उन्मुक्तता की बयार,संस्कार तार तार
सुनकर मैं भी सकते में आ गई। ये कौन सा भारत है ? क्या नैतिकता की दुहाई देने वालों को इस सच्चाई के बारे में पता नहीं है या पता होते हुए भी सब चुप हैं। ऐसे सारे चैनल मोनेटाइज्ड हैं। लाखों में इनके सस्क्राइबर हैं। करोड़ों में इनके वीवर्स की संख्या है।
मेरी दोस्त रेवती कई दिनों से एक शिकायत कर रही थी कि उसका बेटा मोबाइल फोन से दूर ही नहीं होना चाहता है। उसे मोबाइल देना उनकी मजबूरी थी। रेवती और उसके पति दोनों ही नौकरी करते थे। बेटा घर में कई घंटे अकेला रहता था इसलिए दोनों बीच बीच में उससे बातें करके हाल चाल पूछते रहते थे। पिछले एक साल से मोबाइल उसके पास ही था लेकिन अभी कुछ ज्यादा मोह हो गया था उसे। दरवाज़ा बंद करके मोबाइल देखता रहता। एक दिन रेवती ने चुपके से उसका मोबाइल चैक किया। वह देखकर दंग रह गई कि एक दस साल का बच्चा वो सब कुछ मोबाइल में देख रहा था जिसके बारे में बड़े भी खुलकर सबके सामने बातें नहीं करते हैं। समझाने से तो उसका व्यवहार और भी उद्दंड हो गया। खैर उसकी नानी कुछ समय के लिए उसके साथ रहने के लिए आ गई तो बात आई गई हो गई। ऐसा नहीं है कि बच्चे ही इस बीमारी से ग्रस्त हो रहे हैं, बड़ों के हाल भी ऐसे ही हैं।
मेरी एक सहकर्मी एक दिन अपने ससुर के बारे में बता रही थी कि दिन भर अपने कमरे में बैठकर यू ट्यूब पर जाने क्या क्या देखते रहते हैं। जब तक नौकरी कर रहे थे खूब मिलनसार थे और सामाजिक भी। सेवानिवृत्त होकर बस मोबाइल को ही अपना दोस्त बना लिया है और यू ट्यूब पर ही लगे रहते हैं। सास नहीं है और बेटे को भी इतना समय नहीं मिल पाता है उनसे बात करने का। फिर उसे यह भी लगता है कि उसके पापा ने उसकी हर समस्या का समाधान किया है, कोई समस्या उन्हे कैसे परेशान कर सकती है ? ससुर किसी काम से बाहर गए तो गलती से अपना मोबाइल घर में ही भूल गए। मेरी सहकर्मी ने उनकी सर्च हिस्ट्री चैक की तो उसके पैरों तले से ज़मीन निकल गई। कुछ ऑडियो चैनल जिनके बड़े साहित्यिक नाम थे जैसे "सुविचार" अथवा "मोरल स्टोरी" या "मोटिवेशनल स्टोरी"। चैनल पर ऑडियो प्ले करते ही जो मनगढ़ंत कहानियां शुरू हुई उनमें बस एक ही सीख थी कि कोई भी रिश्ता हो यदि आदमी और औरत हैं तो अपनी हवस को शांत करना चाहिए।
सुनकर मैं भी सकते में आ गई। ये कौन सा भारत है ? क्या नैतिकता की दुहाई देने वालों को इस सच्चाई के बारे में पता नहीं है या पता होते हुए भी सब चुप हैं। ऐसे सारे चैनल मोनेटाइज्ड हैं। लाखों में इनके सस्क्राइबर हैं। करोड़ों में इनके वीवर्स की संख्या है। सेंसर बोर्ड द्वारा फिल्मों से हटाए गए सभी आपत्तिजनक सीन, ब्लू फ़िल्म,पोर्न वीडियो, अवैध संबंधों की ऑडियो , वीडियो और तो और समलैंगिक संबंधों की ओर आकर्षित करने वाली ऑडियो, वीडियो सभी इस यू ट्यूब के बाजार में उपलब्ध है। दुखद समाचार यह कि हर मोबाइल में इसे साथ में ही दिया गया है। प्ले स्टोर की भी ज़रूरत नहीं है।
कोई दिन ऐसा नहीं होता जब लड़कियों के रेप, ब्लैकमेलिंग और छेड़ छाड़ की घटनाएं समाचार पत्रों की हेडलाइन नहीं बनती हैं। संसद में चर्चा होती है। दिवस मनाया जाता है। बेहतर नाम दिए जाते हैं लेकिन इन घटनाओं के होने के कारण पर हम कुछ भी नहीं बता पाते हैं। इस विषय पर और भी कई लोगों से बात करने पर पता चला कि केवल यू ट्यूब ही नहीं, इंस्टाग्राम और फेसबुक पर भी इस तरह का अनावश्यक और आपत्तिजनक कंटेंट बहुतायत में उपलब्ध है। मतलब सोशल मीडिया का वास्तविक उपयोग यही है। जांच करने पर पाया कि कुछ लोग साहित्यकार की आईडी बनाकर पीछे से यह सब कर रहे हैं। मैंने एक वॉइस ओवर ग्रुप में अपना सैंपल भेजा तो पता चला कि एडल्ट कंटेंट पर वाइस ओवर करना है जबकि रिक्वायरमेंट एक न्यूज ऑडियो की दी हुई थी। जिनसे बात हुई उनकी रिंगटोन में कृष्ण भजन बज रहा था। कास्टिंग और मॉडलिंग के समूहों में भी अनजान बनकर आवेदन किया तो नतीजे चौंकाने वाले थे। नब्बे प्रतिशत आवश्यकता बाज़ार की ही थी। मॉडलिंग और कास्टिंग की आवश्यकता वालों तक कई महीनों कोशिश करने के बाद भी नहीं पहुंच पाई।
हर रोज़ हम अपराधियों को सख़्त सजा देने की गुहार लगाते हैं। न्यूज चैनल पर या समाचार पत्र में ऐसी घटनाओं को देखकर संवेदना व्यक्त करते हैं। कैंडल मार्च करते हैं। कानून बनाने की और बदलने की रट लगाते हैं तो इस ओर से उदासीन क्यों हो जाते हैं ?
आज़ के समय में, शहरों में विशेष रूप से बड़े शहरों में हर इंसान अकेला है। कहना गलत नहीं होगा कि मोबाइल ही सबसे बड़ा दोस्त बन गया है। आंख खुलते ही सबसे पहले मोबाइल चैक किया जाता है और मोबाइल चैक करके ही सोया जाता है।
मोबाइल हमारी आवश्यकता है इसमें दो राय नहीं हैं। मोबाइल के साथ हर हाथ में आने वाले सोशल मीडिया के बाजार पर नियंत्रण लगाना ज़रूरी है। आपत्तिजनक घटनाओं का घटना, अनावश्यक संबंधों के जाल में फंसना यह सब सोशल मीडिया से प्रभावित है। मोबाइल कंपनी और सोशल मीडिया के उपयोग से जुड़े जो अधिकारी हैं यदि वे इस लेख को पढ़ें तो एक्शन ज़रूर लें।
परोक्ष रूप से बात करने की कोशिश मैंने भी की लेकिन कोई नतीज़ा नही निकल पाया। उन्होंने यह कहकर अपना पल्ला झाड़ लिया कि जिन्हें समस्या है वो मोबाइल ना खरीदें। अपने बच्चों को मोबाइल ना दें। दे रहे हैं तो उसे लॉक कर दें। सलाह अच्छी है लेकिन किस किस को मोबाइल लेने से रोका जा सकता है? एक सेवानिवृत्त व्यक्ति का मोबाइल कैसे लॉक किया जा सकता है ? जिसे रोकना है वो प्रस्तुतिकरण है।
दोहरे चरित्र को ना अपनाते हुए यदि स्थिति को गंभीरता को देखा जाए तो यह तय होना ज़रूरी है कि जो वस्तु हर छोटे बड़े के हाथ में जा रही है उस पर दिखाई जाने वाली विषयवस्तु मानदंडों के अनुरूप हो। ऐसा संभव ही नहीं है कि हम रामराज्य की कल्पना करें और किस्से कहानियां रावणराज्य के सुनाएं।
सोशल मीडिया के साथ साथ यही हाल ओ टी टी का भी है। इंटरनेशनल कंटेंट प्रोवाइडर कहकर कुछ भी परोसना युवाओं की मानसिकता को विकृत करना है। बहुत आवश्यक है कि समाज के सामने कुछ भी परोसने से पहले उसके मानदंड तय किए जाएं। वो मानदंड देखने वाला तय नहीं कर सकता है क्योंकि शब्दों का फरेब उसे गुमराह कर रहा है। मोरल स्टोरी के नाम पर उसे एडल्ट स्टोरी परोसी जा रही है।
नैतिकता तो अब हमारे वातावरण से ही गायब है लेकिन ज़िम्मेदारी तो होनी चाहिए कि पैसा कमाने के लिए सामाजिक मूल्यों को तार तार नहीं किया जाएगा। हां समाज के नागरिक होने के नाते हम सबकी भी यह ज़िम्मेदारी बनती है कि हम सब भी इसके विरोध में उतना ही ऊंचा स्वर बुलंद करें जितना कि ऐसे अपराधियों को सजा दिलाने के लिए किया जाता है। गलत सहन करना भी अपराध को बढ़ावा देना है।
अर्चना त्यागी
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