने में अंग्रेजी के योगदान को नकारा नहीं जा सकता . परंतु अंग्रेजी ने हमसे छीना क्या है ? इसके बारे में तो अब हम सोचना नहीं चाहते या सोचने से भी डर लगता है सबसे पहले उन्होंने हमसे हमारे रिश्ते छीन लिए हैं . क्योकि मातृभाषा भी मां के सामान होती है इसलिए सबसे पहले हम मां शब्द के बारे में बात करते हैं . हिंदी या अन्य भारतीय भाषाओं में या जो भी हमारी मातृभाषा है उसमे दिए गए मां शब्द के बारे जैसे हिंदी में मां , मराठी में आई , मलयालम , तमिल , तेलुगु , कन्नड़ में अम्मा , पंजाबी में मांजी , उर्दू में अम्मी , संस्कृत में मातृ , आसामी में मात्री ऐसे हर भारतीय भाषा में मां के बारे में अलग-अलग शब्द मिलेंगे लेकिन अंग्रेजी के मम्मी शब्द ने पूरे भारत में अपना एकाधिकार जमा लिया है गांव खेड़े से लेकर महानगरों तक सर्वमान्य शब्द हो गया है मम्मी . इसी प्रकार पापा शब्द भी पूरे भारत में बच्चों के मुख से निकलकर बेरोकटोक विचरण कर रहा है . अब रिश्तों की बात करें तो अंग्रेजी के अंकल शब्द ने हमसे चाचा को छोड़कर क्योंकि उसे ही अंकल कहते हैं ताऊ , मामा , फूफा सभी में अंकल शब्द अपनाने की प्रतियोगिता चल रही है . उम्मीद है यह शब्द भी मम्मी और पापा की तरह जीत जाएगा और इन सभी संबंधों के लिए सर्वमान्य शब्द अंकल ही धीरे से हमारे जुबान से होकर हमारे मस्तिष्क में प्रवेश कर जाएगा . भले ही आप मनाते रहे हिंदी दिवस और देखिए मौसा शब्द के साथ क्या अत्याचार होता है . अंग्रेजी में आप गूगल में लिखिए मौसा को अंग्रेजी में क्या कहते हैं तो जवाब देखकर आपकी हालत पतली हो जाएगी . उसमें लिखा आएगा wart (वार्ट ) यानी मस्सा वही जो छोटी सी गठान जैसा होता है और शरीर के किसी भी हिस्से में निकल आता है जैसे अंग्रेजी शब्द हमारे भारतीय शरीर पर जगह-जगह निकलने लगे हैं . अब आप कल्पना करें कि पंजाबी में मौसा के लिए मास्सडजी शब्द कितना अपना लगता है खैर यह तो गूगल की समझ का फेर है उसने मौसा को मस्सा समझ लिया . इसी प्रकार अंग्रेजी ने हमसे हमारी चाची , ताई , मामी , मौसी और बुआ को छीन लिया शीघ्र ही यह सब आंटियों बनने ही वाली है इसे कोई रोक नहीं सकता . इसी प्रकार आप किसी भी समाचार पत्र की भाषा पढ़िए उसमें भी हिंदी की जगह अंग्रेजी शब्दों की माया नगरी नजर आएगी और तारीफ तो यह है कि हिंदी के सरल शब्दों को समझाने के लिए भी अंग्रेजी शब्दों का उपयोग बड़े गर्व से होने लगा है . इसी प्रकार टीवी के मनोरंजक चैनल हो या समाचार चैनल उसमें भी यही संक्रमण होने लगा है एक समाचार चेल के भविष्यफल वाले कार्यक्रम में एक ज्योतिषी कह रहे थे कि अमुक राशी वालों की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं रहेगी . सोचिये जब ज्योतिष जैसे विषय को समझाने के लिये भी अंग्रेजी शब्दों का सहारा लेना पड़ता है अन्य विषयों के बारे में क्या होता होगा . रेडियो के एफएम चैनल के उद्घोषक जिसे आजकल आर जे यानि रेडिओ जोकी कहते हैं ह्रदय की गति को बड़ा दे इतनी उच्चतम गति से बोलने वाले या वाली अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग ऐसे करते हैं जैसे घोड़ा दौड़ाने वाला कोई जॉकी अंग्रेजी शब्दों के घोड़ों को इस प्रकार दौड़ा रहा है जैसे अंग्रेजी की एक्सप्रेस ट्रेन हिंदी के छोटे-मोटे स्टेशन पर बिना रुके धड़धड़ाती हुई चली जा रही हो .

इस प्रकार हम देखते है कि अंग्रेजी ने हमसे हमारी भाषा का अपनापन छीन लिया है , निज भाषा का अभिमान छीन लिया है , घर घर में बोली जाने वाली बोलियों की मिठास हमसे दूर होने लगी है . लगभग दो शताब्दी पहले थामस बेबिंग्टन उर्फ लॉर्ड मेकाले द्वारा जो कहा गया था कि अंग्रेजी भाषा के द्वारा भारत में ऐसा वर्ग पैदा हो जाएगा जो ऊपर से भारतीय होगा लेकिन अंदर से पूरा अंग्रेज बन जाएगा . इस प्रकार अंग्रेजी हमसे हमारी भारतीयता छीनने का कोशिश कर रही है. लॉर्ड मेकाले के द्वारा कहे गए वो शब्द प्रत्येक मातृभाषा से प्रेम करने वाले सुपुत्र को जरुर कचोटते थे जिसे झुटलाने के लिए हमारे यहां बहुत पहले अंग्रेजी हटाओ आंदोलन हुआ था अंग्रेजी के नामपट्ट पर कालिख भी पोत दी थी . लेकिन उससे एसा नुकसान हुआ है कि एक भाषा को सही ढंग से सीखने से हम वंचित हो गए थे . जिसकी भरपाई के लिये कुकुरमुत्तों की तरह गली गली में अंग्रेजी माध्यम के स्कूल खुल गए हैं उसमे कितना अंग्रेजी भाषा बच्चे सीखते हैं यह सबको पता है . जैसा कि मनोवैज्ञानिक कहते हैं की जिसकी हम सदैव बुराई करते हैं उसकी बुराई करते-करते कब हम उसके जैसे हो जाते हैं हमें पता ही नहीं चलता है . इसी प्रकार अंग्रेजी की बुराई करते करते हैं हम भी अंग्रेजीमय हो गए हैं लेकिन वह भी आधे अधूरे .

हिंदी के साथ एक और विचित्र बात कही जाती है की हिंदी थोपी जा रही है और जो कहने वाले हैं उन्हें विदेशी भाषा अंग्रेजी से कोई एतराज नहीं है देसी भाषा हिंदी से ऐतराज हो जाता है विदेशी भाषा को सहर्ष सिर पर बिठा सकते हैं बस हिंदी नहीं होना . जबकि हम सबको बात अपनी अपनी मातृभाषा की करना चाहिए जिस प्रकार भारत की अन्य भाषाएं हैं उसी प्रकार हिंदी भी है . अब संपर्क भाषा का जब सवाल आता है तो उस स्थान से अंग्रेजी कितना ही कोशिश कर ले हिंदी को एक इंच भी नहीं हिला सकती क्योंकि देश के अधिकतम नागरिक हिंदी का किसी न किसी रूप में उपयोग करते हैं चाहे पढ़ने में हो लिखने में हो बोलने में हो या सुनकर समझने में तो हो ही जाता है . यही एक बात है जो अंग्रेजी को दूसरा दर्जा दे सकती है . इसलिए समस्त भारतीय मातृ भाषाओं के सुपुत्रों को अपनी अपनी मातृभाषा का उपयोग करके और मिलकर यह प्रयास करना होगा वरना अंग्रेजी अन्य भारतीय भाषाओं का स्थान भी ले लेगी भले ही आप कितने ही हिंदी दिवस मना लें या विश्व हिंदी सम्मलेन कर ले .

अशोक व्यास 

What's Your Reaction?

like

dislike

love

funny

angry

sad

wow