बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी प्रख्यात शिकारी जेम्स एडवर्ड कार्बेट (जिम कार्बेट)
Jim Corbett was not just a legendary hunter but also a compassionate writer, naturalist, and humanitarian. Through classics like “Man-Eaters of Kumaon” and “The Man-Eating Leopard of Rudraprayag,” he immortalized India’s wildlife and mountain life. In his honor, India’s first national park was renamed Jim Corbett National Park, symbolizing his transformation from hunter to conservationist.जिम जीवन भर अविवाहित रहे। उन्हीं की तरह उनकी बहन मैगी (मार्गेट विनीप्रâेड कार्बेट) ने भी विवाह नहीं किया। दोनों भाई बहन सदैव साथ-साथ रहे और एक दूसरे का सुख-दुःख आपस में बांटते रहे। कुमाऊँ तथा गढ़वाल में जब कोई आदमखोर शेर/चीता या अन्य वन्य पशु आ जाता था तो प्रशासन द्वारा जिम को बुलाया जाता था।जिम वहाँ जाकर सबकी रक्षा कर आदमखोर को मार कर ही लौटते थे।
जिम कार्बेट की कहानी आज भी गढ़वाल और कुमाऊं के लोगों के दिल दिमाग में बसी हुई है । जिम कार्बेट एक कुशल शिकारी के साथ प्रकाशक व लेखक थे।वे शिकार करने में बहुत दक्ष थे।वे अधिकतर अपना शिकार जंगल में अकेले घूमकर रात-रात भर आदमखोर जानवरों के पदचिन्हों को देखकर उनका पीछा करके करते, मौके का इंतजार करते और जान जोखिम में डालकर उनका शिकार करते थे। आदमखोरों द्वारा मारे गए व्यक्ति या जानवरों के पास नजदीक के पेड़ पर बनाये गये मचान या डाल पर रातभर अपनी बंदूक के साथ अकेले बैठकर बारिश-गर्मी-सर्दी में भी कीड़ों-मकोड़ों के साथ रात गुजारते और हर समय चौकन्ने रहते हुए, समय आने पर शिकार करते। उन्हें स्थानीय भाषा के साथ पक्षियों और शेर-तेंदुओं की आवाज में बात करना भी आता था जिसके द्वारा वे कभी कभी उन्हें आकर्षित कर अपने पास बुलाकर शिकार करते थे। उनको उत्कृष्ट अवलोकन, तेज तर्रार और महान सहनशक्ति का आशिर्वाद प्राप्त था। वे जंगल के संकेतों और वन्य जीवों की हरकतों को पढ़ सकते थे और जंगल में. घूमते समय अपनी सभी इंद्रियों (दृष्टि, श्रवण और गंध) का इस्तेमाल कर सकते थे। उनके नाम १९ बाघों और १४ तेंदुए मारने का रिकार्ड है।
जिम कार्बेट आयरिश मूल के भारतीय लेखक व दार्शनिक थे। उन्होंने मानवीय अधिकारों के लिए संघर्ष किया। वे एक सहृदय व्यक्ति थे। भारत के ग्रामीण और पहाड़ों पर रहने वाले गरीब व्यक्तियों से उन्हें हमदर्दी थी, गाहे बगाहे अपनी सामर्थ्य के अनुसार वे उनकी निष्काम भाव से मदद भी करते थे।
जिम के परिवार में माता-पिता के अलावा १२ भाई बहन थे जिसमें उनका नंबर आठवां था।उनके पिताजी नैनीताल में पोस्टमास्टर थे और जब उनकी मृत्यु हुई तब जिम मात्र ४ वर्ष के थे।उनकी माँ ने अपने सभी १२ बच्चों का लालन- पालन अपने विधवा पेंशन से बड़े पुत्र के साथ की जो नैनीताल में पिता के स्थान पर पोस्टमास्टर नियुक्त हो गये थे।
जिम कार्बेट का जन्म २५ जुलाई १८७५ नैनीताल यूनाइटेड प्रोविंस ( अब उत्तराखंड),ब्रिटिश राज्य ( अब भारत)मे हुआ था।जिम बचपन से ही बहुत मेहनती और निडर व्यक्ति थे।जिम ने प्रारंभिक शिक्षा नैनीताल के ओपनिंग स्कूल से की,बाद में सेंट जोसेफ कालेज में दाखिला लिया लेकिन स्थिति ठीक न होने के कारण मात्र १८ वर्ष की उम्र में अपने ६ सदस्यों वाले परिवार का भरण पोषण करने की उन्हें जिम्मेदारी उठानी पड़ी इसलिए उन्होंने मोकामा घाट(बिहार)जाकर रेलवे में काम किया जहाँ वे २० साल तक रहे।वहाँ वे अपने साथ लगे गरीब मजदूरों/कर्मचारियों को पैसे व सेवा से भी मदद करते थे।उन्होंने ड्राइवरी,स्टेशन मास्टरी तथा सेना में भी काम किया और अंत में ट्रांसपोर्ट अधिकारी तक बने परन्तु उन्हें वन्य जीवों का प्रेम हमेशा अपनी ओर आकर्षित करता रहा।जब भी उन्हें समय मिलता वे कुमाऊँ के वनों में घूमने निकल जाते। वन्य पशुओं को वे बहुत प्यार करते थे पर जो वन्य जन्तु मनुष्य का दुश्मन हो जाता था उसे वे मार देते थे। वे न केवल शिकारी बल्कि एक संरक्षक, चमड़े का कार्य करने वाला, जंगली जानवरों का फोटो खींचने वाले तथा बढ़ई भी थे।उन्होंने उत्तराखंड के गढ़वाल जिले में अनेक आदमखोर बाघों को मारा था जिसमें रुद्रप्रयाग का आदमखोर तेंदुआ भी शामिल था। चम्पावत मे सैकड़ों लोगों का शिकार करने वाली आदमखोर बाघिन से भी जिम ने ही लोगों को छुटकारा दिलाया था। मगर बाद मे उनके विचार पलटने से और घाटी में बाघों की संख्या घटती देखकर उन्होंने सिर्फ छायाचित्र खींचने की नीति अपनाई।
यह भी कहा जाता है कि उनके समय में उत्तराखंड व उत्तर प्रदेश में डाकू मानसिंह का आंतक छाया हुआ था,उसे पकड़ने के लिए ब्रिटिश सरकार ने जिम कार्बेट कि मदद ली थी परन्तु इस बात का कोई अधिकारिक प्रमाण नहीं है।
गर्मियों में जिम कार्बेट का परिवार नैनीताल में आयरपाट स्थित `गुर्ती हाउस' मे रहता था।वे उस मकान में १९४५ तक रहे। सर्दियों मे कार्बेट परिवार `कालाढुंगी' स्थित वाले अपने मकान में आ जाते थे जो अब संग्रहालय बन गया है।१९४७ मे जिम अपनी बहन मैगी के साथ केन्या चले गये थे जहाँ ७९ वर्ष की उम्र में उनकी १८ अप्रैल १९५५ में मृत्यु हो गई।
जिम जीवन भर अविवाहित रहे। उन्हीं की तरह उनकी बहन मैगी (मार्गेट विनीप्रâेड कार्बेट) ने भी विवाह नहीं किया। दोनों भाई बहन सदैव साथ-साथ रहे और एक दूसरे का सुख-दुःख आपस में बांटते रहे।
कुमाऊँ तथा गढ़वाल में जब कोई आदमखोर शेर/चीता या अन्य वन्य पशु आ जाता था तो प्रशासन द्वारा जिम को बुलाया जाता था।जिम वहाँ जाकर सबकी रक्षा कर आदमखोर को मार कर ही लौटते थे।
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जिम के सम्मान में भारत सरकार ने उत्तराखंड के नैनीताल जिले के रामनगर के पास स्थित भारत के सबसे पुराने रास्ट्रीय उद्यान पार्क जो १९३६ मे लुप्तप्राय बंगाल बाघ की रक्षा के लिए हैली नेशनल पार्क के रूप में स्थापित किया गया था, उसका नाम बदलकर जिम कार्बेट रास्ट्रीय उद्यान कर दिया।
जिम कार्बेट पास ही कोशी नदी के बीचोबीच एक चट्टान पर गर्जिया देवी (माँ पार्वती) का खूबसूरत मंदिर ९० सीढियां चढ़कर अत्यंत सुंदर, मनोहर प्रकृतिक दर्शनीय पिकनिक स्थल है। यह रामनगर से १२ किमी की दूरी पर है। लेखक ने अपने युवावस्था मे १९७६ में इस स्थान कि यात्रा अपने स्कूटर से सपत्नी की थी जब वह काशीपुर शुगर फैक्ट्री में कार्यरत था।
जिम के जमाने में यह क्षेत्र घने जंगलों और पहाड़ से घिरा हुआ था तब अक्सर शेर व अन्य जंगली जानवर वहाँ आकर पानी पीते थे। आज भी वहाँ के वातावरण के कल्पना मात्र से रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
जिम ने शिकार के उपर अपने अनुभवों के आधार पर सरल भाषा में बहुत पुस्तकें लिखीं जिनमें से कुछ चर्चित निम्नवत हैं :-
1-Man Eaters of Kumaon
2-The Temple Tiger & More Man Eaters of Kumaon
3-The Man Eating Leopard of Rudraprayag
4-My India
5-Jungle Lose
6- Tree Tops.
Man Eaters of Kumaon उनकी आत्मकथा है। उनके लेखन ने वन्यजीव प्रेमियों की कई पीढ़ियों को प्रेरित किया है।
उनके जीवन पर आधारित कई फिल्में, टीवी सीरियल और डाक्यूमेंट्री बनी है।
जिम कार्बेट जब केन्या मे रह रहे थे तभी इंगलैंड की युवा राजकुमारी एलिजाबेथ अपने पति व परिवार के साथ न्योरी मे शिकार और वन की फोटोग्राफी हेतु ५ फरवरी १९५२ मे पधारीं थी।वहाँ उनके लिए पेड़ के ३० फुट ऊपर झोपड़ी बनाई गई थी जिस पर सीढी़ द्वारा जाया जा सकता था। उस प्रवास के समय जिम को वहाँ उनसे मिलने के लिए आमंत्रित किया गया जहाँ उन्होंने एलिजाबेथ को शिकार व फोटोग्राफी के प्रति शौक व उत्साह से लबरेज देखा था।वे वहाँ रातभर झोपड़ी के बाहर अपनी बंदूक के साथ सीढ़ियों पर बैठ कर जंगली जानवरों पर नजरें टिकाये रहते ताकि राज परिवार को कोई नुकसान न पहुंचे।
६ फरवरी १९५२ के सुबह नाश्ते के उपरांत राजकुमारी को सूचित किया गया कि बीती रात, उनके पिता तत्कालीन इंग्लैंड के राजा की सोते समय मृत्यु हो गई जिसके बारे में वहाँ रखी डायरी में अपने मृत्यु से कुछ दिन पहले जिम ने लिखा था :-
' Forthe first time in the history of the World a young girl climbed into a tree on day a Princess & after having what she described as her most thrilling experience,she climbed down from the tree the next day a queen '.
God bless her.
Nyeri, 6 April 1955
सुभाष चन्द्रा
लखनऊ
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