वो पागल आदमी
सुबह सुबह दिसंबर महीने की ठण्ड कलेजा कंपा रही थी। बिना आग के मानो खून बर्फ कि तरह जम जाये। एक बस स्टॉप पर बैठा एक व्यक्ति जो ३६ के लगभग था, बस का इंतज़ार कर रहा था।उसकी आँखे कुछ ठण्ड से लाल थी तो कुछ हालातों से। वह रोना चाह रहा था लेकिन पुरुषत्व की दीवार को उसके आंसू भेद नहीं पर रहे थे, अंत में आंसुओ कि जीत हुईं व पुरुष रोते नहीं के बाँध को तोड़ कर वह बह निकलते।
सुबह सुबह दिसंबर महीने की ठण्ड कलेजा कंपा रही थी। बिना आग के मानो खून बर्फ कि तरह जम जाये। एक बस स्टॉप पर बैठा एक व्यक्ति जो ३६ के लगभग था, बस का इंतज़ार कर रहा था।उसकी आँखे कुछ ठण्ड से लाल थी तो कुछ हालातों से। वह रोना चाह रहा था लेकिन पुरुषत्व की दीवार को उसके आंसू भेद नहीं पर रहे थे, अंत में आंसुओ कि जीत हुईं व पुरुष रोते नहीं के बाँध को तोड़ कर वह बह निकलते। कई बार अपने आप को वह संभालता लेकिन फिर फूट-फूट कर रोता।
पास ही बैठा एक भिखारी जिसे सब पागल पागल बोलते थे उसे देख रहा था। पागलपन के लहजे में ही उससे पूछ बैठा।
क्या है क्यों रो रहा है?
व्यक्ति के उत्तर दिया- तुझे क्या रे तू अपना काम कर ना।
भिखारी- मैं अपना काम ही कर रहा था तू रो रो कर मुझे परेशान कर रहा, चल बता क्या हुआ।
व्यक्ति बोला- तुझे क्या समझेगा रे, क्या ही बताऊं।
भिखारी- देख सब जानता हूं, कई लोग मन ही मन रोते हैं यहाँ। कोई नौकरी के लिए रोता है, कोई पैसों के लिए, और तो और कोई लड़की से बात करके भी रोता हैं यहाँ। तू क्यों रो रहा है?
आज कल कौन सुनता है किसी की तकलीफ उसके दिल की बात, ऐसे में भले ही भिखारी ही पूछे व्यक्ति के दिल बातें निकलने ही लगी।
व्यक्ति बोला- ऑफिस में लड़ाई हो रही है, बॉस दिन रात बस जलील ही करता है, जिसको मुझसे मतलब नहीं वो विभाग वाले भी गुस्सा निकल कर जा रहे हैं, परेशान हो गया हूं।
भिखारी- देख, मैं यहाँ रहता हूं क्यूं क्यूंकि मूझे खाना मिलता है, कोई रोटी दे जाता है कोई बिस्किट। कभी बच्चे पत्थर मरते हैं, तो कभी कुत्ते मेरे ऊपर भोंकते हैं। मैंने कुत्तों के लिए तो डंडा रखा हूं, लेकिन बच्चों को कुछ नहीं करता क्यूंकि बच्चों को मरूंगा तो लोग मुझे इस बस स्टॉप से उठाकर कहीं फेक देंगे। मुझे खाना मिलता है तो सब सहन करता हूं। शहर में तो १०० बस स्टॉप हैं, तू देख तेरे पास कितनी नौकरी है? वो देख चिड़िया, वो सडक पर चलती गाड़ियों के बीच खाना उठा रही है। तू तो इतना जोखिम नहीं उठाता बैठ कर ही काम करता है। समझा कुछ?
व्यक्ति के मन में बात घर कर गई, वह फिर भी बोला घर में भी यही है बाबा। घर वाले अच्छे से बात तक नहीं करते। हाँ मैं थोड़ा सा गुस्सा करता हूं लेकिन मजबूरी नहीं समझ रहे मेरी।
भिखारी बोला- देख ये दुनिया है मेरी बस स्टॉप जो देखा यहीं देखा।
मैं मांगता हूं सबसे। जो भग बे बोलता है मैं उसे गली देता हूं। जो मरता है उसे बद्ददुआ, और जो खाना देता है उसको दुआ। जो तू सामने वाले को देगा न वही तुझे मिलेगा। तू क्यों गुस्सा करता है, देख उस कुत्ते को ठण्ड में अपने रुकने कि जगह पर कपड़ा लगा रहा है। फर्ज निभा, प्यार दे, प्यार मिलेगा।
वह व्यक्ति हकीकत और अपनी गलती दोनों जान चूका था। उसने उस भिखारी की बात पर अमल किया, धीरे धीरे उसकी जिंदगी में सब ठीक होता चला गया। कई दिनों बाद वह कुछ सामान लिए भिखारी को देने आया लेकिन वह नहीं था। कई बस स्टॉप ढूंढने पर भी नहीं मिला वो पागल आदमी।
नटेश्वर कमलेश
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