घर की जंजीरें

Alok Dhanwa is a revolutionary Hindi poet whose works reflect deep social, political, and human sensitivity. Through poems like “Janta Ka Aadmi,” “Goli Dago Poster,” and “Bruno Ki Betiyan,” he voiced resistance against oppression and celebrated the dignity of common people. This article presents a detailed insight into his life, ideology, and literary contribution. ब्रूनो की बेटियां,कपड़े के जूते,भागी हुई लड़कियाँ, पतंग,आदि कई महत्वपूर्ण लंबी कविताएं लिख कर लोगों की चेतना जगाई। आलोक धन्वा जी की प्रथम कविता १९७२ में प्रकाशित होने के एक लंबे अंतराल के बाद लगभग ५० वर्ष की आयु में आपका एकमात्र काव्य संग्रह 'दुनिया रोज़ बनती है'१९९८ में प्रकाशित हुआ और इसके बाद वह जनमानस के दिलों में छा गए। आपकी कविताओं का अनुवाद अंग्रेजी ,रूसी सहित कई भाषाओं में हुआ है।

Oct 18, 2025 - 15:09
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घर की जंजीरें
Ghar ki janjire
घर की जंजीरें ..
कितनी ज्यादा दिखाई पड़ती हैं 
जब घर से कोई लड़की भागती है।।
यह कविता नहीं है.
यह गोली दागने की समझ है।
ऐसी बारीक संवेदनाओं की कूची से और क्रांतिकारी राजनीतिक परिदृश्य में गिने चुने लेखन से अपनी पहचान बना लेने का वैशिष्ट्य लिए कलम के धनी आलोक धन्वा जी अपने समय के हिंदी साहित्य के एक ऐसे हस्ताक्षर हैं जो अपने एकमात्र काव्य संग्रह से चर्चित और लोकप्रिय हुए।  सातवें आठवें दशक के कवि आलोक धन्वा जी का नाम नई कविता से जुड़ा है जिसमें आपने परंपरागत कविता से आगे नए भावबोध की अभिव्यक्ति के साथ ही नए मूल्यों और नए शिल्प विधान का प्रयोग किया और उसे अधिक उदार तथा व्यापक बनाया है। प्रसिद्ध हिंदी जनकवि आलोक धन्वा जी का जन्म २ जुलाई १९४८ को बिहार के मुंगेर जनपद के बेलबिहमा गाँव में एक साधारण परिवार में हुआ था। यह गाँव छोटे पहाड़ों से उतरने वाली छोटी नदियों से घिरा प्राकृतिक सौंदर्य समेटे है जिसके दिव्य दृश्य और सुंदरता ने बाल मन को आकर्षित कर उसे सहजता और सरलता प्रदान कर सृजनात्मक दिशा दी।
बहुत छोटी उम्र से ही आलोक धन्वा जी साहित्यकारों की पुस्तकें पढ़ने लगे और प्रकृति तथा समाज से प्रेरित होकर छोटी आयु से ही सृजन आरंभ कर दिया। आपकी प्रारंभिक शिक्षा गाँव में ही हुई। बाद में उच्च शिक्षा के लिए आप पटना विश्वविद्यालय गए।
आपका लेखन मुख्यतः कविता,निबंध और आलोचना पर केंद्रित है। आलोक धन्वा जी की कविताएँ व्यक्तिगत अनुभवों,सामाजिक मुद्दों और मानवीय संवेदनाओं को उजागर करती हैं। स्वयं कवि के शब्दों में 'मैं इत्तिफाकन कवि हूँ।
`जनता का आदमी' 
आलोक धन्वा जी की प्रथम कविता है जो १९७२ में 'वाम' पत्रिका में प्रकाशित हुई थी।
इस कविता की कुछ पंक्तियां
बर्फ काटने वाली मशीन से लेकर 
आदमी काटने वाली मशीन तक 
मेरी कविता गुजरती है..
मैं क्यों नहीं लिख पाता हूँ वैसी कविता
जैसी बच्चों की नींद होती है,
पके हुए जामुन का रंग होता है,
मैं वैसी कविता..
इन पंक्तियों में सार्वजनिक संवेदना,सार्वजनिक मानव पीड़ा, पीड़ा का विरोध और मर्म सब कुछ हृदय में गहराई तक उतरता है जो हमें संवेदित ही नहीं आंदोलित भी करता है। इसी वर्ष `फ़िलहाल पत्रिका' में `गोली दागो पोस्टर' नाम की एक और कविता छपी। इस कविता की कुछ पंक्तियां से विचारों की गहनता को समझा जा सकता है..
क्या उन्नीस सौ बहत्तर की इस बीस अप्रैल को मैं अपने बच्चे के साथ
एक पिता की तरह रह सकता हूँ?
स्याही से भरी दवात की तरह-
एक गेंद की तरह
क्या मैं अपने बच्चों के साथ
एक घास भरे मैदान की तरह रह सकता हूँ?
इस कविता में उनके विचार जितने सशक्त हैं, भाषा उतनी ही सरल है। कविता आसानी से सभी लोगों के समझ में आ जाती है और सीधे हृदय में प्रवेश करती है। इन दोनों कविताओं से अपनी महत्त्वपूर्ण उपस्थिति दर्ज कराकर वामपंथी सांस्कृतिक आंदोलन को नई दिशा दी।
इसके बाद ब्रूनो की बेटियां,कपड़े के जूते,भागी हुई लड़कियाँ, पतंग,आदि कई महत्वपूर्ण लंबी कविताएं लिख कर लोगों की चेतना जगाई। आलोक धन्वा जी की प्रथम कविता १९७२ में प्रकाशित होने के एक लंबे अंतराल के बाद लगभग ५० वर्ष की आयु में आपका एकमात्र काव्य संग्रह 'दुनिया रोज़ बनती है'१९९८ में प्रकाशित हुआ और इसके बाद वह जनमानस के दिलों में छा गए। आपकी कविताओं का अनुवाद अंग्रेजी ,रूसी सहित कई भाषाओं में हुआ है।
आपकी कविताओं में इन्सानी सरोकार के साथ-साथ हवा पानी रेलवे पशु-पक्षी चांद-तारे तक शामिल हैं जैसे- 
उनके रक्तों से ही फूटते हैं पतंग के धागे
और
हवा की विशाल धाराओं तक उठते चले जाते हैं
जन्म से ही कपास वे अपने साथ लाते..
सातवें दशक के उत्तरार्द्ध में बदलते सामाजिक परिदृश्यों और सत्ता के क्रूर स्वरूप ने जनमानस को झकझोर दिया फिर कवि मन और कलम कैसे अछूती रह सकती है। तब आलोक धन्वा जी ने अपनी समाज के प्रति जन भागीदारी निभाते हुए अपनी रचनाओं को एक नए प्रतिमान द्वारा प्रस्तुत किया। 
चिड़ियाँ बहुत दिनों तक जीवित रह सकती हैं-
अगर आप उन्हें मारना बंद कर दें
बच्चे बहुत दिनों तक जीवित रह सकते हैं
अगर आप उन्हें मारना बंद कर दें
भूख से
महामारी से
बाढ़ से और गोलियों से मारते हैं आप उन्हें
बच्चों को मारने वाले आप लोग !
आपकी रचनाओं में मध्यमवर्गीय चेतना के प्रतिरोध का स्वर के साथ वैचारिक नेतृत्व भी है शोषण और शोषक के सभी रूपों की परख में आप सक्षम हैं और अपनी कविताओं में बार-बार इसे उजागर करते हैं और जनता के आत्मसम्मान को जगाते हुए प्रशिक्षण के साथ समाधान भी देते हैं।
ब्रूनो की बेटियां कवि की महिला विमर्श की कविता है
वे टाट और काई से नहीं बनीं थीं
उनके चेहरे थे केश थे
और परछाई थी धूप में
वे पृथ्वी के आबादी में थीं
आज उन्हें जिंदा जला दिया गया..
स्त्री के श्रम और सामर्थ्य को रेखांकित कर उसे सरल शब्दों में मार्मिकता का ऐसा जीवंत पुट दिया जो लोगों को सोचने पर विवश करतीं हैं। आपने अपनी कविताओं में सामाजिक,राजनीतिक और मानवीय मुद्दों पर गहरी चिंता व्यक्त की है।इतने गहन विचारों को लिखने के बाद भी आपकी भाषा आम लोगों की भाषा की भांति ही सरल और सहज है जिससे आप सभी से सशक्त तरीके से जुड़ जाते हैं। आपकी रचनाओं में बिना लाग लपेट के सीधी बात कही गई है। नई दृष्टि और नए विधान का आपने प्रयोग किया है। जहाँ पर आपने प्रतीकात्मक व्यंजना में बात कही है उसमें भाषा निखर कर पाठकों के समक्ष आई है। आपकी कविताओं में एक वाचिक गुण है, जो पढ़ने के साथ-साथ सुनने में भी आनंद देती है।
विचारों और भावनाओं से पूर्ण आपने कम लिखते हुए भी बहुत प्रभावशाली लिखा है। आपने अपनी रचनाओं में देशी-विदेशी शब्दों का प्रयोग किया है। मानवीय संवेदना को उकेरने के लिए मुहावरों में भी नयापन लाने की कोशिश की है। भले ही आपने अलंकारों के प्रयोग पर अधिक बल नहीं दिया, लेकिन परहेज़ भी नहीं किया और यत्र-तत्र स्वाभाविक रूप से अलंकारों का प्रयोग किया है। आपकी कविता मुक्त छंद में लिखी है लेकिन उसमें लयात्मकता भी है। 
आपकी रचनाएं किसी दर्शन के साथ बंधी नहीं है और सभी स्तर के यथार्थ को,लोक जीवन की अनुभूति को और समकालीन सामाजिक विडंबना को चित्रित करतीं हैं। मानवीय संवेदनाओं के साथ ही साथ राजनीति पर करारा व्यंग्य करते हुए आपने आम आदमी का स्वरूप सदैव सामने रखा है।
कविताओं के अतिरिक्त आलोक धन्वा जी की सांस्कृतिक-वैचारिक सक्रियता भी रही है जहाँ आप विभिन्न लेखक संगठनों और सांस्कृतिक मंचों से जुड़े रहे हैं।
आपकी रचना-यात्रा के इतने समय के बाद भी आप लेखन व प्रकाशन के मामले में वह अत्यंत संकोची, आत्म-संशयी और संयमी रहे हैं। आलोक धन्वा जी को उनके साहित्यिक योगदान के लिए कई  पुरस्कार मिले हैं, जिनमें साहित्य अकादमी पुरस्कार शामिल है। साथ ही आपको..
पहल सम्मान
नागार्जुन सम्मान
फिराक गोरखपुरी सम्मान
गिरिजा कुमार माथुर सम्मान
भवानी प्रसाद मिश्र स्मृति सम्मान
राहुल सम्मान
बिहार राष्ट्रभाषा परिषद् का साहित्य सम्मान
बनारसी प्रसाद भोजपुरी सम्मान 
जैसे कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है।
संक्षेप में आलोक धन्वा जी का साहित्यिक योगदान हिंदी कविता और आलोचना में अत्यंत महत्वपूर्ण है। आपकी कृतियाँ न केवल साहित्य के प्रति प्रेम को जागृत करती हैं, बल्कि सामाजिक और मानवीय मुद्दों पर भी विचार करने के लिए प्रेरित करती हैं। आपके सृजन और कार्य आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणादायक रहेंगे।
जन जन की वाणी बने,दिया भाव चैतन्य।
लिख धन्वा आलोक को,कलम हुई मम् धन्य।।
अनिता सुधीर आख्या
लखनऊ, उत्तर प्रदेश

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