त्योहारों की बढ़ती चकाचौंध में फीके होते स्वाद और संस्कार

बस दिखावा सा रह गया है दीपावली में। ऐसा लगता है कि जैसे 12th के बाद कंपटीशन की तैयारी करते हैं नौकरी के लिए इस तरीके से सब में इतना कंपटीशन हो गया है कि लोग एक दूसरे को बधाई देना भूल जाते हैं।  उपहार तो मिलता है मगर वह अपना पन वह प्यार नहीं।  घर में सजावट तो होती है पकवान में वह स्वाद नहीं।  घर अब शोरूम सा लगता है 

Mar 10, 2025 - 11:33
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त्योहारों की बढ़ती चकाचौंध में फीके होते स्वाद और संस्कार
Taste and culture are fading away in the increasing glamour of festivals
   ऐसा प्रतीत होता है जैसे कल की ही बात हो दीपावली पर मां अकेले ही बड़े प्यार से घर की सफाई पर लग जाती थी, दीपावली के आने पर मां घर को दुल्हन सा सजाती घर पर सफेदी करवाती नये पर्दे लगती गेंदे के फूलों से घर को सजाती है।
लगता है जैसे कल की ही बात हो 
बाजार जाकर खेल बताशे खिलौने अखरोट नारियल कभी नहीं बोलती थी बेटे का वह स्वाद हमेशा याद रखते हुए हमारे लिए बाजार से लेकर आई थी बर्फी वह तो थाली में जरूर होनी चाहिए। एक और बात औरत की दाल के पकोड़े बनाना वह कभी नहीं भूलती थी।
  दही बड़े कब बनते थे यह हमें पता भी नहीं चलता था नारियल के लड्डू उसकी खुशबू बाहर तक दोस्तों के घर तक चाहती थी छोले की खुशबू सब दोस्तों को घर के अंदर तक खींच लाती थी। 
मन हमेशा एक थैला छोटा सा थैला पकड़ी और हमें गेंद के फूल के लिए भेजती थी आंगन में रंगोली बनाना दरवाजे पर गेंदे के फूल और आम के पत्तों से द्वारा को सजाना। 
ऐसा लगता था की लक्ष्मी जी और गणेश जी बस अभी पधारने वाले हैं उनके स्वागत की तैयारी में मन ऐसे जुड़ जाती थी कि जैसे सच में गणेश लक्ष्मी जी और श्री राम जी हमारे ही घर आ रहे होंगे। रंगोली बनाकर घर के आंगन को सजती थी। 
हम लक्ष्मी जी गणेश जी और कुबेर जी की एक साथ मिलकर पूजा करते थे भोग अर्पित करते थे प्रसाद अर्पित करते थे।
मां वीडियो को घर के चारों ओर प्रज्वलित करती थी। मां और पापा दोनों हमारे साथ पटाखे जलाते थे फुल छड़ी से घर को रोशन करते थे घर के चारों तरफ कहीं भी अंधेरा ना हो हर जगह दियो से घर को रोशन करती थी।
आज पड़ोस के काफी लोग एक दूसरे को दीपावली की मिठाइयां बांटते थे और गले मिलकर एक दूसरे को दीपावली की शुभकामनाएं देते थे छोटे बड़ों के पैर छूकर आशीर्वाद लेते थे।
आपकी दीपावली ऐसी लगती है। 
दीपावली के समय दुकान खूब सजी रहती हैं दिए मोमबत्ती पटाखे जैसे सुनार की दुकान में सोना रहता है वैसे ही दिए पटाखे दुकानों में खूब सजे होते हैं लेकिन घरों में सिर्फ लाइट्स लगाकर छोड़ देते हैं। नागिनी के फूल हर घरों में दिखाई देते हैं ना खाने की खुशबू किसी दूसरे के आंगन तक जाती है ना वह मिठाई की थाल कभी किसी के हाथों में नजर आती है मजदूर से ही हैप्पी दीपावली कहकर दीपावली चली जाती है ना कोई प्रसाद बनता है ना किसी के घर से लक्ष्मी जी और गणेश जी की आरती की आवाज आती है ना ही पटाखे की धुआंधार आवाज आती है 
बस दिखावा सा रह गया है दीपावली में। ऐसा लगता है कि जैसे 12th के बाद कंपटीशन की तैयारी करते हैं नौकरी के लिए इस तरीके से सब में इतना कंपटीशन हो गया है कि लोग एक दूसरे को बधाई देना भूल जाते हैं। 
उपहार तो मिलता है मगर वह अपना पन वह प्यार नहीं। 
घर में सजावट तो होती है पकवान में वह स्वाद नहीं। 
घर अब शोरूम सा लगता है 
ना कोई साड़ी में दिखता है ना कुर्ते पजामे में। अब गेंदे के फूल की जगह प्लास्टिक के फूलों ने ले ली है दियों की जगह चाइनीस लाइट ने ले ली है।
जब हम छोटे थे तो दीपावली में एक बार लाइट जरूर जाती थी तब हर घर के दिए जगमगाते थे। 
ऐसा प्रतीत होता था कि श्री राम जी देवों के बारात के साथ अयोध्या लौट रहे हैं। 
सारी रात दरवाजे खुले रहते थे इस आस में की लक्ष्मी माता हमारे घर में पधारेंगी।
ना अब लाइट जाती है और ना ही दरवाजे खुले रहते हैं। 
अब प्रसाद के नाम पर छोटा सा मिठाई का डिब्बा पकड़ा दिया जाता है न फल न खील बताशे ना मौसमी फल नजर आते हैं। 
दीपावली की चक्र चांद में सिर्फ फिके स्वाद वह संस्कार नजर आते हैं 

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