मन की वाराणसी ट्रांसफ़र होने से मन में खुशी थी कि अब जी भर कर काशी विश्वनाथ के दर्शन का सौभाग्य मिलेगा, साथ ही बनारस की गलियाँ जिनके अनगिनत किस्से सुने थे, उन्हें देखने जानने का भी खूब मौका मिलेगा। मगर इस खुशी के साथ ही उस शहर के लोग जिनसे कोई सगा नाता-रिश्ता ना होने पर भी उनसे बिछड़ने की कसक और सालों जिस घर के कोने-कोने को संवारा -सजाया उसे छोड़ने का दुःख भी कम नहीं था। वाराणासी आ कर सोचा था सब से पहले काशी विश्वनाथ जी के दर्शन उसके बाद बनारसी कचौरियों का आनंद फिर कुछ दूसरा काम। पर ऐसा नहीं हो सका। नये घर को अपनी तरह से व्यवस्थित करना , बच्चों का नये स्कूल में एडमीशन करवाना, एक अच्छी मेड को ढ़ूँढ़ना इन सब में एक हफ्ता कैसे बीता पता ही नहीं चला।
बच्चों को नए स्कूल के लिए स्कूल बस में बैठाने के क्रम में वहीं कुछ महिलाओं से हैलो-हाय हुई। दीपाली ने ही सभी को बताया, ये मेरे सामने वाले फ्लैट में हफ्ता भर पहले आई हैं, मगर आज यहाँ मिलना हो रहा है। मैंने सफाई देते हुए कहा अभी मेड नहीं मिली है, तो घर सेट करना, बच्चों का एडमीशन इन्हीं सब में समय नहीं मिल पाया, आज शुरुआत हो गयी तो अब मिलना-जुलना होगा ही। मैंने सभी से कहा क्या आज शाम की चाय आप सभी मेरे यहाँ पीना पसंद करेंगी? दीपाली ने हंस कर कहा- आपके घर की चाय बाद में आज आप मेरे यहाँ चाय पिएँगी। मेरे कुछ बोलने से पहले दीपाली ने कहा, अभी आपको मेड नहीं मिली है। मेरी मेड भी काम ढ़ूँढ़ रही है। आप शाम को चाय के बहाने उससे बात भी कर लीजियेगा। वैसे वो अच्छा काम करती है। दीपाली के घर मेड के साथ-साथ मुझे दीपाली के परिवार की भी जानकारी मिली। दीपाली के पति बिजनेस करते हैं, उनकी इलेक्ट्रॉनिक के सामान की दूकान वाराणसी में ही है। उसका अपना फ्लैट है। मायका भी यहीं है। दीपाली के बाद की बहन मीरा का ससुराल भी यहीं है। एक और बहन है रंजू... और दो भाई हैं मुन्ना- झुन्ना। बहन की शादी की बात चल रही है। पिता रेलवे में नौकरी करते हैं। दीपाली को बातें करने का खूब शौक था। जल्दी ही दीपाली के पूरे परिवार से मेरा अच्छा परिचय हो गया। मेरे पति और दीपाली के पति में भी मेल जोल हो गया था। दीपाली लगभग रोज मेरे घर कुछ देर गप्पें मारने आ जाती थी। उस दिन पहली बार दीपाली मेरे घर नहीं आई। मैंने सोचा आज मैं ही चली जाती हूँ। दीपाली के घर उसके मायके का पूरा परिवार आया था मगर सभी चुपचाप बैठे थे। मुझे बड़ा अटपटा लगा। झिझकते हुए मैंने पूछा क्या हुआ, सब ठीक है ना? दीपाली ने मुझे बैठाते हुए कहा- कैसे और क्या बताऊँ? रंजू ने तो हमारी नाक कटवा दी। मैंने कहा क्या हुआ साफ-साफ कहो। दीपाली की बहन मीरा ने कहा-दीदी! रंजू घर से भाग गयी है। मैं बोली ऐसा कैसे हो सकता है? मैं बताती हूँ, कह कर दीपाली बोली तुम्हें तो पता है, रंजू का रंग हम दोनों बहनों की तरह गोरा नहीं बल्कि गहरा सांवला है। हम दोनों बहनों की शादी बड़े आराम से हो गयी पर रंजू के रंग के चलते बात बढ़ती ही नहीं थी। बड़ी मुश्किल से पिता जी ने एक जगह बात चलाई। उस लड़के का रंग बहुत ही गहरा था इस लिए उम्मीद थी। लेकिन उस लड़के ने रंजू को देख कर रिजेक्ट कर दिया। उस दिन रंजू बहुत रोयी थी। हम सब ने उसे बहुत समझाया,पर उस दिन से वह गुम सुम रहने लगी। अब कल से गायब है हम लोग हर जगह ढ़ूँढ़ चुके कहीं पता नहीं चला। मैने कहा किसी सहेली के घर होगी, ठीक से पता करो और पुलिस में भी रिपोर्ट कर दो। दीपाली की माँ ने कहा, नहीं-नहीं पुलिस में रिपोर्ट नहीं होगी। चाहे रंजू मरे या जिए। १०-१२ दिन हो गए रंजू का पता नहीं लग पाया। मैंने भी चुप रहना ही बेहतर समझा।
सबेरे के नौ बज रहे थे। मेरे घर की डोर बेल लगातार बज रही थी। दरवाजा खुलते ही दीपाली शुरू हो गयी,जानती हो गरिमा! रंजू किसके साथ भागी है? मैंने घबरा कर ना में सिर हिलाया, तो दीपाली बोली वो तो किसी अंधे के साथ भागी है, उसे और कोई नहीं मिला। दिल्ली जा कर अंधे से शादी की। आज उसका लेटर आया है। कल मुन्ना दिल्ली जाएगा और उसे खींच कर वापस लाएगा। मैंने कहा जब रंजू ने खत लिख कर बता दिया है कि उसने शादी कर ली है, तो अब क्या किया जा सकता है। दीपाली ने हताश-निराश हो कर कहा,किसी अंधे के साथ की शादी को हम नहीं मान सकते। दूसरे ही दिन मुन्ना रंजू के दिए पते पर दिल्ली गया। लेकिन जब मुन्ना लौटा तो उसके साथ रंजू नहीं आई। उसने मुन्ना से कहा- जो लड़का खुद काला था जब उसने मुझे रिजेक्ट कर दिया तो मुझे बहुत दुःख हुआ। एक दिन मैट्रिमोनियल में मैंने एक ब्लाइंड म्यूजिक टीचर का विज्ञापन देखा। मैंने तय कर लिया कि मैं इसी से शादी करूँगी। मैंने उसे सारी बातें बता कर मिलने के लिए कहा। मैंने उसे बनारस ना बुला कर इलाहाबाद आने के लिए कहा। सुनील अपने एक दोस्त के साथ स्टेशन पर मेरा इंतज़ार कर रहे थे। उन्होंने पूछा कि इलाहाबाद क्यों आने के लिए कहा। तब मैने बताया बनारस रेलवे स्टेशन पर पिता जी के कारण सब मुझे पहचानते हैं, इस लिए मेरा आपके साथ जाना नहीं हो पाएगा। सुनील ने कहा-मतलब तुम घर से भाग कर मेरे जाओगी। मैने वâहा मैं बालिग हूँ अपनी मर्जी से शादी कर सकती हूँ। मैं यहाँ आ गयी हूँ, अब लौटूँगी नहीं। आप ही से शादी करूँगी। फिर मैंने उन्हें कानपुर का टिकट लेने के लिए कहा क्योँ कि रेल की मुझे पूरी जानकारी थी। कानपुर से हम दिल्ली आए । एक दिन बगल की आंटी के घर मुझे रहना पड़ा। सभी ने मिल कर हमारी शादी का इंतजाम किया। दूसरे दिन मंदिर में हमारी शादी हो गयी। यहाँ आकर मुझे मालूम हुआ सुनील को बहुत धुंधला सा दिखाई देता हैं। वे दिल्ली के सरस्वती संगीत महाविद्यालय में संगीत के शिक्षक हैं। वे अपना सभी काम खुद कर लेते हैं। सुनील मुझे अपने मन की आँखों से देखते देखते हैं, उनके लिए मैं दुनियाँ की सब से खूबसूरत औरत हूँ, मैं अपने निर्णय से बहुत खुश हूँ। तुम लोग मेरी चिंता मत करना। मुन्ना ने बताया रंजू के घर में आधुनिक सुख सुविधा के सभी साधन हैं। उसके पति सुनील का बहुत ही विनम्र स्वभाव है। आँखे
मंजुला शरण