साहित्य जगत के सशक्त हस्ताक्षर गिरिराज किशोर एक प्रख्यात साहित्यकार - जिन्होंने साहित्य की हर विधा में अपनी कलम को चलाया। वे सिर्फ एक उपन्यासकार ही नहीं थे अपितु एक सशक्त कहानीाकर, नाटककार और आलोचक भी थे। इतना ही उन्होंने समसामायिक विषयों पर आलेख भी लिखे, जिन्हें विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के पृष्ठों पर अंकित हुए। आपका जन्म ८ जुलाई १९३७ को उत्तर प्रदेश के मुज़्ज़फरनगर में एक जमींदार परिवार में हुआ था। लेखन में उनकी रूचि कम उम्र में दिखने लगी थी। उसके लिए वह घर से दूर जाकर अपनी रूचि के अनुसार लेखन कार्य करने लगे थे।
अपनी आरंभिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंने १९६० में आगरा के समाज विज्ञानं संस्थान से सोशल वर्क में पढाई की। १९६०-६४ तक वे उत्तर प्रदेश के सेवायोजन विभाग में सेवायोजन अधिकारी के पद पर कार्यरत रहे। उसके बाद उन्होंने १९६६ तक इलाहाबाद आकर स्वतन्त्र लेखन शुरू कर दिया। वह समसामयिक विषयों पर आलेख लिखते रहे और उनकी विचारोत्तेजक शैली से वे इस कार्य में भी एक समर्पित रचनाकार सिद्ध हुए।
१९६६-१९७५ तक वे कानपुर विश्वविद्यालय में सहायक एवं उप कुलसचिव के पद पर कार्य करते रहे। १९७५-८३ तक आईआईटी कानपुर में कुलसचिव रहे।
१९८३ में ही उन्होंने आईआईटी कानपुर में `रचनात्मक लेखन एवं प्रकाशन केंद्र' (हिंदी प्रकोष्ठ) की स्थापना की, इसकी पहल उनके द्वारा ही की गयी और अंग्रेजी में जीने वाले संस्थान में हिंदी को शासकीय स्तर पर महत्व प्रदान किया जाने लगा। इसके तत्त्वाधान में हिंदी माह के अंतर्गत विभिन्न प्रतियोगिताएं हिंदी के लिए आयोजित की जाने लगी थी। जिससे वहाँ के कर्मचारियों की साहित्यिक अभिरुचियों के लिए अभिव्यक्ति का मार्ग प्रशस्त हुआ। उनके कार्यकाल में मैं भी आइआइटी कानपुर के कंप्यूटर साइंस विभाग में मशीन अनुवाद परियोजना में रिसर्च एसोसिएट रही थी और उनसे कई बार मुलाकात भी हुई और वे लेखन कार्य को प्रोत्साहन भी देते रहे। जुलाई १९९७ में उन्होंने वहाँ से अवकाश ग्रहण किया।
वे साहित्य अकादमी नई दिल्ली की कार्यकारिणी के सदस्य भी रहे। रेलवे बोर्ड के हिंदी सलाहकार समिति के सदस्य भी रहे।
गिरिराज जी बहुआयामी प्रतिभा सम्पन्न साहित्यकार थे सर्वाधिक ख्याति उन्हें अपने उपन्यास `पहला गिरमिटिया' से ही प्राप्त हुई थी। ये उपन्यास गाँधीजी के दक्षिण अप्रâीका में संघर्ष की कहानी को दर्शाता है। यह एक महाकाव्यात्मक उपन्यास है। वे गाँधीवादी विचारधारा से प्रभावित थे।
१९९२ में उनके बहुचर्चित उपन्यास `ढाई घर' के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसकी कहानी बहुत ही शानदार थी, जिसमें एक जमींदार के अंग्रेजी शासन काल से लेकर स्वतंत्रता के बाद तक के काल की कहानी है, जिसमें जीवन के विभिन्न पहलुओं में होने वाले परिवर्तन को दिखाया गया है।
लेखक की शुरुआती दौर में लिखी गयी किसी मशहूर कृति के प्रभाव से बाद की रचनायें निकल नहीं पातीं। गिरिराज जी का लेखन इसका अपवाद है और इनकी हर नयी रचना का क़द पिछली रचना से के क़द से ऊंचा होता गया। अपनी सौम्यता और सौजन्यता से परिपूर्ण गिरिराज जी मानते थे - सख्त से सख्त बात शिष्टाचार के घेरे में रहकर भी कही जा सकती है। हम लेखक हैं। शब्द ही हमारा जीवन है और हमारी शक्ति भी। उसको बढ़ा सकें तो बढ़ायें, कम न करें। भाषा बड़ी से बड़ी गलाजत ढंक लेती है।
२००७ में भारत सरकार के द्वारा साहित्य एवं शिक्षा के लिए आपको `पद्मश्री सम्मान' से सम्मानित किया गया। इसके अतिरिक्त प्रादेशिक सम्मान से भी उनको उत्तर प्रदेश के `भारतेन्दु पुरस्कार' से उनके नाटक पर नवाजा गया। मध्य प्रदेश साहित्य परिषद द्वारा वीरसिंह देव पुरस्कार से `परिशिष्ट' उपन्यास पर, उत्तर प्रदेश हिंदी सम्मेलन के वासुदेव सिंह स्वर्ण पदक, `ढाई घर' के लिए हिंदी संस्थान के साहित्य भूषण पुरस्कार से सम्मानित किये गए।, `भारतीय भाषा परिषद् का `शतदल सम्मान' , `पहला गिरमिटिया' उपन्यास पर `के.के. बिरला फॉउंडेशन' द्वारा व्यास सम्मान और `जे एन यू' में आयोजित `सत्याग्रह शताब्दी विश्व सम्म्मेलन' में सम्मानित किया गया।
वर्ष १९९८-९९ तक संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार ने गिरिराज किशोर को `एमेरिट्स फैलोशिप' दी। २००२ में `छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय, कानपुर द्वारा डी. लिट. की मानद् उपाधि दी गयी। भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, राष्ट्रपति निवास, शिमला में मई १९९९-२००१ तक फैलो रहे।
आमतौर पर किसी भी साहित्यकार की सबसे लोकप्रिय कृति इतनी ऊंचे स्थान पर पहुँच जाती है कि बाद की रचनाएँ उसको सामने अपने स्वरूप और लोकप्रियता के लिए उसकी तुलना में उतनी ऊँचाई नहीं ले पाती है लेकिन आपकी हर रचना अपने स्तर को और अधिक ऊँचाई तक पहुँचती रही। उन्होंने अपने लेखन की पूँजी में १५ उपन्यास, ११ कहानी संग्रह, ६ नाटक और ७ लेख और निबंध हैं। उन्होंने ने बच्चों के लिए भी लघुनाटक लिखा। गिरिराज जी का निधन कानपुर में ९ फरवरी २०२० को हुआ।
रेखा श्रीवास्तव
कानपुर,उत्तर प्रदेश