गाँव में मेरा एक छोटा-सा घर था, जिसके आंगन में नीम के पेड़ थे। हर सुबह एक नन्ही चिड़िया वहाँ आकर चहचहाती, कभी आंगन में फुदकती, तो कभी डाली से बैठकर मुझे देखती। उसकी मीठी आवाज़ से मेरी सुबह होती थी। मैं रोज़ उसके लिए दाने डालता, और धीरे-धीरे वह मुझसे हिलमिल गई। अब वह बेझिझक मेरे पास तक आ जाती।
एक दिन तेज़ आँधी आई। बारिश और तेज़ हवा के झोका से पूरा गाँव सहम गया। सुबह जब मैं आंगन में पहुँचा, तो देखा कि चिड़िया का घोंसला नीम के पेड़ के नीचे बिखरा पड़ा था। मैं उसे ढूँढ़ने लगा, लेकिन वह कहीं नहीं दिखी। मेरा मन भारी हो गया क्या वह लौटेगी? कई दिन बीत गए, पर उसकी चहचहाहट सुनाई नहीं दी।
फिर एक सुबह हल्की-सी चहचहाहट सुनाई दी। मैंने ऊपर देखा वह डाली पर बैठी थी ! थोड़ी कमजोर लग रही थी, लेकिन उसकी आँखों में वही चमक थी। कुछ दिनों बाद, वह फिर पहले की तरह चहकने लगी, लेकिन इस बार अकेली नहीं थी उसके साथ दो नन्हीं चिड़ियाँ भी थीं ! आँधी ने उसका घर उजाड़ दिया था, पर उसने हार नहीं मानी। उसने नया घोंसला बनाया और अपने बच्चों को सुरक्षित रखा।
हर कठिनाई के बाद एक नई सुबह होती है, और जो अपने सपनों को तिनका-तिनका जोड़कर फिर से संवारने की हिम्मत रखते हैं, वे एक दिन सफलता की उड़ान भरते हैं।
त्रिभुवन लाल साहू
बोड़सरा,जाँजगीर,छतीसगढ़