सूद के रूपये

सीताराम बाबू के यहां 25 वर्ष की लड़की है लेकिन किसी को बुरा नहीं लगता । कोई उनसे जाकर नहीं कहता, कहेगा भी तो कैसे ? वह तो ऊंची जाति के लोग हैं । उनकी बेटी शहर में रहती है और पढ़ती है, लेकिन हम लोग गरीब हैं, गंदे हैं, नीची जाति के इसलिए लोग हम पर उंगली उठाने से नहीं चूकते। लेकिन ललमटिया का क्या दोष ? उसने कोई अपराध तो किया नहीं । क्या वह अपराधी है , जो इस उम्र में ससुराल भेज दूं?

Mar 14, 2024 - 17:18
Mar 15, 2024 - 15:17
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सूद के रूपये
money

गांव का एक गरीब किसान था हरिहर।
मां बाप ने उसके जीने के लिए सिर्फ एक झोपड़ी भर ही छोड़ी थी । हरिहर का बाप राघवा गांव के किसी धनी व्यक्ति का हल चलाता था । और उसकी बेटी ललमटिया के साथ उसकी पत्नी गोमती उसके साथ ही रहती थी। जीविका के नाम पर दो-चार सूअर पाल रखे थे। रोज सवेरे सवेरे उठकर वह अपने सूअरों को लेकर चराने निकल पड़ता था । एक दो घंटा उन्हें इधर-उधर घुमा कर जल्दी जल्दी लौट आता था । कभी कभी  उसकी बेटी ललमटिया सूअरों को चराने के लिए निकल पड़ती । खेती बारी के दिनों में वह मुंह में कुछ डाल कर मालिक के दरवाजे पर जा पहुंचता । बैलों की जोड़ी को रस्से से खोलकर उसे हांकते हुए हरिहर अपने कंधे पर हल और जुगाड़ उठाए गुनगुनाते हुए जाने लगता । खेतों में हल चलाते जाने के समय वह एक छड़ी जो उसके बैलों को हांकने के काम आती कंधे पर एक करहल को रोके रहता है । सिर पर एक पगड़ी और कमर पर एक धोती होती थी ।

शरीर का शेष भाग तो नंगा ही रहता था । धूप और बरसात से भी उसे कोई विशेष परवाह नहीं होती । दोपहर होते-होते पांच सात कट्ठा जमीन जोत कर वह खेती के लायक बना देता और बैलों को खोल कर घर लौट जाता । घर जाते हैं कड़ी मेहनत की थकान से उस पर हावी हो जाती और वह खा पीकर थोड़ा सा आराम करने लगता ।

आषाढ़ के दिन आ गए ।

खेतों में रोपनी का कार्य शुरू हो गया । आज भी वह खेतों में कड़ी मेहनत करके घर लौटा था । पिछले दो दिनों से लगातार बारिश हो रही थी । उसकी फूस की झोपड़ी पानी में पूरी तरह भींग चुकी थी । बर्षा बीच बीच में जैसे तेज हो जाती झोपड़ी से पानी टपकने लगता । झोपड़ी में ऐसी कोई जगह नहीं थी जहां सर छुपाया जा सकता। रात में भी पानी बरसता ही रहा । कभी इधर कभी उधर सोती हरिहर और गोमती दोनों खामोश थे । चाह कर के भी कुछ नहीं कर सकते थे।

बारिश थमी नहीं । पिछली रातों को सो नहीं पाने के कारण ललमटिया नींद से बिलबिला रही थी ।
वह बोली मां मैं सुखना चाचा के बरामदे में सो रहती तो बढ़िया रहता । झोपड़ी में कहीं भी सूखी जगह बची नहीं है ।
बड़ी नींद आ रही है । गोमती ने कुछ सोचा और वहां जाने के लिए हरिहर से पूछा ।

वह उनको वहां नहीं जाने देना चाहता था पर रोक भी नहीं पा रहा था । सुखना का एक बेटा फेकना बदचलन और दुष्ट था ।
वह गांव की लड़कियों को छेड़ा करता था और कई बार उसकी पिटाई भी हो चुकी थी पर उसकी आदत में कोई परिवर्तन नहीं हो सका । ललमटिया अभी चौदह पार कर गई थी । वह यही सब सोच रहा था फिर भी पत्नी के द्वारा पूछने पर उसे वहीं सोने जाने के लिए हां करनी पड़ी ।

ललमटिया अपनी मां के साथ सुखना चाचा के बरामदे पर जा पहुंची । सुखना का बेटा फेकना भी वही सोया करता था । ललमटिया की मां ने सुकना से आकर पूछा तो सुकना ने वहां सोने की अनुमति दे दी। वह आश्वस्त होकर अपने घर लौट आई । झिंगुरों की झनझनाहट मेंढक की टर्टराहट से सारा वातावरण डरावना बन रहा था । चमकती हुई बिजली शरीर में बिजली उत्पन्न कर दे रही थी। इन सबके बीच ललमटिया बेखबर होकर सो गई।

तभी उसके होठों पर किसी गर्म और मुलायम चीज का दबाव महसूस हुआ । वो चीख पड़ी । चीख सुनते ही उसकी बहन भी जाग गई । बरामदे के दूसरे किनारे पर सोए सुकना ने टॉर्च उठाकर उसकी रोशनी में  देखा तो  फेकना ललमटिया पर झुका हुआ था । सुखना अपने बेटे की इस हरकत से अच्छी तरह वाकिफ था थोड़ा सा हल्ला गुल्ला भी समस्या उत्पन्न कर सकता था ।  बात बिगड़ ना जाए सुखना अपने बेटे का पक्ष लेते हुए ललमटिया पर ही बिगड़ उठा । वह उसे भला-बुरा बोले जा रहा था बीच-बीच में वह उसके परिवार को भी गाली दे रहा था ।

सुखना की तेज आवाज सुनकर आसपास के लोग दौड़े भागे । सुखना सबके सामने ललमटिया को दोषी ठहरा रहा था । ललमटिया सिर्फ रोए जा रही थी ।

ऐसा भी हो सकता है , उसने कभी सोचा भी नहीं था। अब तक हरिहर और गोमती भी शोरगुल सुनकर बरामदे में आ पहुंचे । तमाशा देखने आए लोग भी सुखना की तरफ से बोल रहे थे। ललमटिया को सभी भला बुरा कह रहे थे । हरिहर और गोमती को तो काठ मार गया था ।

थोड़ी देर बाद में भीगते हुए अपने बच्चों के साथ अपनी झोपड़ी में लौट पड़े । एक दिन मौका देखकर गोमती बोली मैं तुमसे कितनी बार कह चुकी हूँ कि ललमटिया के हाथ पीले कर दो पर तुम हो कि सुनते ही नहीं।

अभी कितने दिन ही की हुई है कि तुम परेशान हो रही हो । अगर उस दिन कहीं कुछ ऊंच-नीच हो जाती तो हरिहर पत्नी के बाद सुनकर सोच में डूब गया । लड़की बड़ी तो हो गई है । गांव में उस दिन की इस घटना पर तरह-तरह की बातें हो रही है लोग पता नहीं क्यों बार-बार मुझसे उसकी शादी कर देने को कहते हैं । आखिर लोगों की बातें सुनकर उसने इसी बरस शादी कर देने का अपना निर्णय सुना दिया ।पत्नी आश्वस्त हो गई । गोमती दिन रात अपने पति को फेकना वाली घटना की याद दिलाती, और उसकी शादी कर देने के लिए दबाव डालती तंग आकर एक दिन हरीहर बेटी के लिए वर खोजने निकल पड़ा । कहीं वर मिलता तो घर नहीं, घर मिलता तो योग्य वर नहीं फिर भी वह अपने कार्य में लगा हुआ था । एक जगह पर घर भी अच्छा था वर भी सुंदर था ।

लड़के वाले तीन हजार नगद की मांग कर रहे थे । और दूसरी शर्त थी कि बारातियों की सुंदर आवभगत । हरिहर ने उसकी शर्त तुरंत स्वीकार कर ली ।

शादी आनन-फानन में तय हो गई सिर्फ दस दिन का समय रखा गया । इतने ही दिनों में सारी व्यवस्था पूरी करके शादी कर देनी थी । हरिहर खुशी खुशी लौट आया। उसके मन का बोझ हल्का हो चुका था । पत्नी भी फूली न समाई, पर यह खुशी ज्यादा देर तक टिकी ना रह सकी। मन लायक घर बार मिल जाने की खुशी शीघ्र ही लुप्त होने लगी । घर में तो फूटी कौड़ी नहीं थी और इतने कम समय में रुपयों की व्यवस्था कैसे होगी? यह चिंता बार-बार मस्तिष्क पर उभरने लगा।
हरिहर का दिमाग काम नहीं कर रहा था । वह किस तरह से इतने पैसों का जुगाड़ कर पाएगा ।

गांव के लगभग सभी धनी गरीब के पास वह अपनी फरियाद लेकर पहुंच चुका था । सब ने अपनी मजबूरी बतलाई । कोई भी ऐसा नहीं मिला जो उसे रुपए सूद पर भी दे सकता था । पैसे का जुगाड़ ना होने पर हरिहर दुखी मन से घर लौट आया । पत्नी ने पानी ला कर दिया ।

हरिहर बे मन से मुंह हाथ धोकर के सामने पड़ी चटाई पर लेट गया।

कहीं पैसों का जुगाड़ हुआ पत्नी की आवाज सुनकर वह सुध में आया । नहीं फिर क्या होगा ,इस पर भगवान ही मालिक है लेकिन अब तो सिर्फ 6 दिन ही बचे हैं अभी तक तो कुछ भी नहीं हुआ है।

सब कुछ गिरवी रख कर भी पैसे लेना चाहते हैं लेकिन कोई देता नहीं है।

हे भगवान अब कैसे चलेगा । ऐसा भी कुछ बचा है कि जिसे गिरवी रखा जा सके ।

दोनों इसी उधेड़बुन में पड़े रहे।

दूसरे दिन हरिहर ने अपने सूअरों के लिए ग्राहक बुलाए उन्होंने भी उसकी मजबूरी समझ सात आठ हजार के सुअरों की कीमत दो हजार आंकी ।

शादी में लगभग पांच हजार का खर्च बैठ रहा था ।
उसने हिसाब लगाया  घर , समूची संपत्ति बेच देने पर भी पांच हजार के लिए पूरी राशि का जुगाड़ नहीं बैठ रही थी । शादी टल जाने का अर्थ था बेइज्जती । फेकना की एक गलत कोशिश ने ललमटिया के चरित्र को तो संदिग्ध कर ही दिया था उस पर शादी टल जाती है तो गांव के लोग उसे गलत चरित्र का साबित करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ेंगे । हरिहर यही सोच सोच कर पागल हो रहा था। बाप दादा की कोई ऐसी जमीन भी नहीं थी जिसे बंधक रखकर पैसे लिए जा सके ।

गांव में उसने किस-किस का काम नहीं किया पर आज जब जरूरत पड़ी तो सभी मुंह फेर कर खड़े थे ।

मैं गरीब हूं मेरे पास बाप दादा की कोई जमीन नहीं है जिससे मुझे पैसे भी कर्ज में नहीं मिल रहे हैं । औरों की तरह मैं भी सूद चुका  देता पर , कोई देना नहीं चाहता वह अपने आपको उन विचारों से दूर नहीं कर पा रहा था ।

पल-पल उसे ललमटिया का चेहरा दिखाई पड़ रहा था अगर उसकी शादी टूट जाएगी तो क्या उसका दिल नहीं टूटेगा ? बेचारी का क्या दोष , उसने जीवन क्या होता है अभी यह भी नहीं जाना , फिर भी उसने पति के घर जाना होगा । दुनिया की रीति है उसे कौन तोड़ेगा शादी विवाह का खर्च तो आज फैशन बन गया । मुझे उसकी कोई चिंता नहीं है , लेकिन गांव वालों की नजर में मेरी बेटी खटकती है। मैं कमाकर अपनी बेटी को खिलाता हूं और वह भारी पूरे गांव को लगती है। हद्द है।

सीताराम बाबू के यहां 25 वर्ष की लड़की है लेकिन किसी को बुरा नहीं लगता । कोई उनसे जाकर नहीं कहता, कहेगा भी तो कैसे ? वह तो ऊंची जाति के लोग हैं । उनकी बेटी शहर में रहती है और पढ़ती है, लेकिन हम लोग गरीब हैं, गंदे हैं, नीची जाति के इसलिए लोग हम पर उंगली उठाने से नहीं चूकते। लेकिन ललमटिया का क्या दोष ? उसने कोई अपराध तो किया नहीं । क्या वह अपराधी है , जो इस उम्र में ससुराल भेज दूं?

गांव के लोग हैं जिन्होंने ललमटिया को बदनाम कर दिया । बुरा हो सुखना का जो अपने चरित्रहीन बेटे को दोष नहीं देकर निर्दोष ललमटिया पर लांछन लगाने से बाज नहीं आ रहे।

थके हारे मनुष्य को ईश्वर के सिवाय और कोई रास्ता नजर नहीं आता । हरिहर की स्थिति भी वैसे ही बन गई थी विवाह का दिन एकदम सर पर आ पहुंचा पर पैसे का कोई जुगाड़ अब तक नहीं हो पाया था । ईश्वर पर अपनी इज्जत को सौंपकर हुआ थोड़ी शांति महसूस करता ।

पत्नी का चिंता में डूबा चेहरा उसे और चिंतित करता।
आज भी वह अपने सूअरों को सवेरे सवेरे खोलकर चराने निकल पड़ा।
तभी गांव की ओर आते हुए प्रकाश बाबू दिखाई दिए। एक आशा की क्षीण किरण मन में कौंधी और अनायास ही उसके कदम उसकी ओर चल पड़े ।

बोला मालिक राम राम । अभी आ रहे हैं क्या? हां कोई सवारी नहीं मिलने से रात भर स्टेशन पर रहना पड़ा। गांव घर का समाचार ठीक तो है ? हां मालिक सब ठीक-ठाक चल रहा है । कह कर हरिहर प्रकाश बाबू के अटैची उनके हाथों से लेकर अपने कंधे पर उठाकर चल पड़ा। रास्ते में ही उसने अपनी समस्या प्रकाश बाबू को बताई। कितने रुपयों की तुम्हें जरूरत पड़ेगी ?

हरिहर यही कोई पांच हजार रूपये मालिक । पैसों का इंतजाम किया है ?
नहीं मालिक । घर में फूटी कौड़ी नहीं है और परसो बरात आने वाली है। कहते कहते उसकी आंखें भर आई। प्रकाश बाबू का दिल पसीज गया उसने घर आने को कहा ।

मन में एक आशा बंधी । वह सामान पहुंचा कर पुनः सूअरों को देखने चला गया। घर पहुंचकर प्रकाश बाबू हाथ धोकर विश्राम कर रहे थे ।प्रकाश बाबू को किसी ने उसे बताया कि हरिहर आया । उन्हें याद आया। हरिहर को पांच हजार रू देने के लिए घर के मालिक अपने पिता से अनुरोध किया। पहले उसके पिता यानी दिवाकर राय कुछ नहीं बोले पर दोबारा आग्रह सुनकर बोले अभी अपने पास कितने ही काम पड़े हैं ।

फिर कभी ।

तुम्हें पता है इस साल बैल खरीदना भी जरूरी है एक महीने के बाद धान की फसल रोपनी है, पर पिताजी पांच हजार देने से क्या , बैल खरीदने  के लिए पैसे नहीं बचेंगे ।

पर पिताजी हरिहर की बेटी की शादी है। परसों बेचारा पैसों का जुगाड़ नहीं होने से रो रहा था।

तुम जानते नहीं आजकल ये छूट्टे  बदमाश हो गए है। एक बात तक नहीं सुनते । इनको पैसा देने की जरूरत नहीं है । तभी प्रकाश बाबू की मां आ गई। वह बड़े नेक दिल थी ।

दूसरों के दुख को शीघ्र ही समझने वाली और धार्मिक विचारों वाली महिला थी।  उसने अपने बेटे का पक्ष लेते हुए बोली -  जाने दीजिए ,दे दीजिए रुपए, बेचारे के यहां परसों शादी है । उसने अभी तक कोई सामान नहीं जुटाया । काफी देर तक हरिहर को पैसे दिए जाने को लेकर वाद विवाद चलता रहा । आखिर पत्नी और बेटे के हठ के आगे पैसे देने के लिए प्रकाश बाबू के पिताजी को स्वीकृति देनी पड़ी।

तभी  हरिहर आ गया । प्रकाश बाबू के पिता सबसे पहले आंगन से ओसारे में आए। सिर पर पल्ल्रू डाले उसकी मां भी बाहर आकर दरवाजे की ओट से सट कर खड़ी हो गई । कितना पैसा चाहिए ?

मालिक पांच हजार।कब लौटाओगे ?
तीन महीने में लौटा दूंगा ।गिरवी रखोगे क्या ? मालिक क्या है जो गिरवी रख लूंगा। लेकिन इतना रुपया लौटाओगे कैसे ?
मालिक अपने पास सूअर तो हैं पर अभी गरज की वजह से दो हजार से ज्यादा नहीं मिल रहा । आषाढ सावन में सात हजार रूपये मिलेंगे ।

मालिक मेरा विश्वास कीजिए मैं पैसे लौटा दूंगा । आप मेरी अभी इज्जत बचा लीजिए ।

ठीक है यह पांच हजार है, महीने पांच रूपए सैकड़ा के हिसाब से हम तुम्हें देते हैं लेकिन ठीक समय पर लौटा देना ।
हरिहर को लगा ईश्वर साक्षात रुप में आज उसकी इज्जत बचाने खड़ा है। उसने इतने भारी सूद की चिंता भी नहीं की थी । मन ही मन में प्रकाश बाबू और भगवान की बार-बार जय जयकार कर रहा था।

खुशी के मारे तो कई बार उसने अपना सिर झुकाया और अपने घर लौट आया ।

शादी हो गई वर पक्ष वाले भी खुश थे। ललमटिया की सुंदरता पर उसका दूल्हा भी प्रसन्न था। उसके मन की मुराद पूरी हो गई। बारातियों की सुंदर ढंग से आवभगत हुई थी. किसी को कोई शिकायत नहीं थी।

तीसरे दिन ललमटिया अपनी मां का घर छोड़कर अपने पिया के देश चली गई ।दिन गुजरते गए।

प्रकाश बाबू भी नौकरी से छुट्टी पर पुनः घर वापस आए। हरिहर उन्हीं के प्रतीक्षा कर रहा था ।उनके आते ही अपने सूअरों को बेचने के लिए ग्राहक बुलाया । अपने सभी जानवरों को बेचकर ललमटिया की शादी में लिया गया रुपया वह सूद समेत लौटा देना चाहता था । बातचीत हो गई । सभी सूअरों की कीमत सिर्फ पांच हजार ही तय हुई  अब तक सूद समेत उसे आठ हजार रूपए लौटाने थे ।

उस हिसाब से सूअरों के तीन हजार कम मिल रहे थे । ग्राहक रकम देकर कई जानवरों को परसों ले जाने को कह कर चले गए।

मेहनत मजदूरी करके हरिहर ने किसी तरह दो हजार का और इंतजाम कर लिया था फिर भी एक हजार और घट रहा था ।
हरिहर मन ही मन  दुखी और लज्जित हो रहा था ।

उसे कोई साधन नहीं दिख रहा था कि किस तरह से हुआ घट रहे रुपयों की व्यवस्था करें।

डरते डरते हुए  सात हजार रूपए लेकर प्रकाश बाबू के यहां पहुंचा । प्रकाश बाबू उसके पिता और उसकी मां तीनों अपने बरामदे में बैठे किसी समस्या पर विचार कर रहे थे । तभी हरिहर अपने गमछे में रुपए को लपेटे आ पहुंचा । आते ही सारे रुपये को प्रकाश बाबू के सामने खोल कर रख दिया और हाथ जोड़कर वही जमीन पर बैठ गया । रुपया गिन कर प्रकाश बाबू के पिता ने रख लिया हरिहर कुछ कहना चाह रहा था फिर भी चाह कर भी नहीं कर पा रहा था नहीं प्रकाश बाबू के पिता ने कुछ कहा कुछ देर हुआ यूं ही बैठा रहा फिर डरते डरते वहां से चला गया।

मन का भय अभी भी उसके मन को काटे जा रहा था। ना जाने आगे क्या होगा दो महीने देर से पैसे लौटा रहा है ऊपर से एक हजार कम भी ।

सोचते-सोचते अपने घर आ पहुंचा पर चिंता मुक्त नहीं हो सका । गोमती के पूछने पर उसने अपने मन की चिंता का कारण बता दिया । दोनों आपस में बात कर ही रहे थे कि प्रकाश बाबू के वहां से एक आदमी  बुलाने आ पहुंचा ।

डर के मारे उसका ह्रदय थरथर कांपने लगा । पत्नी भी उसकी परेशानी देखकर चलते समय उसके साथ हो ली । उसको अपने घर से प्रकाश बाबू के घर तक पहुंचने में उसकी हलक सूखती जा रही थी ।

दोनों प्रकाश बाबू के पिता के सामने हाजिर हुए ।

प्रकाश बाबू के पिता की मुख की मुद्रा को देखकर उनका हृदय कांप उठा ।

तभी कड़कदार आवाज उसके कान में पड़ी
क्यों रे हरिहरबा
कितना रुपया दिया
मालिक सात हजार ।

सात हजार ही तेरा हिसाब हुआ ?
नहीं मालिक तो शेष एक हजार कब देगा?
और अभी नहीं दे सकता ।

हम पर दया कीजिए सरकार, मेरे सारे जानवर बिक चुके हैं । अभी कोई आधार भी नहीं बचा है। मै पैसा चुका दूंगा ।
इसीलिए तुम लोगों को मैं पैसा नहीं देना चाहता।

हरिहर और गोमती बार-बार गुहार कर रहे थे।

प्रकाश बाबू मन ही मन सोच रहे थे क्या दुनिया में मानवता का आधार रुपया ही है ।

आज अपने पिता पर उसे गुस्सा आ रहा था ।

उसने जितने लिए तो उससे ज्यादा तो लौटा दिया ।

फिर सूद के लिए इतना जलील करने की आवश्यकता क्या? दिवाकर ने प्रकाश और अपनी पत्नी की और दृष्टि डाली सभी उन्हें नाखुश लगे ।

नजर घुमाकर उन्होंने पैसे झट से बाहर निकाले । प्रकाश बाबू को लगा कि वह रुपए हरिहर के पास फेंक देंगे ।
दिवाकर बोल पड़े। उन्होंने दो हजार अलग कर के हरिहर के पास फेंक दिया। उसने कहा- इन्हें रख लो।इनकी मुझे जरूरत नहीं है।

अपने लिए कुछ जानवरों को फिर से खरीद लेना जिससॆ तुम्हारी आय का साधन नष्ट ना हो पाए ।
प्रकाश बाबू और हरिहर दोनों को अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ ।

दोनों एक साथ बोल पड़े- सच!

हां एकदम सच मैंने तुम्हें सूद पर रुपया इसलिए कह कर दिए थे कि तुम लापरवाही ना बरतो और उसे समय पर लौटा दो।
और हां हमारे परिवार में सूद को अच्छा नहीं समझा जाता । अतः मुझे सूद नहीं चाहिए।

मैंने जो भी दिया मुझे मिल गया. उससे अधिक की मुझे अपेक्षा नहीं है ।
ईश्वर का दिया सब कुछ तो है ही।

यह सुनकर हरिहर की हालत उस गूंगे जैसी हो गई थी वह गुड़ के स्वाद को चख तो रहा था पर बता नहीं सकता था । खुशी के मारे उसकी आंखें भर आई और ललमटिया का चेहरा एक बार  उसकी आंखों में तैरने लगा ।

इन्द्र ज्योति राय 

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