Hindi Poetry | हद
पौधों पत्तो फूलों को लगाया था मैंने आंगन बगिया को सजाया था मैंने
पौधों पत्तो फूलों को लगाया था मैंने
आंगन बगिया को सजाया था मैंने
मौसम आता था फूल खिलते थे
झर जाते थे
मर्ज़ी के मालिक थे यौवन में इठलाते थे
पत्ते भी आते थे मौसम की शह पा कर
बेतरतीब बढ़ते थे फूलों को ढक लेते थे
उनकी हठधर्मी मुझ से सही न जाती थी
मेरी कैंची अक्सर उन पर चल जाती थी
पत्तों को भी एक जगह थी, मैं जानता था
वे भी ज़रुरी थे बगिया में मैं मानता था
पर फूलो से मुकाबिल हों मुझे मंज़ूर न था
हद से बड़ जाना उनका बाशऊर न था
औकात से ऊपर निकलेगा कट जायेगा
हद में रहेगा जो साधो वही जी पायेगा
ब्रिगेडियर प्रेम लाल गुप्त
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