बसंत पंचमी का आध्यात्मिक महत्व (सरस्वती माता का प्राकट्य)

बसंत पंचमी ऋतु परिवर्तन के समय का एक महत्वपूर्ण पर्व है। यह त्यौहार कंपकंपाने वाली शिशिर ऋतु के अवसान तथा मोहक वसंत ऋतु के आगमन के संधि काल में हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है।

Mar 12, 2024 - 18:26
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बसंत पंचमी का आध्यात्मिक महत्व (सरस्वती माता का प्राकट्य)
Basant Panchami

बसंत पंचमी ऋतु परिवर्तन के समय का एक महत्वपूर्ण पर्व है। यह त्यौहार
कंपकंपाने वाली शिशिर ऋतु के अवसान तथा मोहक वसंत ऋतु के आगमन के
संधि काल में हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है। वसंत ऋतु, उत्साह,
उमंग, स्फूर्ति से परिपूरित आनंददायक ऋतु है। बसंत को ऋतुओं का राजा भी
कहते हैं। इस समय मानव तो क्या प्रकृति भी झूम उठती है ।चारों ओर नवीन
कोंपलें उग आती हैं ।आमों पर बौर आ जाता है। प्रकृति नाना प्रकार के फूलों से
खिल उठती है ।खेत में सरसों के पीले फूलों की चादर सी बिछ जाती है । गेंदे के
पीले फूलों से वन उपवन सज जाते हैं। कुल मिलाकर धरती पर नवीन ऊर्जा और
आनंद का संचार होता है ।इसी वसंत आगमन पर प्रत्येक वर्ष ,माघ मास में शुक्ल
पक्ष की पंचमी तिथि को वसंत पंचमी का त्यौहार मनाया जाता है। बसंत पंचमी
‌देवी सरस्वती को समर्पित पर्व है। इस दिन विद्या बुद्धि की देवी सरस्वती की
पूजा अर्चना की जाती है।

सरस्वती देवी का प्राकट्य
मान्यता के अनुसार इसी दिन परमपिता ब्रह्मा द्वारा सृष्टि का सृजन किया गया
था। सृष्टि तो बन गई ,किंतु सृष्टि में शब्द नहीं था। सर्वत्र मौन छाया था,सब
मूक थे । उस समय नारायण के अनुरोध पर ब्रह्मा ने अपने कमंडल से जल लेकर
पृथ्वी पर छिड़का। इससे एक स्वर उत्पन्न हुआ और एक चतुर्भुजी देवी सरस्वती
प्रकट हुई ।जो एक हाथ में माला ,एक हाथ में पुस्तक, एक हाथ में वीणा और एक
हाथ वरद मुद्रा में रखे थी ।वह श्वेताम्बरा थी और हंस पर सवार थी ।इन्हें देखकर
ब्रह्मा जी बहुत प्रसन्न हुए। ब्रह्मा ने इन्हें वीणा वादन करने को कहा ।तब देवी ने
वीणावादन द्वारा नाद किया। जिससे स्वर उत्पन्न हुआ और सृष्टि में शब्द आ

गए ।सब बोलने लगे। सृष्टि में रस भरा गया, सर्वत्र आनंद छा गया।इसीलिए इन्हें
वाक्य वादिनी ,वीणा वादिनी, श्वेताम्बरा ,हंस वाहिनी आदि नाम से भी जाना
जाता है। जिस दिन संसार में अक्षर आए, शब्द आए ,वह दिन बसंत पंचमी का
दिन था। इसी शुभ दिन देवी सरस्वती का प्राकट्य हुआ।अतःबसंत पंचमी के दिन
ज्ञान, संगीत और सभी कलाओं की देवी सरस्वती की पूजा का विधान है।
ब्रह्म वैवर्त‌ पुराण और ब्रह्मांड पुराण‌ के अनुसार आरंभ में यह
सृष्टि नीरस थी।तब श्री कृष्ण के कंठ से पांच शक्तियां निःसरित हुई ,उनमें एक
वाणी की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती भी था। देवी सरस्वती बुद्धि ज्ञान व सभी
कलाओं में निवास करती है।

सरस्वती शब्द का अर्थ --- स + रस+ वती अर्थात रस के साथ, रस
से भरी, यानि जिसमे रस पूरित हो वह सरस्वती ।प्राणियों को रसमय बनाने वाली,
वाणी व ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती ,सभी कला संगीत में निवास करके
प्राणियों के मन प्राण में स्फुरण जगा देती हैं।
नाद का संबंध भगवान शिव से भी है तथा नटराज के रूप में उनका संबंध
भी नृत्य व संगीत से है और सरस्वती को भी संगीत कला की अधिष्ठात्री देवी
माना जाता है।इसीलिए देवी सरस्वती को शिव की बहन भी मानते है।
इस दिन काम का प्रकटन भी हुआ था। इसलिए इस दिन आनंद रूपी
बसंत अर्थात काम का पूजन भी किया जाता है । कामदेव मन में निवास करते है।
अतः वसंत में अनुराग की स्थिति का अनुभव होता है तथा मन में प्रसन्नता भर
जाती है ।


बसंत पंचमी एवं सरस्वती पूजा

एक कथा के अनुसार एक बार जब कृष्ण बांसुरी बजा रहे थे
,तो सरस्वती जी उनकी बांसुरी में आकर बैठ गई थी। जिससे चहुंओर आनंद छा
गया । तब प्रसन्न होकर श्री कृष्ण ने इन्हें आशीर्वाद दिया कि ,उनकी सदैव पूजा
होती रहेगी वह दिन बसंत पंचमी का दिन था।

पारंपरिक रूप से यह त्यौहार बच्चों की की शिक्षा को समर्पित है
इस दिन विद्यार्थी घर में, स्कूलों में ,देवी सरस्वती की पूजा करते है। सरस्वती को
ब्रह्मा की शक्ति माना जाता है।

अनेक क्षेत्रों में इस दिन बच्चों की शिक्षा आरंभ कराई
जाती है। इस दिन बच्चों को प्रथम अक्षरका ज्ञान कराया जाता है ।आंध्र प्रदेश
में तो इसे विद्यारंभ पर्व  कहते हैं ।लगभग देश के सभी स्कूलों में इस दिन
पूजा का विशेष प्रबंध करके इस पर्व को बड़ी श्रद्धा व उत्साह से मनाया जाता है
।कुछ लोगों की मान्यता है कि, इस दिन लेखनी व वाद्य यंत्रों की पूजा करनी
चाहिए ।उन्हें बजाना नहीं चाहिए और अध्ययन अध्यापन भी नहीं करना चाहिए ।
पठन-पाठन और वाचन से बचना चाहिए। केवल उपासना ही करनी चाहिए ।
 सरस्वती का बीज मंत्र है। इस बीज मंत्र का जाप करने का विधान है।
इनकी उपासना से एकाग्रता बढ़ती है अतः विद्यार्थी विशेष रूप से
इनकी पूजा-अर्चना करते हैं और यह कला और संगीत की देवी है इसलिए यह सभी
कलाकारों की भी आराध्य देवी है।

सरस्वती का वैदिक स्वरूप
ऋग्वेद में देवी सरस्वती का उल्लेख एक पवित्र नदी के रूप में मिलता है। उत्तर
वैदिक काल के बाद देवी सरस्वती की स्वतंत्र पहचान विकसित हुई ।सरस्वती
विद्या, ज्ञान, कला की एक स्वतंत्र देवी के रूप में उभरी ।नदी देवी का ज्ञान की

देवी के रूप में विकास हो गया और इन्हें वाग्देवी या वाणी की देवी के रूप में
पहचान मिली ।

वाक् सरस्वती वाणी सरस्वती है। (शतपथ ब्राह्मण 7/5/1/31 )।
इस प्रकार सरस्वती जो पहले नदी थी, शनै शनै वाग्देवी, बन गई। वैदिक काल की
नदी कालांतर में वेद माता सरस्वती ,व सभी कलाओं के अधिष्ठात्री देवी बन गई।
यह ब्रह्मा की शक्ति मानी जाती है।

बसंत पंचमी का सांस्कृतिक महत्व
बसंत पंचमी ऋतु परिवर्तन के समय का पर्व है। इस समय प्राकृतिक वातावरण
एक नवीन स्फुरण और उमंग से भरा होता है इस दिन से फागुन उत्सव की
शुरुआत हो जाती है। ब्रज में तो बसंत पंचमी को ठाकुर जी को गुलाल लगाकर
बसंत उत्सव का प्रारंभ किया जाता है,जो होली तक चलता है । बसंत पंचमी को
को बहुत शुभ मुहूर्त माना जाता है। साल में कुछ मुहूर्त अबूझ मुहूर्त माने जाते हैं
।जैसे देवोत्थान एकादशी, अक्षय तृतीया आदि। इसी प्रकार वसंत पंचमी भी एक
अबूझ मुहूर्त है इस दिन नया व्यवसाय, गृह निर्माण, विवाह आदि करना शुभ
माना जाता है।

ज्योतिष के अनुसार यदि कुंडली में बुध कमजोर है ,तो शिक्षा में बाधा आती है
और इस दिन सरस्वती मां की पूजन से शिक्षा की यह बाधा दूर हो जाती
है।ज्योतिष मानता है, कि सुनने या बोलने की समस्या भी देवी सरस्वती की
उपासना से दूर हो जाती है।

इस दिन पीले रंग के‌ कपड़े पहनना शुभ माना जाता है। पीला रंग समृद्धि,
शुभता व सौम्य ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है। इस दिन मां सरस्वती को पूजा में
सफेद चंदन,सफेद और पीत पुष्प, लावा ,केसर आदि अर्पित किया जाता है।

बसंत पंचमी का आध्यात्मिक महत्व
बसंत पंचमी में बहुत गूढ़ आध्यात्मिक रहस्य समाहित है। सरस्वती ज्ञान की देवी
है और इनका वाहन हंस है। मान्यता के अनुसार हंस शुद्ध दूध को ग्रहण कर
उसमें मिश्रित जल को अलग कर उसे छोड़ देता है। ठीक इसी प्रकार हमारी बुद्धि
भी अच्छाई और बुराई में भेद कर सकती है। वह शुद्धता को ग्रहण कर अशुद्धि
को छोड़ देती है ।यही ज्ञान का अर्थ है और हंस इसी बात का द्योतक है। ज्ञान में
दो शब्दों का मेल गेय और ज्ञाता है। गेय,जो जानना है और
ज्ञाता ,जिसे जानना है। जब तक दोनों संयुक्त नहीं होते तब तक ज्ञान सिद्ध नहीं
होता ।ज्ञान के प्राकट्य से ही, अज्ञान समाप्त होता है ।ठीक उसी प्रकार जैसे सूर्य
के प्रकाश से रात का अंधकार नष्ट हो जाता है ।बसंत पंचमी शब्द का एक अर्थ
,वासनाओं का अंत (वस+अंत ) भी है। वासनाएं अर्थात वह कामनाएं जो व्यक्ति में
बस जाती है, ठहर जाती है ।जैसे वह विचार जो, हमारे दिलों दिमाग पर हमेशा
छाए रहते हैं, वही हमारे व्यवहार में भी दिखने लगते हैं ,यही वासना है ।वासना
अच्छी और बुरी दोनों हो सकती है, अर्थात सकारात्मक वासना और नकारात्मक
वासना। काम, क्रोध, लोभ ,मोह ,मद यह अज्ञानी वासनाएं हैं, जो कष्ट का कारण
बनती है। जब यही कामनाएं ,वासनाएं, ज्ञान वासनाएं बन जाती हैं ,तो सुख देती
हैं ।ब्रह्म की ओर ले जाकर देवत्व की प्राप्ति भी करा सकती हैं ।सतोगुण से
जुड़कर स्वर्ग के द्वार खोल देती हैं और यही इच्छाएं तमोगुण से जुड़कर नारकीय
कष्ट का कारण भी बन सकती हैं। इन्हीं वासनाओं के अंत की कार्य सिद्धि हेतु

गुरु एक बीज मंत्र देता है अर्थात एक 'स्वर' देता है, और इसी में सती होने की
क्रिया बताता है यही 'सरस्वती मंत्र' है,अर्थात गुरू उस मंत्र के ध्यान और
क्रियान्वयन का ढंग बताता है। इसी में सती होकर अर्थात ध्यानस्थ होकर व्यक्ति
अपने अज्ञान का,अशुद्धि का परिष्कार कर सकता है। ध्यातव्य है कि, गुरु हिंदी
वर्णमाला का अक्षर 'स्वर' ही देता है ,'व्यंजन' नहीं देता। यानि जब, गुरु द्वारा
विदित क्रिया के क्रियान्वयन में गुरु प्रदत्त 'स्वर' सम्मिलित होने लगते हैं ,तो
व्यक्ति का 'मैं' ,जो कभी काम का 'मैं ' था ,वह मिटने लगता है और एक दिन में
पूरी तरह मिट जाता है। व्यक्ति पूर्ण रूपेण शुद्ध हो जाता है। शिष्य का विचार,
व्यवहार सब बदल जाता है गुरु शिष्य को पांच यम नियम बताता है-- ब्रह्मचर्य,
सत्य, अहिंसा ,अस्तेय, अपरिग्रह। इनमें से किसी एक को अपने जीवन में उतारकर
जब शिष्य स्वर में सती होने का अर्थात मंत्र में समाने की क्रिया को करता है ,तो
वासनाएं सुवासनाओं में परिवर्तित हो जाती हैं। अज्ञान ,ज्ञान में बदल जाता है।
अंधकार ,प्रकाश में ढल जाता है और अज्ञान रूपी रात्रि का अवसान होकर ज्ञान का
प्रकाशवान दिवस प्रकट हो जाता है ।यही बसंत पंचमी का महत्वपूर्ण आध्यात्मिक
रहस्य है ।

वसंत पंचमी का पर्व हमें विकारों से दूर रहकर ज्ञान के आधार
पर जीवन को श्रेष्ठ बनाने की प्रेरणा देता है। बसंत पंचमी की पूजा का अर्थ है कि
हम ज्ञान व बुद्धि को चित्त में रखकर अनेक प्राप्तियां से स्वयं को धन्य करें।
ज्ञान के अंधकार से निकाल ज्ञान के प्रकाश की ओर चलें । यही वसंत पंचमी की
आध्यात्मिक विकास यात्रा है यह एक सिद्धि दायक दिन माना जाता है अतः इस
दिन हमें वसंत पंचमी के वास्तविक रहस्य को समझ कर ज्ञान प्रकाश में
आध्यात्मिक विकास की ओर बढ़ाना चाहिए।


सीमा तोमर

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