वर्तमान समय में बच्चों में नैतिकता व संस्कारों की कमी चिंता का विषय है। परिवार में माता-पिता भी गैरजिम्मेदार होते जा रहे हैं।अक्सर देखा जाता है,कि छोटे बच्चों को खाना खिलाते समय मॉ उन्हें यूट्यूब पर वीडियो दिखाते हैं।थोड़ा बड़े होने पर माता-पिता व्यस्त होने पर उन्हें मोबाइल थमा देते है, अगर इसकी जगह हम उन्हें चंपक ,कॉमिक्स या बच्चों की पत्रिकाएं पढ़ने को दें तो, पढ़ना उनकी आदत में शामिल हो जाएगा।
बच्चों के हाथ में मोबाइल और मल्टीमीडिया आने से बच्चे सोशल मीडिया की ओर आकर्षित हो रहे हैं। बाल साहित्य नैतिकता ,संस्कृति का विकास करता है। बच्चो में संज्ञानात्मक कौशलों का विकास करता है। जिस तरह का साहित्य उपलब्ध कराया जाएगा ,उसी तरह के संस्कारों वाली पीढ़ी हमें मिलेगी। बाल साहित्य पढ़ने या देखने से उसकी कल्पना शक्ति का विकास होता है।
बाल साहित्य बच्चों के चरित्र निर्माण में मुख्य भूमिका निभाती है । बच्चे अपने आस-पास जो देखते हैं,महसूस करते हैं, उसका उनके व्यक्तित्व पर प्रभाव पड़ता है। बाल साहित्य का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि इससे बच्चों को सामाजिक परिवेश से परिचित करवाना और उनमें अच्छे संस्कारों और नैतिक मूल्यों का निरोपण कर एक अच्छा नागरिक बनने की प्रेरणा देता है। यह जिम्मेदारी अभिभावकों और विद्यालय की भी है।
कक्षा में कविता और कहानियों का उपयोग करना चाहिए। बच्चे कहानी व कविताओं के द्वारा जल्दी सीखते हैं।जब भी पुस्तक मेले में जाएं तो बाल साहित्य अवश्य खरीदें, और उन्हें पढ़ने के लिए प्रेरित करें। पंचतंत्र की कहानियां , बालगीत महाराणा का घोड़ा, झांसी की रानी कविता बच्चों को प्रेरित करती है।
बाल साहित्यकार के लिए आवश्यक है कि यदि बच्चों के लिए कहानी है ,तो वह रोचक हो, लेख प्रेरक हो, कविता में फूल ,चंदामामा और प्रकृति का वर्णन होना चाहिए।बाल मनोविज्ञान बच्चों के मानसिक स्तर को ध्यान में रखकर ही करना चाहिए, तभी उनका सर्वांगीण विकास हो पाएगा।