‘बनारस’ नाम सुनकर ही ऐसा लगता है जैसे रस से डूबा हुआ कोई शहर हो। यूं तो इस शहर के कई नाम हैं, जैसे-काशी और वाराणसी, परन्तु ‘बनारस’ मुझे बिल्कुल अपना सा लगता है। जैसे हम घर में अपने बच्चों का स्कूल से कोई अलग नाम टिंकू, बबलू, पप्पू रखते हैं, कुछ इस तरह ही समझ लीजिये। जो भी बनारस आता है, वह यहां की विविध सांस्कृतिक परम्पराओं का मुरीद हुए बिना नहीं रहता। बाबा विश्वनाथ की पावन नगरी, अविरल बहती माँ गंगा का मनोरम तट, प्रेमचंद और प्रसाद की साहित्यिक विरासत से लबरेज, कबीर और रविदास कि वाणी से भरा यह शहर आपको भारत कि समृद्ध विरासत का सहज और अलौंकिक दर्शन कराता है।
बनारस से मेरा पुराना नाता है, क्योकि बचपन से अनेक बार मैं यहां आ चुका हूँ। लेकिन इस बार कि यात्रा कुछ खास थी,क्योकि इस बार मैं सपरिवार पहली बार यहाँ आया था। इसलिए इसका रोमांच भी कई गुना ज्यादा था घ् जब यात्रा का मन बना तो गर्मी के मौसम कि शुरुआत हो चुकी था। लेकिन यात्रा प्रारंभ होने से ठीक पहले ओलावृष्टि के साथ बरसात शुरू हो गई घ् लगा कि बाबा विश्वनाथ नें स्वयं मौसम को खुशगवार और ठंडा कर दिया हो घ् निकलने से ठीक पहले मौसम को देखकर हमलोगों ने बैगपैग में कुछ गर्म कपड़े डाल लिए। छाता तो अतिआवश्यक सामग्री में शामिल हो गया।
खैर मौसम से आंखमिचौली करते हुए हम नयी दिल्ली रेलवे स्टेशन पहुंचे। यूं तो दिल्ली से निकलने से पहले हमने बनारस के सर्किट हाउस में ठहरने कि व्यवस्था कर रखी थी। लेकिन ट्रेन में बैठने के बाद खबर मिली कि चूँकि बनारस में उत्तर प्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री जी का दौरा हैं, अतः सर्किट हाउस में फ़िलहाल कमरा नहीं मिल पाएगा। पहले ख़राब मौसम और फिर कमरे का अलोटमेंट रद्द, लगा कि भोलेनाथ हमारी परीक्षा ले रहे हैं। जब हम ट्रेन में ठहरने के लिए वैकल्पिक व्यव्यस्था का इंतजाम करने में लगे थे, तभी बनारस के एडीएम प्रोटोकॉल का फ़ोन आया कि हमारे ठहरने हेतु बनारस कैंट स्थित सेना के अतिथिगृह (जिसे वहां डाक बंगला कहते हैं) में इंतजाम हो गया है। लगा जैसे परीक्षा लेने के बाद बाबा विश्वनाथ ने हम भक्तो कि आखिर सुन ली। मन ही मन हम सब ने भोले बाबा को धन्यवाद दिया।
अगले दिन अलसुबह ट्रेन बनारस रेलवे स्टेशन पर पहुंच गई। कहते हैं कि शाम-ए-अवध और सुबह-ए-बनारस। सच में बनारस कि सुबह देखने लायक होती है। गंगा के घाटों पर तिलक लगाते और जन्म मरण के बंधनों से मुक्ति के बारे में बताते पंडे-पुजारी लोग और माँ गंगा में आस्था की डुबकी लगाते भक्तगण। सामने मंदिरों से गूंजती रामचरित मानस की ऋचाएं। हमने योजना बनाई कि डाक बंगला में सामान रखकर सुबह सुबह सबसे पहले नौकायन करने गंगाघाट जायेंगे और बनारस कि दर्शन कि शुरुआत माँ गंगा के आशीर्वाद से ही करेंगे।
हम अस्सी घाट पहुचकर एक नौका पर सवार हुए। जब आप बनारस के एक घाट से दूसरे घाट पहुंचते हैं तो मल्लाह आपको गाइड की तरह वहां से जुडी सभी पौराणिक कथाएं सुनाते हुए चलते हैं। हर घाटकी अलग अलग कहानियां। अस्सी घाट से नमो घाट के बीच आपको भारतीय सभ्यता और संस्कृति के अनेक मनोरम रंग देखने को मिलते हैं। एक वाक्य में कहा जाय तो एक शहर में सिमटे हुए कई शहर। भारत के उत्तर से दक्षिण और पूरब से पक्षिम का हर प्रान्त इन घाटों पर दिख जाता हैं। ऐसा लगता हैं कि जैसे माँ गंगा ने पुरे भारत को अपने आँचल में समा लिया हैं, कही कर्णाटक घाट तो कही विजयनगर घाट, कहीं दरभंगा घाट तो कही कई अन्य घाट घ् इन घाटों पर द्रविड़ स्थापत्य शैली कि झलक मिलती है जैसे दरभंगा घाट आपको महाराजा कामेश्वर सिंह के प्रसिद्धि की याद दिलाएगी।
संध्या समय में दशाश्वमेध घाट पर माँ गंगा की आरती आपको एक सुखद एवं अद्भुत अहसास दिलाती हैं। गंगा के तट पर शाम होते होते माहौल भक्तिमय होने लगता हैं। साधुओं एवं पुजारियों के साथ-साथ यहां देश-विदेश से श्रद्धालु गण गंगा आरती देखने आते हैं। शंखनाद, डमरू की आवाज और माँ गंगा के जयकारे यहाँ लोगों का मन मोह लेते हैं। दशाश्वमेध घाट पर आरती के समय मेले जैसा माहौल होता हैं घ् यहाँ के गंगा आरती की पहचान पूरी दुनिया में हैं और विश्व के कोने कोने से लोग विशेषकर इसकी एक झलक पाने के लिए यहाँ आते हैं।
पूरा दिन गंगा माँ कि गोद में बिता कर हम वापस डाक बंगला पहुंचे। यहां के प्रभारी संदीप जी से मिलना हुआ। हलांकि हम पहली बार इनसे मिले थे, लेकिन इनका मिलनसार स्वभाव हम सब के लिए सदैव अविस्मरणीय रहेगा। इन्होंने हमारे आगे के दर्शन और यात्रा का पारिवारिक सदस्य की तरह ख्याल रखा। चाहे वो बाबा विश्वनाथ कीस मंगला आरती में शामिल होना हो या विंध्यांचल माता का दर्शन, हमें कहीं भी परेशानी नहीं हुई।
जैसा कि हम सब जानते हैं, काशी विश्वनाथ मंदिर भारत के १२ ज्योतिलिंग में से एक है एवं इसे ‘मोक्ष का द्वार’ भी माना जाता है। इस मंदिर में दर्शन के लिए आदि शंकराचार्य, संत एकनाथ, गोस्वामी तुलसीदास सभी का आगमन हुआ हैं। यही पर संत एकनाथ जी ने वारकरी संप्रदाय का महान ग्रन्थ, श्री एकनाथ भागवत लिखकर पूरा किया। पौराणिक कहानियों के अनुसार जब देवी पार्वती अपने पिता के घर रह रही थीं तो उन्हें वहां बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था। देवी पार्वती ने एक दिन भगवान शिव से उन्हें अपने घर ले जाने को कहा, भगबान शिव देवी पार्वती कि बात मानकर उन्हें काशी लेकर आये और यहां विश्वनाथ-ज्योतिलिर्ग के रूप में खुद को स्थापित कर लिया। वर्तमान में इस मंदिर को नया एवं भव्य रूप दे दिया गया है, जिससे कि दर्शन सुगम हो सके।
बनारस का एक प्रमुख आकर्षण हैं- संकटमोचन हनुमान मंदि। संकट मोचन का अर्थ हैं परेशानियों अथवा दुखों को हरने वाला। अतः अपनी-अपनी परेशानियों को लेकर आए श्रधालुओं की यहां लम्बी भीड़ लगी रहती हैं। हम लोगों ने सायं काल यहाँ हनुमान जी का दर्शन किया। बहरहाल संकटमोचन मंदिर कि रचना बनारस हिन्दू विश्वविधालय के सस्थापक पंडित मदनमोहन मालवीय जी के द्वारा १९०० ई. में हुई थी। यहाँ हनुमान जन्मोत्सव बड़े धूमधाम से मनाया जाता हैं। इस मंदिर की एक अद्भुत विशेषता यह है कि भगवान हनुमान कि मूर्ति कि स्थापना इस प्रकार हुई है कि वह किसी भी स्थान से भगवन राम की ओर ही देखते हुए प्रतीत होते हैं। श्री राम चन्द्र जी के ठीक सीध में संकट मोचन महाराज का विग्रह है, जिनकी वे निस्वार्थ श्रध्दा से पूजा किया करते थे।
इसके अलावा छोटे से बनारस प्रवास के दौरान हम सब नें कई अन्य ऐतिहासिक एवं पौराणिक स्थलों यथा सारनाथ, बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, विश्वविद्यालय प्रांगन अवस्थित विश्वनाथ मंदिर, तुलसी मानस मंदिर, गौरी कुंड, भारत माता मंदिर, श्री काल भैरव मंदिर का दर्शन किया। वैसे तो मैं कभी पान नहीं खाता हूँ, लेकिन बनारस जाकर मैंने भी वहां का प्रसिद्द ‘बनारसी पान’ खाया, जिसका अद्भुत स्वाद और बिना चबाए उसका अपनेआप मूह में घुल जाना एक अलग अनुभूति देना वाला था। बनारस के घाटों की तरह उसके गलियों का जयका भी अपने आप में पुरे भारत को समेटे हुए है, चाहे चाची की कचौरी हो या श्री राम भंडार का नास्ता, पप्पू या लक्ष्मी की चाय हो या दीना की चाट, ये सब अपने आप में बनारस के इतिहास को बयां करते हैं।
हमारे इस यात्रा संस्मरण में इतनी सारी बातें बताने को है कि पूरी पत्रिका भर जाएंगी। इसलिए अभी मैं अपनी लेखनी को विराम देता हूँ। इस अविस्मरनीय यात्रा के बाद हमारा आप पाठकों से यह आग्रह है कि अगर आप बनारस नहीं गए हैं तो सपरिवार अवश्य जाये और यदि पहले गए हैं तो पुनः जाये। बनारस की यात्रा से आप अपनी जिंदगी को एक नये रस में डूबा हुआ पाएंगे और बाबा विश्वनाथ, गंगा घाट की मनोरम आरती, सुबह-ए-बनारस, बनारसी पान एवं उसके संकरी गलियों का अद्भुत जयका आपकी जिंदगी का अभिन्न अंग बन जाएगा।
इस यात्रा से हमने एक और चीज सीखी कि हमलोग किसी विपरीत परिस्तिथिति में तुरंत विचलित हो जाते हैं, परन्तु हम सब को यह समझना चाहिए कि भगवान हमारे लिए कुछ और ही सोच कर रखते हैं, जो हमें बाद में पता चलता है। फिर हमें यह अनुभूति होती है कि यह तो इतना बढ़िया था कि इस से बेहतर कुछ हो ही नहीं सकता था।
इस पर मुझे हरिवंश राय बच्चन कि वो पंक्तियां याद आती हैं- ‘मन का हो तो अच्छा और मन का ना हो तो ज्यादा अच्छा’...
अजय कुमार झा