ये केसा तेरा देश है बेटा ?

महानगरों की धकापेल में प्राचीन भारतीय संस्कृती को जीवित रखते हुए सादगी और सच्चाई से रहना कितना मुश्किल था ये किसी से छुपा नहीं था . फिर भी वो अपने माँ बापू को शहरी जनजीवन से भी रूबरू करना चाहता था . यद्यपि उसे मालूम था कि पूना में ना तो रोजाना प्रातः स्नान के लिए कोई नदी बहती थी न ही एक्दम नजदीक में कोई मंदिर था जहाँ बापू रोजाना स्नान ध्यान कर सके .

Mar 30, 2024 - 17:25
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ये केसा तेरा देश है बेटा ?
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और अंतत: रोहित ने बाबूजी और अम्मा को राजी कर ही लिया अपने साथ पूना चलने के लिए दूरदराज देहात में रहने वाले प्रकांड पंडित पक्के कर्मकांडी विद्याधर जोशी जी को सारा गाँव क्या आसपास के ८-१० गाँव के लोग देवता तुल्य मानते थे . उनका ज्ञान उनका सादगी भरा जीवन और अनुशासित दिनचर्या वैदिक काल के ऋषि मुनियों की याद दिलाती थी . प्रातः ४ बजे उठकर गाँव की नदी में स्नान फिर मंदिर में पूजा अर्चना पुरे दो घंटे धार्मिक ग्रंथो का पठन पाठन करना उनकी रोज की दिन चर्या मेँ शामिल था . ग्राम के लोगोँ के लिए सभी प्रकार की पूजा पाठ जन्म मरण विवाह और अन्य सारे धार्मिक कार्यो के उपलब्ध कुशल ज्ञाता थे पंडित जी . एक मात्र बेटे को उच्च शिक्षा दिलाते समय कई बार उन्हें ये विचार आता था कि ये आधुनिक शिक्षा प्राप्त कर उनका बेटा उनके अनुसार शास्त्रों का ज्ञाता बनके धर्माचार्य की पदवी तो नहीं लेगा . फिर भी उन्होंने रोहित को सारे धार्मिक संस्कार दिए थे उसे शिक्षा दी थी सनातनी आचार विचार के अनुसार रहने की . अब रोहित उनके बताये मार्ग पर कितना चल सका था ये सिर्फ रोहित ही जानता था .
रोहित को पूना में आई आई टी की डिग्री लेने के बाद वहीँ एक कम्पनी में उसकी नौकरी भी लग चुकी थी . पुरे चार साल से रोहित की माँ की भी बहुत इच्छा थी कि कुछ दिन बेटे बहु के पास जाकर रहे और रोहित भी चाहता था कि माँ बापू कुछ दिन उसके पास रहे . हालाँकि वो बहुत संशय में भी था कि बाबूजी को वहाँ का शहरी वातावरण और अनुशासन से दूर की दिनचर्या अच्छी लगेगी भी या नहीं ? 

महानगरों की धकापेल में प्राचीन भारतीय संस्कृती को जीवित रखते हुए सादगी और सच्चाई से रहना कितना मुश्किल था ये किसी से छुपा नहीं था . फिर भी वो अपने माँ बापू को शहरी जनजीवन से भी रूबरू करना चाहता था . यद्यपि उसे मालूम था कि पूना में ना तो रोजाना प्रातः स्नान के लिए कोई नदी बहती थी न ही एक्दम नजदीक में कोई मंदिर था जहाँ बापू रोजाना स्नान ध्यान कर सके . विद्याधर जोशी को भी ये सारे संशय दिमाग में घूम रहे थे फिर भी इन सारे अंतर्द्वंदो से गुजर कर सर्वसम्मति से यह निर्णय हुआ की कुछ दिन बाहर की दुनिया भी देखी जाये . बेटे के पास भी रहा जाये . और एक दिन शुभ मुहूर्त देखकर ये पूरा परिवार पूना जाने वाली ट्रेन में सवार हो चूका था .

रात होते-होते गाड़ी पूना पहुंच चुकी थी और जोशी दंपत्ति अपने बेटे के साथ फ्लैट में आ गए थे उनको बेटे का फ्लैट जो रोहित की कम्पनी के आवासिय क्षेत्र मेँ एक सात मंजिला मल्टी मे चौथे माले पर था बड़ा अच्छा लगा . गाँव में कच्चे पक्के मकान गोबर के लीपे आँगन और पतरे की छत के नीचे अपना समय बिताते वहाँ की तुलना में आज बहुत अच्छा लग रहा था .दिन भर के सफर के थके हारे माता पिता के लिए रोहित ने दूसरे बेडरूम में व्यवस्था कर दी थी जहाँ जल्दी ही दोनों सो गए . इधर बेटे ने पत्नी को एक समझाइश दी कि अब तुम थोड़े दिन के लिए मैक्सी या गाउन या जीन्स आदि पहनना बंद कर दो माँ पिताजी को अच्छा नहीं लगेगा .

पत्नी ने घूर कर पति को देखा तुम भी क्या , आजकल तो यह सब कामन हो गया है सभी लोग पहनते हैं .

फिर भी क्या फर्क पड़ता है महीने 20 दिन की तो बात है .

ठीक है तुम कहते हो तो मुझे कोई तकलीफ नहीं है .मैं मैनेज कर लूंगी .

अगले दिन सुबह जहाँ रोहित और उसकी पत्नी अपने दिनचर्या के मुताबिक 7:30 बजे तक सोए रहे थे लेकिन वृद्ध जोशी दंपत्ति सुबह 5:00 बजे ही उठ गए थे रोहित की माताजी किचन में चाय बना रही थी तभी बहू की नींद खुली और उसने बड़े आगृह से बड़े प्रेम से कहा ,माता जी आपने कष्ट क्यों किया मुझे आवाज़ दे देते . 

8 बजते बजते स्नान ध्यान से निवृत हो जोशी जी ने सूर्य को जल चढ़ाने के लिए बेटे से पूछा रोहित बड़े असमंजस में था चौथे माले पर था उनका फ्लैट , जहाँ से कोई खिड़की पुर्व की ओर ऐसी नहीँ खुलती थी जहाँ से सूर्य को देखा जा सके . अब या तो तीन मंजिल नीचे उतर कर सड़क पर खड़े होकर सूर्य को जल चढ़ाया जाए या फिर ऊपर छत जो तीन माले के बाद थी वहाँ चढ़कर छत पर जाकरसूर्य को जल चढ़ाया जाए .

पिताजी आप जल पात्र मुझे दे दे में लीफ्ट से जाकर सूर्य को जल चढ़ा दूंगा आपके पांव में दर्द है तो तीन माले नीचे उतरना या तीन माले ऊपर जाना बहुत मुश्किल रहेगा . 

जोशी जी असमंजस में थे पिछले कई वर्षों से सूर्य को जल चढ़ाने का नियम था उनका वास्तव में उनके शरीर की स्थिति ऐसी नहीं थी कि वह इतने उपर नीचे जाने की मशक्कत कर सके उन्होंने मन ही मन  सूर्य देवता का ध्यान किया और जल पात्र रोहित को दे दिया . अगले 1 घंटे में उन्होंने भगवान की पूजा संपन्न की . ,बेटा तुलसी का पौधा कहाँ है ? जोशी जी ने गैलरी में नजर डालते हुए पूछा पिताजी पौधा था लेकिन अब सूख गया है मैं आज ही बाजार से ले आऊंगा . जोशी जी ने फिर रोहित के चेहरे की और देखा , बेटा तुलसी का पौधा तो हर गृहस्थ के घर में होना चाहिए , हमारे घर में पवित्रता और देवताओं का वास तुलसी से ही होता है .

रोहित ने फिर दोहराया , पिताजी मै आज ही शाम को लेता आऊंगा .

पति पत्नी दोनों ही ऑफिस जाते थे  10 बजते बजते खाना तैयार हो जाता था.

जोशी जी ने खाने पर बैठते ही पहली रोटी गाय के लिए निकाल कर अलग रख दी बेटा यह रोटी गाय को दे देना इसी तरह खाना खाने के बाद आधी रोटी कुत्ते के लिए भी निकाली उसे भी अलग प्लेट में रखते हुए रोहित को बोला गाय और कुत्ते को रोटी दे आ बेटा . रोहित मन ही मन परेशान था | उसे ध्यान था कि कॉलोनी में कोई गाय ना तो है और ना ही कहीं से आती है और इसी तरह कुत्ते भी महानगर पालिका की कृपा से एक भी आवारा कुत्ता कॉलोनी में नहीं था . उसने बहाना बनाते हुए कुत्ते और गाय की रोटी लेकर सात साल के बेटे अंशु को दी अंशु बेटा निचे जा और ये रोटी गाय कुत्ते को दे आ .

अंशु कुछ कहता उसके पहले ही उसे होठों पर चुप रहने का इशारा करते हुए उसे पत्नी के सुपुर्द कर दिया . पत्नी ने दोनों रोटियां अलग-अलग थैली में रख कर किचन में एक और टांग दी . दोपहर भर वृद्ध दंपत्ति आराम करते रहे यद्यपि गाँव के अनुसार उन्हें सहज नहीं लग रहा था फिर भी बेटे और पोते के साथ रहना उन्हे अच्छा लग रहा था . धीमे धीमे रात हुई फिर दिन निकला जोशी जी के स्नान के बाद फिर सूर्य को अर्घ्य देने की बात हुई रोहित ने जल पात्र लेकर ऊपर छत पर जाकर सूर्य देवता को जल चढ़ाया. कल शाम को बाज़ार से लाया गया तुलसी का पौधा गमले में लगा  कर कर गैलरी में रख दिया था . जोशी जी बड़े प्रसन्न हुए तुलसी को जल चढ़ाते हुए वे  बोले बेटा रोहित हर घर में तुलसी का पौधा जरूरी होना चाहिए जिसे रोजाना जल चढ़ाना चाहिए इससे घर में श्री और समृद्धि और शांति बनी रहती है .  रोहित ने फिर यह सब सुना जो वह कल भी सुन चूका था वह समझता था बुजुर्गो को सलाह देने की आदत होती हे उसे कतई बुरा नही लगा .

1 सप्ताह इसी तरह बीता अचानक रोहित को ऑफिस कार्य से कहीं दूर जाना पड़ा बहू ने खाना तैयार कर दिया था , और ऑफिस के लिए निकल गई थी जबकि पोता अंशु घर पर ही था . जोशी दंपत्ति ने खाना खाया . गाय की रोटी और कुत्ते की रोटी अलग अलग निकाली और खाना खाने के पश्चात क्योंकि रोहित नहीं था , जोशी जी ने आज स्वयं नीचे उतर कर गाय व कुत्ते को रोटी देने की सोची . उन्होंने  अंशु को साथ में लिया और लीफ्ट के द्वारा नीचे उतरने लगे अंशु कुछ कुछ समझ रहा था उसने दादा जी से कहा दादाजी गाय और कुत्ते को रोटी में दे आऊंगा , लेकिन जोशी जी नहीं माने . आखिरकार अंशु दादा जी के साथ नीचे आया दादा जी ने नीचे उतर कर चारों ओर नजर दौड़ाई दूर दूर तक कहीं कोई कुत्ता या गाय उन्हें नजर नहीं आ रहे थे. उन्होंने पूछा बेटा यहाँ तो कोई गाय या कुत्ता नहीं दिख रहा है . कुछ देर परेशान रहे वापस ऊपर आए गाय और कुत्ते की रोटी वापस रखी अंशु भी कुछ जवाब नहीं दे पाया शाम को बहु जब ऑफिस से आई तो दादाजी ने तत्काल प्रश्न किया कि बहू नीचे कॉलोनी में तो कोई गाय कुत्ता ही नहीं मिला तुम कहाँ रोटी देते हो रोजाना गाय और कुत्ते की . बहु चौकी , सहमी लेकिन बड़ी चतुराई से तत्काल बहाना बनाया पिताजी यह कहीँ दूर जाकर गाय और कुत्ते को रोटी देकर आते हैं , हमारी कॉलोनी में गाय और कुत्ते कम है कभी-कभार ही मिलते हैं . तो बहू यह रोटी भी जाकर दिलवा देना . दादा जी कुछ कुछ संशय में थे उनकी समझ से बाहर था कि कॉलोनी में गाय और कुत्ते इतनी कठिनाई से मिलते हैं .अगले दो-चार दिन निकले फिर ऐसी स्थिति निर्मित हुई कि रोहित टूर पर था बहू ऑफिस जा चुकी थी और पोता भी स्कूल गया हुआ था . सुबह का का खाना खा चुकने के बाद जोशी जी ने रोजाना के अनुसार दोपहर मेँ आराम किया और शाम को कुछ चहलकदमी करने के लिये एक बार नीचे जाने की हिम्मत की और नीचे जाते हुए गाय और कुत्ते को रोटी देने की भी सोच ली . लेकिन .नीचे उतरकर उन्होंने पूरी गली में घूम के देख लिया कहीं कोई गाय या कुत्ता उन्हें नहीं दिखा अचानक उन्हें एक दीवार पर बहुत बड़ी सूचना बड़े शब्दों में लिखी हुई दिखी कि कॉलोनी में गाय पालना या रखना प्रतिबंधित है . बिना कॉलोनी प्रबंधन की अनुमति के गाय रखने पर जुर्माना एवं उचित कार्रवाई की जाएगी .

जोशी जी चौके ! उन्हें आश्चर्य हुआ यह क्या है ? हम हमारे देश मे हैँ या किसी विदेश मेँ जहाँ गाय पालने पर प्रतिबंध ? गाय को रखने पर जुर्माना यह कैसा नियम है ? यह कैसी बस्ती है ? बड़े उलझन पूर्ण विचारों में घिरे वापस अपने फ्लैट की तरफ चले तभी उन्हें बगल वाले फ्लैट के नीचे वाले निवास पर जाली लगे दरवाजे से कुत्ता दिखा दादाजी खुश हुए और उन्होंने तत्काल जाली के बीच से कुत्ते के हिस्से की रोटी अंदर बढ़ा दी और कुत्ते ने तत्क्षण रोटी लपक ली . चलो कुत्ते के हिस्से की रोटी तो दी . लेकिन कुत्ते को यह रोटी देना जोशी जी को और बेटे रोहित को भारी पड़ा शाम को जैसे ही रोहित घर पहुंच रहा था पड़ोसी ने उसे रोककर जोशी जी द्वारा कुत्ते को रोटी देने की बात कही और अपनी नाराजगी प्रकट कर चेतावनी दी कि भविष्य में  ऐसा ना हो .

रोहित जो दिन भर का थका हारा लंबा टूर पूरा करके आ रहा था बेचैन हो गया उसे समझ नहीं आ रहा था कि किस प्रकार गाँव में रहने वाले माता-पिता को यहाँ के वातावरण के अनुकूल समझाया जाए उन्हे क्या बताया जाये . उसने अपने आप को सहज किया और ऊपर आकर पिता जी से विनम्रतापुर्वक कहा कि आप नीचे पड़ोसी के कुत्ते को अब कभी भी रोटी ना देँ .

"क्यों बेटा कुत्ते को रोटी देने में क्या हुआ"?

पिताजी वह सड़क का आवारा कुत्ता नहीं है .किसी का पालतू कुत्ता है . तो पालतू कुत्ता है तो क्या हुआ ?

हम किसी के पालतू कुत्ते को कुछ भी खाने की चीज नहीं दे सकते . क्योंकि इसमें कुत्ते के मालिक को डर रहता है कि कोई कुछ गलत चीज  ना खिला दे .

जोशी जी को कुछ भी समझ में नहीं आया कि कुत्ते को कोई गलत चीज क्यों खिला देगा ? फिर उन्होंने पूछा अच्छा बेटा यह पालतू कुत्ता है तो गली के सारे कुत्ते कहाँ है ?

पापा यहाँ कॉलोनी में कोई भी आवारा कुत्ता नहीं है कोई होता भी है तो नगरनिगम को सूचना दे दी जाती है वह उसे पकड़कर ले जाते हैं इसलिए यहाँ कुत्ता नहीं मिलेगा आप रोटी अलग रख दिया करें मैं कुछ दूर के इलाके में जाकर कुत्ते को दे आऊंगा .

असमंजस में पड़े जोशी जी ने बेटे के चेहरे को देखा कुछ सोचा फिर पूछा अच्छा बेटा कुत्ते कॉलोनी में नहीं है क्योंकि उन्हे नगरनिगम वाले पकड ले जाते हैँ पर गाय ? गाय क्यों नहीं है ? और मैंने पढ़ा कि गाय को पालना या रखना जुर्म है प्रतिबंधित है जो गाय को पालेगा या रखेगा उस पर जुर्माना किया जाएगा और उस पर कार्यवाही की जायेगी इसका क्या मतलब ? पिता के प्रश्नों से परेशान रोहित ने कहा पिताजी मुझे इसके बारे में कुछ भी नहीं मालूम यह कॉलोनी का नियम है हम यहाँ रहते हैं इसलिए हमको इन नियमों का पालन करना पड़ेगा और वैसे कारण यह बताते हैं कि गायों के रखने से गंदगी होती है सड़कें और वातावरण खराब होता है .

यह कारण सुनकर जोशी जी और विचार में पड़ गए . गायों के रखने से वातावरण खराब होता है यह तो मैंने जीवन में आज सुना है बेटा . हम भारत देश मेँ रहते हैँ जहाँ गाय की पूजा होती है हमारे धर्म मेँ गाय पालने का उसे रोटी और चारा खिलाने का बहुत पुण्य माना गया है इस कॉलोनी में रहते कौन लोग हैं यह तो बता ?

पिताजी सब तरह के लोग रहते हैं . 

तो उन्हें गाय और कुत्ते को रोटी देने की जरूरत नहीं पड़ती है ?

अब रोहित कैसे बताता पिताजी को कि यहां पर भी रहने वाले सभी लोग सभ्य समाज के हैं लेकिन यहाँ कोई सूर्य को अर्घ्य देने वाला नहीं है या तुलसी के पौधे को जल चढ़ाना बहुत आवश्यक नहीं है या कुत्ते की रोटी अथवा गाय की रोटी निकाल कर उसे देने वाले लोग शायद ही कोई होँ और किसी के पालतू कुत्ते को कुछ खिलाना अपराध है और कॉलोनी के नियम के अनुसार गाय पालना या रखना भी प्रतिबंधित है और जुर्माने के योग्य है यह सारी बातें तर्क करने पर विचार करने पर जरूर विचित्र लगे किंतु यह सारी बातें शहरोँ के दैनिक जीवन में सामान्य ढंग से हो रही है . रोहित को ध्यान आया पिछले 7 दिनों से दो अलग-अलग थैलियों में गाय और कुत्ते की रोटी इकट्ठी हो रही है उसे कुछ अपराध बोध हुआ उसने पत्नी से बोला दोनों थैलियाँ मुझे दो में गाय कुत्ते को ढूँढ कर उन्हें रोटियाँ खिला कर आता हूँ पत्नी से रोटियों की थैलियाँ लेकर रोहित निकला गाय और कुत्ते को खोजने . लगभग पांच सात किलोमीटर जाने के बाद रोहित को सड़क के कुत्ते भी दिखे और गाय भी दिखी दोनों को लाई हुई रोटीयाँ खिलाकर अपने आप में संतुष्ट हुआ रोहित . उसका अपराध बोध कुछ कम हुआ .

इधर जोशी जी बड़े परेशान से थे रात में अपनी पत्नी से चर्चा करने लगे भई हम लोग तो यहाँ ज्यादा दिन नहीं रह पाएंगे . बड़ा अजीब देश है ये  यहाँ सूर्य को अर्घ देना मुश्किल , तुलसी कापौधा नहीं , गाय कुत्ते को रोटी देने जाओ तो गाय कुत्ते ही नहीं मिलते हैं .शनिवार के दिन कोई माँगने वाला या दान दक्षिणा लेने वाला कोई भी नहीं . तो ऐसे कैसे धर्म-कर्म होता होगा . लोग यहाँ कैसे जिंदा है बिना इन सब बातों के यह तो अपना समाज और अपनी संस्कृति नहीं है . पत्नी ने समझाईश दी अपने गाँव के देहात के नियम अलग होते हैं और शहर के नियम अलग होते हैं आप परेशान मत रहो .

गाँव हो या शहर इंसान तो इंसान हैं धर्म-कर्म तो सभी का एक जैसा होता है . खैर हमें क्या करना है . हमें आठ-पंद्रह दिन और रहना है फिर अपना गाँव भला और अपन भले . पत्नी ने समझाया अभी तो 10 दिन हुए हैं . श्राद्ध पक्ष आ रहा है उसके बाद हम अपने गाँव चल चलेंगे . जोशी जी को अचानक ध्यान आया अरे भाई श्राद्ध पक्ष में तो बड़ी तकलीफ रहेगी . क्यों ?

एक तो गाँव वाले हमको बहुत याद करेंगे श्राद्ध पक्ष में भोजन के लिए , दूसरे यहाँ जो हम को बुलाएंगे वह लोग क्या है ? कैसे हैँ ? उनका रहन-सहन उनका खानपान कैसा है हमेँ पता नहीँ हमें उनके यहाँ भोजन के लिए जाना चाहिए या नहीं ?

सब हो जाएगा तुम चिंता मत करो .

ठीक है तुम कहती हो तो पिताश्री का श्राद्ध सप्तमी के दिन आ रहा है उसे संपन्न करके हम गाँव जाने की सोचेंगे .

इसी तरह असमंजस पूर्ण दिनचर्या के चलते श्राद्ध पक्ष के सात दिन बित गए . सप्तमी तिथि कल ही थी . जोशी जी आश्चर्य में थे कि इन 7 दिनों में उन्हें कहीं से भी भोजन का कोई निमंत्रण नहीं आया . यद्यपि पत्नी ने उन्हें अच्छे से समझा दिया था कि ,किसको मालूम है कि इस घर में ब्राह्मण देवता जोशी जी पधारे हुए हैं इसलिए कोई कैसे बुलाएगा ? बेटे रोहित ने भी बताया कि पिताजी यहाँ ऐसा कोई ज्यादा चलन नहीं है भोजन करने बुलाने का या जाने का .

इस बात पर तो जोशी जी नाराज हो गए , बेटा श्राद्ध पक्ष या पितरों को आव्हान करना यह कोई चलन या शौक वाली बात नहीं है यह तो धर्म वाली बात है हमारे कर्तव्य की बात है कि हम पितरों को संतुष्ट रखेँ तो उनके आशीर्वाद से हमारे घर में सुख शांति धन वैभव बना रहता है .  क्या यहाँ के लोग श्राद्ध को भी नहीं मानते .

मानते तो है पिताजी लेकिन किसी को श्राद्ध पक्ष में खाना खाने बुलाना सरल नहीं है अधिकाँश लोग श्राद्ध का भोजन नहीं पसंद करते . क्यों ?

अब इस क्यों का जवाब क्या देता रोहित   . “  लोगों को पसंद नहीं है पिता जी श्राद्ध का भोजन.”

बेटा ये  पसंद की चीज नहीं है , यह ब्राह्मण का धर्म है . श्राद्ध पक्ष में पितरों के निमित्त भोजन करना कोई भी ब्राह्मण कैसे इस बात से इंकार कर सकता है ?

पिताजी यह सब ग्राम देहातों में ही सरलता से संभव है . यहां मुश्किल पड़ती है अब समय बदल चुका है , लोग बदल गए हैं .

तो क्या हमारी संस्कृति , हमारा धर्म , हमारे रिती रिवाज ही बदल गए  . अच्छा चलो इन को छोड़ो कल पिताजी का श्राद्ध है किनको किनको बुलाया तूने ?

पिताजी सोचना पड़ेगा .

सोचना पड़ेगा मतलब ?

हाँ किसको बुलाएंगे ? कौन आएगा ? क्योंकि मेरे ऑफिस के परिचित लोग तो बहुत दूर रहते हैं नीचे कॉलोनी वालों के बारे में मैं ज्यादा जानता नहीं . हमारी मल्टी में इस फ्लोर वालों से मेरी दोस्ती है इन 5 फ्लैट में दो ब्राह्मण हैं जिसमें एक शर्मा जी तो कहीं आते-जाते नहीं दूसरे उपाध्याय जी हैं उनसे मैं बोलता हूँ .

आश्चर्यचकित जोशी जी रोहित से ब्राह्मणोँ की उपलब्धता का यह बखान सुनकर अवाक रह गये . बेटा तो हर साल क्या करता है ? श्राद्ध पक्ष में किन को भोजन करवाता है ? हमारे गाँव में तो किसी के भी यहाँ  श्राद्ध हो 5-7 लोगों को बुलाना तो आम बात है जिसमें ब्राह्मण भी होते हैं और रिश्तेदार भी होते हैं .

 पिताजी यहाँ तो एक ब्राह्मण भी मिल जाए तो गनीमत है .

अच्छा बेटा पिछले दो सालों में तूने किनको बुलाया था ?

रोहित को लग रहा था पिताजी के सामने उसकी सारी पोल खुल रही हे सारी लापरवाही उजागर हो रही है . लेकिन वो करता भी क्या यहाँ कैसे संभव है ये सब नियम का पालन करना और ज्यादातर लोग कहाँ करते ये सब .हैं .""पिताजी मैं तो पिछले दोनों सालों में मंदिर के पुजारी को श्राद्ध के भोजन लिए दो सौ दे देता था "

"मतलब तू ने 2 साल से पितरों को उनका भोज्य दान नहीं दिया ? उन्हें भूखा प्यासा ही रखा ?" पिताजी अब यहाँ तो यह सब ..........

बेटा बिना उनको संतुष्ट किए हम भी सुखी संपन्न नहीं रह सकते . चलो अब प्रायश्चित करेंगे . तुम ऐसा करो ...... कम से कम 5 ब्राह्मणों को कल आने के लिए बोल दो . .

पिताजी 5 तो बहुत मुश्किल है . मैँ एक उपाध्याय जी को राजी करने की कोशिश करता हूँ. और रोहित ने ऑफिस जाते समय उपाध्याय जी के पास जाकर निवेदन किया श्राद्ध पक्ष के भोजन का उपाध्याय जी का वैसा ही जवाब था यार आजकल मैँ श्राद्ध पक्ष में भोजन करने नहीं जाता . रोहित ने पुनः आगृह किया उपाध्याय जी मैं ज्यादा आग्रह नहीं करता लेकिन पिताजी हैं जो मानने को तैयार नहीं है प्लीज मेरी समस्या को दूर करो . श्राद्ध पक्ष के ब्राह्मण की तरह नहीं पर मेरे एक दोस्त की तरह ही भोजन करने आ जाओ .

ठीक है रोहित भाई ऐसा है तो मैं आ जाऊंगा. उपाध्याय जी ने अपनी सहमति दी रोहित खुश हुआ उसने पिताजी को बता भी दिया कि एक ब्राह्मण तो आ रहे हैं बाकी हम मंदिर में जो भी दान देना होगा दे देंगे .

मन में सोचते जोशी जी ने जो भी हो पा रहा है उसी में संतोष करते हुए  कल की तैयारी शाम को ही कर डाली . बड़े सवेरे उठ बैठे .स्नान ध्यान किया अपने स्वर्गीय पिता का फोटो पूजा स्थल पर रखा रामायण पाठ किया . उधर किचन में भी रसोई तैयार हो रही थी बेटे को रात को ही स्पष्ट कर दिया था कि दादा जी को श्राद्ध की पूरी प्रक्रिया पूरी करने के बाद ही ऑफिस जाना होगा . पिछले वर्षों तो दोनों पति-पत्नी 10:30 बजे तक आफीस के लिए निकल जाते थे किंतु आज दोनों को ऑफिस से छुट्टी लेना पड़ी . 10 बजते बजते सारी तैयारियाँ पूजा- पाठ हो गई थी दादा जी ने अपने स्वर्गीय पिता के लिए अग्नि में आहुति दी   रोहित उपाध्याय जी को बुलाने जाने लगा तभी जोशी जी ने रोहित से कहा तुम गाय और कुत्तों की रोटी दे कर आओ तब तक मैं पितरों के लिए भोजन देने ऊपर छत पर जाकर कव्वों को बुलाता हूं और वे पितरों का ग्रास थाली में निकालते हुए कौवा को खिलाने के लिए छत पर जाने लगे रोहित ने कहा पिताजी कव्वे होंगे क्या वहाँ ? जोशी जी मुस्कुराए बोले बेटा यही तो चमत्कार है तू देखना मैं एक आवाज लगाऊगा और ढेर सारे कव्वे जाने कहाँ से चले आएंगे गाँव में हमारी छत पर ढेरों कव्वे इकट्ठे हो जाते थे .  संशय की स्थिति में डूबे रोहित ने कहा पिताजी आप यहीं बैठे .कोव्वों को ग्रास में खिला कर आता हूं लेकिन जोशी जी नहीं माने बेटा यह कार्य तो मुझे ही करना पड़ेगा अपने पिता के लिए . विवश होकर रोहित को पिता के साथ छत पर जाना पडा . रोहित ने आसमान की ओर देखा अभी तो उपर आसमान मेँ दूर दूर तक कोई कौआ नजर नहीँ आ रहा था  लेकिन जोशी जी को विश्वास था कि जैसे ही काँव-काँव की ध्वनि से कौव्वों को याद किया जाएगा चले आएंगे सब , क्योंकि यह कव्वे ही पितरों के वाहक होते हैं इन्हीं के द्वारा पितरों के हिस्से का भोजन पहुंचाया जाता है और उन्हें प्राप्त होता हैं .

जोशी जी ने हाथ में कुछ भोजन का अंश लिया और आकाश की ओर मूँह करके कांव कांव कांव कांव करते हुए कोव्वों को आमंत्रित करने लगे . कुछ क्षण रुके फिर आवाज लगाई काँव काँव काँव जोशी जी के अनुसार अब तक तो कोव्वों को आ जाना था लेकिन किसी भी ओर से कोई कव्वा आता नहीं नज़र आया . उनकी नजर रोहित पर पड़ी जो सहमा हुआ सा खड़ा था जिसे अंदेशा था कि ऐसा भी हो सकता है कि एक भी कव्वा ना आये उसे अनुमान था क्योंकि आजकल कोव्वे कहाँ दिखते हैं और कव्वे ही क्या चिड़ियाँ या अन्य पक्षी भी इक्का-दुक्का ही नजर आते हैं .

क्यों रे रोहित यहाँ तो अभी तक कोई कव्वा नहीं आया ?

पिताजी आजकल कव्वे भी बहुत कम हो गए हैं .

अरे ऐसा कैसे हो सकता है ? श्राद्ध पक्ष में कव्वे नहीं आएंगे तो पितरों को ग्रास ग्रहण कैसे होगा श्राद्ध कर्म पूर्ण कैसे होगा ,पितरों को उनका भाग कैसे मिलेगा ?

लेकिन पिताजी हम पितरों के नाम की आहुति अग्नि को समर्पित कर चुके हैं वह पर्याप्त है . नहीं बेटा अग्नि में आहुति देना अलग बात है वह प्रतिकात्मक होती है . लेकिन भौतिक रूप से तो ये कव्वे ही पितरों के वाहक हैं कहते हुए जोशी जी ने फिर आवाज लगाई कांव-कांव कांव- कांव लेकिन कोई असर नहीं हुआ दूर-दूर तक कोई कव्वा नहीं दिखा हाँ दूर कहीं छत की डोली पर दो-तीन चिड़िया जरूर चहकती हुई मिली . बेटे ने कहा पिताजी इन चिड़ियों को ही खिला देते
हैं .

जोशी जी नाराज हो गए बेटा तू कैसी नास्तिक जैसी बात कर रहा है . जो शास्त्र में विधान है वही तो उचित होता है . बेटा परेशान था 11:00 बजने जा रहे थे . उसे ऑफिस भी जाना था नीचे उपाध्याय जी इंतजार कर रहे थे खाने पर बुलाने का . और थक हारकर निराश होकर जोशी जी किंकर्तव्यविमूढ़ स्थिति में बोले अब क्या करना हमारा भोजन नहीं मिलेगा पितरों को और वे भूखे ही रहेंगे . बेटा भी चुप था . क्या जवाब देता क्या उपाय सुझाता . ऐसा कर तू कुत्ते और गाय को तो उनका भाग दे के आ तब तक मैं  कोशिश कर लेता हूं नहीं तो फिर.....? रोहित समझ रहा था गाय और कुत्ते को रोटी देने जाना मतलब कम से कम आधा घंटा और . तत्काल रोहित ने नीचे आकर माता जी को सब बताया और कहा माँ सबको देर हो रही है कव्वे अब नहीं आने वाले .

जोशी जी की पत्नी ने धीरे-धीरे ऊपर जाकर काँव काँव करते पंडित जी को समझाया , आप ही कहते हो ना कि धर्म और अधर्म देश काल समय परिस्थिती के अनुसार होता है . समय और स्थिति से प्रभावित होता है ,तो अब नीचे चलो यहाँ कव्वे नहीं आएंगे . विवश पंडित जी नीचे उतरे कव्वों के लिए निकाला गया निर्धारित हिस्सा अलग थाली में रख दिया गया  तब तक बेटा वापस आ गया था . उसने बड़े विश्वास और हर्षित होकर कहा पिताजी रास्ते में एक बगीचा और नदी थी वहाँ कुछ कव्वे मुझे दिखे हैं मैं ऑफिस जाते समय यह उन को खिला दूँगा . लेकिन बेटा पितरों को तो पहले खिलाना चाहिये .

प्लीज पिताजी बहुत देर हो चुकी है उपाध्याय जी भी इंतजार कर रहे हैं माँ खाना लगाओ और रोहित बिना पिता की प्रतिक्रिया का इंतजार किए उपाध्याय जी को बुला लाया .

जोशी जी बड़े बेमन से भोजन पर बैठे . लेकिन उपाध्याय जी को देखते ही उनका आलोचनात्मक दिमाग फिर चलने लगा . उपाध्याय जी आप तो ब्राह्मण है ना तो आपकी दिनचर्या धर्म-कर्म पूजा-पाठ आदि कैसे होती होगी ?

क्यों ऐसी तो कोई बात नहीं .

अरे उपाध्याय जी यहाँ सूर्य को नमस्कार करना है या जल चढ़ाना है तो सूर्य के दर्शन नहीं होते , तुलसी को जल चढ़ाना नहीं होता है एक छोटे से गमले में पौधा लगा है .. गाय की रोटी किसको देना गाय नहीं है , खाना खाने के बाद कुत्ते की रोटी देने को कुत्ता नहीं है | किसी याचक को या ब्राह्मण को कुछ अन्न दान देना तो कहीं दूर-दूर तक कोई मांगने वाला नहीं है और हाँ अब श्राद्ध पक्ष आया तो यहाँ पितरों का भाग ग्रहण करने वाले कव्वे तक नहीं है मुझे तो बड़ी मुश्किल से एकाध चिड़िया मिली . यह कैसा शहर है ? इंसान ही इंसान है और किसी पशु पक्षी को रहने का कोई अधिकार नहीं है . गाय को पालने पर जुर्माना देने की चेतावनी लिखी हुई है . उपाध्याय जी चुप थे क्या बोलते . बेटा भी चुप था उन्हें लग तो रहा था कि जोशी जी सारी बात सही कर रहे हैं . लेकिन उन्होंने कभी इन बातों पर ध्यान ही नहीं दिया था कि यहां गाय या कुत्ते या कव्वे या अन्य पशु पक्षी बहुत कम दिखते हैं . हम सिर्फ इंसानों के बारे में ही सोच रहे हैं . अपना ही स्वार्थ पूरा कर रहे हैं हम सबसे अलग होते जा रहे हैं हमें सिर्फ अपने अस्तित्व की चिंता है . इन्हीँ विचारणीय समस्या ग्रस्त झंझाबातों के बीच उपाध्याय जी भोजन कर चले गए .बेटे ने पत्नी से कव्वों को खिलाने वाले भोजन की थैली ली और दौड़ पड़ा ऑफिस की ओर . इधर अपने कमरे में आराम करते जोशी जी पत्नी से कह रहे थे देखो भाई अब हम
यहाँ दो-चार दिन से ज्यादा नहीं रहेंगे . सर्व पितृ अमावस्या के पहले गाँव पहूँच जाएंगे .वहाँ बाकायदा फिर श्राद्ध करेंगे पितरों को संतुष्ट करेंगे और अपनी सही दिनचर्या फिर से शुरू करेंगे. पत्नी क्या कहती ?

उसे जोशी जी का धर्म कर्म और नियम पूर्ण जीवन भी गलत नहीं लग रहा था और महानगर में रहते हुए जीवन की विषमताओं से संघर्षरत रहते हुए अपने अस्तित्व को स्थापित करने के प्रयास में लगे बेटे बहू भी गलत नहीं लग रहे थे . उसने कुच्छ भी सोचना बंद कर दिया क्योंकि कोई समाधान सामने नहीं था .

 महेश शर्मा 

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