सौंदर्य पर्यटन एवं आध्यात्म का केन्द्र माउंट आबू

मौसम खुशगवार हो रहा है। बदली छायी है हल्की हल्की बारिश की फुहारों के बीच ठंडी हवा का झोंका आ रहा है। सितंबर का आखिरी सप्ताह मानसून जाने की सूचना दे रहा है और बदलते मौसम के उपरांत हल्की ठंड और आने वाले तीज त्योहार के सीजन में यदि आप ३-४ दिन के लिए किसी सुंदर,शांत, रोमांचक स्थान जाना चाहते हैं तो आपके लिए `माउंट आबू' एक उपयुक्त स्थान होगा जहाँ कुछ वर्ष पूर्व मैंने जालोर से कार द्वारा यात्रा कर वहाँ के वादियों में अपने यादगार पलों को जोड़ रखा है।

Dec 3, 2024 - 12:08
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सौंदर्य पर्यटन एवं आध्यात्म का केन्द्र माउंट आबू
Mount Abu
मौसम खुशगवार हो रहा है। बदली छायी है हल्की हल्की बारिश की फुहारों के बीच ठंडी हवा का झोंका आ रहा है। सितंबर का आखिरी सप्ताह मानसून जाने की सूचना दे रहा है और बदलते मौसम के उपरांत हल्की ठंड और आने वाले तीज त्योहार के सीजन में यदि आप ३-४ दिन के लिए किसी सुंदर,शांत, रोमांचक स्थान जाना चाहते हैं तो आपके लिए `माउंट आबू' एक उपयुक्त स्थान होगा जहाँ कुछ वर्ष पूर्व मैंने जालोर से कार द्वारा यात्रा कर वहाँ के वादियों में अपने यादगार पलों को जोड़ रखा है।
आबू पर्वत पश्चिमी भारत का प्रमुख ग्रीष्मकालीन पर्वतीय पर्यटन स्थल है।यहाँ स्वास्थ्यवर्धक जलवायु के साथ एक परिपूर्ण पौराणिक परिवेश भी है। सर्दियां हो या गर्मियों का मौसम यहाँ आये दिन मेलों की चहलपहल सैलानियों के लिए आकर्षण का केंद्र होती है।यहाँ  वास्तुकला की अपनी एक अनोखी छाप यात्रियों को लुभाती है।
माउंट आबू -
अरावली पहाड़ी मे स्थित, राजस्थान के जोधपुर के निकट सिरोही जिले का एक छोटा पर सुंदर हिल स्टेशन है जो अपनी नैसर्गिक सुंदरता के साथ एक आध्यात्मिक केन्द्र के रुप में भी विख्यात है।
वैसे तो वर्ष भर खासकर राजस्थान व गुजरात के लोग अपना सप्ताहांत बिताने आते रहते हैं।पर्यटन के लिए नवम्बर से फरवरी का माह ज्यादा अच्छा रहता है जब यहाँ का तापमान १५ से ३० डिग्री सेलसियस के बीच रहता है। जाड़ों की रात में तापमान शून्य से नीचे गिरकर -८ से -१२ डिग्री भी चला जाता है। `माउंट आबू ' २२ किमी लम्बा और ९ किमी चौड़ा एक चट्टानी पठार के रूप मे स्थित स्थान है।इसकी सबसे ऊंची चोटी गुरु पर्वत है।माउंट आबू पहुँचने के लिए सड़क मार्ग से बस/टैक्सी या अपने निजी वाहन का उपयोग किया जा सकता है।निकटतम रेलवे स्टेशन यहाँ से २८ किमी दूर `आबू रोड' है।
प्रसिद्ध दर्शनीय स्थान :-
अभ्यारण्य -
यहाँ लंगूर, सांभर, जंगली सूअर और चीतों के साथ अन्य वन्य जीव एवं पक्षियों का अवलोकन कर सकते हैं।
ट्रेवर टैंक- सुनसान जंगल में बना तालाब,मगरमच्छों,पक्षियों और वन्यजीवों की शरणस्थली देखने योग्य है।
नक्की झील :-
नौका विहार के लिए सुंदर स्थान जहाँ आपको लाइफ जैकेट के साथ, डोंगी, पैडिल वाली नाव, बोटिंग के लिए किराए पर उपलब्ध करा दी जाती है। प्रति व्यक्ति शुल्क ५० रुपये,मान्यता है कि इसे हिन्दू देवताओं ने अपने नाखूनों से खोद कर बनाया है। झील में स्थित फौव्वारा इसके सुंदरता को और बढ़ा देता है।
गुरू शिखर :-
माउंट आबू से १५ किमी दूर गुरु शिखर अरावली पर्वत के साथ ही राजस्थान की सबसे ऊंची चोटी है। पर्वत के चोटी पर बने भगवान विष्णु के अवतार दतात्रेय को समर्पित संगमरमर का मंदिर है। गुरु शिखर से नीचे का घाटी का दृश्य बहुत सुंदर मनोरम दिखता है। ट्रेकिंग के लिए लोगों की पसन्द, इसकी सबसे उंची चोटी ५६५० फीट या १७७२ मीटर आंकी गई है।
हनीमून पाइंट :-
पहाड़ के पास बना लुकआउट पाइंट जो डूबते सूरज के नजारों के लिए मशहूर है। यहाँ के चट्टान को  `लव राक' कहा जाता है।
टोड राकः-
मेंढ़क के आकार वाली अनोखी चट्टान से नक्की झील का नजा़रा बड़ा दिलकश होता है।
रघुनाथ मंदिर :-
भगवान रघुनाथ का पारंपरिक धार्मिक स्थल।यहाँ यात्रियों को ठहरने के लिए उत्तम व्यवस्था भी है।
अचलगढ़ किला व अचलेश्वर महादेव मंदिरः
अचलगढ़ किला दिलवाणा के मंदिरों से ८ किमी उत्तर पूर्व मे पहाड़ों पर बना हुआ यह किला राजा राणा कुंभा ने १५वीं शताब्दी में बनवाया था जहाँ भोले शंकर को समर्पित अचलेश्वर महादेव का मंदिर भी स्थापित है।यहाँ भगवान शिव के पैरों के निशान अंकित है ।
अबुर्दा देवी मंदिर :-
पहाड़ के उपर पत्थर से बना यह पवित्र मंदिर गुफा के अंदर है।यहां सीधी चढ़ाई चढ़ कर पहुंचा जा सकता है।यह अति और वशिष्ठ जैसे गुरुओं का मूल निवास माना जाता है।
सनसेट पाइंट :-
नक्की झील और बस स्टेशन से २ किमी उपर चढ़कर पहाड़ के पीछे  यहाँ से सूर्यास्त देखने का अद्भुत नजारा देखने को मिलता है।
धार्मिक स्मारक :-
दिलवाड़ा जैन मंदिर:-
शुद्ध सफेद संगमरमर व दिलकश नक्काशी के लिए प्रसिद्ध यह पांच मंदिरों का समूह जो विमल शाह द्वारा ११वीं -१३ वीं शताब्दी के बीच बनवाया गया था, जैन समाज का एक प्रमुख तीर्थ व पर्यटन स्थल है।बाहर से दिखने में साधारण ये मंदिर आंतरिक रूप में अपने साज सज्जा से मानव निर्मित शिल्प कौशल का एक अद्भुत नमूना है।कुछ इतिहासकार इसके कारीगरी को ताजमहल से अधिक खूबसूरत मानते हैं।यह अध्यात्म ,चेतना एवं शांति का प्रतीक है।यह शानदार मंदिर जैन धर्म के तीर्थंकरों को समर्पित है।
विमलशाही मंदिर :
१०३१ मे निर्मित यह प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव या आदिनाथ को समर्पित है। समृद्ध पच्चीकारी वाले गलियारे खंबे, मेहराबों और मंडप के छतों पर कमल,कलियों/पंखुड़ियों, फूलों और जैन पुराणों के दृश्यों की नक्काशी उत्कीर्ण है।
लून वसाही मंदिर :
१२३० ईं मे गुजरात राज्य के बाहेला के शासक वास्तुपाल और तेजपाल नामक दो भाइयों द्वारा निर्मित कराई गई २२ वें तीर्थंकर नेमीनाथ को समर्पित मंदिर है।मंदिर के लगभग४८ स्तम्भों मे नृत्यांगनाओं की आकृतियां उत्कीर्ण की गई हैं जो शिल्प कला का बेजोड़ नमूना है और मन को अनोखी अनुभूति प्रदान करता है।इस मंदिर में आदिनाथ की आँखें असली हीरे की है तथा गले में भी बहूमूल्य रत्नों का हार है।इन मंदिरों में तीर्थंकरों के साथ साथ हिन्दू देवी देवताओं की प्रतिमाएं भी स्थापित हैं यहाँ की वास्तुकला जैन धर्म की सादगी, मूल्यों, ईमानदारी और मितव्ययिता को दर्शाती है। मंदिर के मुख्य हाल जो रंग मंडप के नाम से जाना जाता है वहाँ ३६० छोटे छोटे तीर्थंकरों की मूर्तियां लगी हैं।इस मंदिर के हाथीशाला मे १० सुंदर संगमरमर के हाथियों की मूर्ति स्थापित हैं।
पित्तलहार मंदिर :
यह मंदिर अहमदाबाद के सुल्तान दादा के मंत्री भीमशाह ने बनवाया था।प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ की विशाल पंच धातुओं से निर्मित मूर्ति है।मंदिर में स्थित शिलालेख के अनुसार वर्ष १४६८-६९ ई.मे चार टन वजनी मूर्ति प्रतिष्ठित कि गई थी।मंदिर में मुख्य गर्भगृह,गुड मंडप और नवचौक है।
श्री पार्श्वनाथ मंदिर :
जैन धर्म के २३वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ को समर्पित यह मंदिर १४५८-५९ में मांडलिक तथा उनके परिवार के सदस्यों द्वारा बनवाया गया है।यह एक तीन मंजिला इमारत है जो दिलवाणा के सभी मंदिरों में सबसे ऊंची है।
गर्भगृह के चारो मुखों के भूतल पर चार विशाल मंडप हैं।मंडप के बाहरी दीवारों पर ग्रे बलुआ पत्थर मे सुंदर शिल्पकृतियां उकेरी गई हैं जो खजुराहो और कोर्णक के मंदिरों के समतुल्य दिखती हैं।
श्री महावीर स्वामी मंदिर :
२४वें तीर्थंकर भगवान महावीर को समर्पित १५८२ मे बनी एक छोटी संरचना है।नक्काशीदार दीवारों से युक्त यह एक अद्भुत मंदिर है।इस मंदिर के उपरी दीवारों पर १७६४ मे सिरोही के कलाकारों ने सुंदर मनभावन चित्रों को चित्रित किया है।
प्रजापति ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय/आश्रम :-
ब्रह्मा बाबा द्वारा स्थापित आध्यात्मिक संस्था का यहाँ मुख्यालय है।इस आध्यात्मिक संस्था के १३७ देशों में ८५००से अधिक शाखाएं हैं।इस संस्था का शुरुआत इसके संस्थापक लेखराज कृपलानी ने भारत के सिंध प्रान्त के हैदराबाद नगर में वर्ष १९३० मे किया था।
उद्देश्य:-
१-समाज में नैतिक मूल्यों की शिक्षा देना। आध्यात्मिक चेतना जागृत कर सहज राज योग की शिक्षा देकर समाज के चरित्र निर्माण में उत्थान करना।
२-मान्यता, सभी आत्माएं स्वभाव से अच्छी है और वे ईश्वर के स्त्रोत हैं
३- सभी धर्म,जाति, रास्ट्र, लिंग के लोग बिना भेदभाव के इस संस्था से जुड़ सकते हैं।
४- सदस्य ध्यान के जरिए शरीर के बजाय आत्मा के रुप में पहचान की अवधारणा पर जोर देतें हैं
५-ब्रह्मकुमारी में नेतृत्व की प्राथमिकता महिलाओं की है।शिवानी इनकी एक प्रखर ओजस्वी वक्ता है।
६- सयुंक्त रास्ट्र संघ में नामंकित यह एक गैर सरकारी संस्था सदस्य है।
७- शिव बाबा-एक ज्योति बिंदु और परमधाम के निवासी , अपना ध्यान केंद्रित कर आत्मा को पहचानना।
८-मुरली के वचनों को आत्मसात करना।
यहाँ प्रवेश का कोई शुल्क नहीं है। सुबह ८-११और शाम ४-७:३० तक दर्शानार्थियों के लिए खुला रहता है। यहाँ प्रति दिन सुबह ३ बजे राजयोग, ध्यान योगकी कक्षाएं शिक्षार्थियों के लिए आयोजित की जाती है।
माउंट आबू मार्केट और खरीदारी :-
यात्रा के पश्चात नक्की झील के पास ही स्थित खूबसूरत बाजार में कोटा के पर्स,संगनेरी प्रिटेंड साड़ियां, राजस्थानी और गुजराती हस्तशिल्प, बेडशीट्स एंव जयपुरी रजाइयां यादगार के रूप में खरीदी जा सकती हैं।

सुभाष चन्द्रा

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