नए वैज्ञानिक आयाम और आविष्कार

मोबाइल फोन के इस्तेमाल और ब्रेन कैंसर के बीच कोई महत्वपूर्ण संबंध नहीं है। यह अध्ययन अब तक का सबसे बड़ा और विस्तृत विश्लेषण है, जिसमें १९९४ से २०२२ के बीच प्रकाशित ६३ अध्ययनों को शामिल किया गया है। ऑस्ट्रेलिया की मोनाश यूनिवर्सिटी के केन कैरिपिडिस और वोलोनगॉन्ग यूनिवर्सिटी की सेरा लूगरान द्वारा किए गए अध्ययन के आंकड़े बताते हैं कि मोबाइल फोन इस्तेमाल करने वालों और न करने वालों के बीच कैंसर के खतरे में कोई खास अंतर नहीं है।

Dec 2, 2024 - 13:01
Dec 2, 2024 - 14:53
 0  3
नए वैज्ञानिक आयाम  और आविष्कार
scientific dimensions and inventions
इस अंक से एक प्रयास शुरू कर रहे हैं जिसमें हम बात करेंगे विज्ञान में हो रही प्रगति और ऐसी खोज व आविष्कारों की जिनका हमारे जीवन से निकट का सरोकार है। इनमें कुछ अविष्कारों की चर्चा इस लेख में करेंगे और कोशिश रहेगी कि आगे भी इस तरह की विज्ञान सम्बंधित काम की जानकारियां आपके लिए जुटाई जाएँ। 
१.रेडमैटर-  नया सुपरकंडक्टर मैटेरियल
ऐसे वैज्ञानिक आविष्कारों की बात करें तो पहला है 'रेडमैटर' जो एक ऐसे सुपरकंडक्टर मैटेरियल की खोज है जो कई क्षेत्रों में बड़ी क्रांति लाने वाली है। वैज्ञानिकों की एक टीम का कहना है कि उन्होंने एक नए सुपरकंडक्टर मैटेरियल की खोज की है, जो ऊर्जा और इलेक्ट्रॉनिक्स की दुनिया को बदल सकती है। इस सफलता से होवरिंग ट्रेनों और अल्ट्रा-कुशल विद्युत ग्रिड का का रास्ता आसान हो गया है। इस रिसर्च को साइंटिफिक जर्नल नेचर (र्‍aूल्rा) में पब्लिश किया गया है। साइंटिस्टों ने इसका नाम रेडमैटर रखा है। नेचर जर्नल को विश्व की सबसे प्रतिष्ठित विज्ञान जर्नल माना जाता हैं।
न्यूयॉर्क में रोचेस्टर यूनिवर्सिटी में रंगा डायस नाम के एक असिस्टेंट प्रोफेसर और उनके सहयोगियों ने हाइड्रोजन, नाइट्रोजन और ल्यूटेटियम से एक ऐसे मैटेरियल बनाने का दावा किया है, जो सिर्फ ६९ डिग्री फ़ारेनहाइट या २० डिग्री सेल्सिअस के तापमान और एक १ गीगापास्कल के दबाव पर सुपरकंडक्टिव हो जाती है। यह पृथ्वी की सतह पर वायुमंडलीय दबाव का लगभग १०,००० गुना है, कमाल की बात तो ये है कि ये पिछले सुपरकंडक्टिंग मैटेरियल को बनाने की तुलना में बहुत कम दबाव है। रिसर्चस ने इसमें लिखा है कि कैसे उन्होंने तीन कंपोनेंट को एक डिवाइस की मदद से, जो सामग्री को अत्यधिक उच्च दबाव में कंप्रेस करता है, दो हीरों के बीच दबाकर ये मैटेरियल बनाया है। रिसर्चस ने बताया कि इस सब्सटेंस को तोड़ने पर इसका रंग नीले से लाल हो गया, जिसके बाद हमने इसे ‘रेडमैटर' (Rा््स्aूूी) नाम दिया। 
वैज्ञानिकों के मुताबिक, इस कमाल के मैटेरियल में सुपरकंडक्टिंग गुण हैं जिनकी वजह से ऐसे पावर ग्रिड बनाए जा सकते हैं जो तारों में प्रतिरोध के कारण होने बर्बाद होने वाली २०० मिलियन मेगावाट घंटे (श्ेंप्) की ऊर्जा को बचा सकते हैं। इसके अलावा हाई स्पीड ट्रेनों के निर्माण में भी यह मैटेरियल काफी काम आ सकता है। इसकी वजह से श्Rघ् और मैग्नेटोकार्डियोग्राफी जैसी मेडिकल इमेजिंग और स्कैनिंग टेक्निक्स की कीमतों में काफी गिरावट आ सकती है। सिर्फ इतना ही नहीं, इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादों को ज्यादा तेज और कारगर बनाने में भी रेडमैटर काफी काम आ सकता है।
साधारण भाषा में कंडक्टर और नान कंडक्टर में अंतर समझें तो कंडक्टर में से हो कर इलेक्ट्रान जा सकते हैं और नान कंडक्टर में नहीं। लेकिन कंडक्टर में इलेक्ट्रान के फ्लो में अवरोध रहता है जिससे उर्जा का क्षय होता है जबकि सुपर कंडक्टर में यह प्रतिरोध कम और हाइपर सुपर कंडक्टर में यह प्रतिरोध घटकर शून्य हो जाता है। फिर आप कहेंगे फिर हाइपर सुपर कंडक्टर का प्रयोग ही क्यों नहीं किया जाता? वह सिर्फ इसलिए की इस बनाना बहुत कठिन है और इसके लिए बहुत कम तापमान और बहुत ज्यादा प्रेशर लगता है अत: इन जरूरतों को पूरा करना मुश्किल होता है, लेकिन यह पथार्थ बहुत बहुत अधिक उपयोगी है।
२. डॉग-टू-ह्यूमन ट्रांसलेटर 
(कुत्तों की भाषा को समझने का यंत्र)  
आजकल कुत्ते पलना बहुत ही आम हो गया है हर घर में कुत्ते मिल जायेंगे और अगर आप अपने पालतू कुत्ते से बहुत ज़्यादा प्यार करते हैं तो आपको पता होगा कि वो क्यों भौंक रहा है? कभी-कभी आप उसके लगातार भौकने की वजह समझ नहीं पाते हैं। इसके अलावा आपने कार्टून्स में देखा होगा कि कुत्ता बोलता नज़र आता है। ऐसा आपको अब हकीक़त में भी देखने को मिल सकता है। वैज्ञानिकों ने एक ऐसे उपकरण को डिज़ाइन किया है, जो कुत्तों के भौंकने की आवाज को इंसानी भाषा में ट्रांसलेट कर देगा। इस उपकरण का नाम ‘डॉग-टू-ह्यूमन ट्रांसलेटर’ है। इस प्रकार इस उपकरण की मदद से आप अपने कुत्ते से दिल खोल कर बात कर सकते हैं।
३.एस्प कैटरपिलर- जिसका जहर कोशिका में छेद कर देता है
आपने बहुत बार देखा होगा कि शरीर में इंजेक्शन के माध्यम से दवा पहुंचायी जाती है।लेकिन हर जगह इंजेक्शन से दवा देना संभव नहीं होता इसलिए दवा का लाभ मिलने में विलम्ब होता है लेकिन यदि कुछ ऐसा हो जाय की दवा एकदम सही जगह पर मिले तो मरीज को तुरंत फायदा पहुँच जायेगा। जुलाई में प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, एस्प कैटरपिलर के जहर में एक असामान्य, आकार बदलने वाला प्रोटीन होती है । जब यह विष किसी कोशिका की बाहरी सतह पर पहुँचता है, तो यह प्रोटीन डोनट जैसी आकृति बनाता है, फिर कोशिका की दीवार में छेद कर देता है।
कैटरपिलर के प्रोटीन की छेद करने वाली प्रकृति का उपयोग करके, इंजीनियर दवा वितरण की ऐसी रणनीतियाँ विकसित कर सकते हैं जो ‘दवाओं को कोशिकाओं के अंदर पहुँचाती हैं जहाँ उन्हें काम करने की ज़रूरत होती है,’ अध्ययन के सह-लेखक एंड्रयू वॉकर, जो ऑस्ट्रेलिया में क्वींसलैंड विश्वविद्यालय में आणविक जैव वैज्ञानिक हैं, ने आॅस्ट्रेलियाई प्रसारण निगम की एंटोनिया ओ'फ्लेहर्टी को बताया की इससे यह उम्मीद जगती है कि जल्दी ही वैज्ञानिक एक ऐसी प्रणाली विकसित कर सकेंगे जिसके द्वारा अच्छी मानव कोशिकाओं को न छेड़ते हुए सीधे कैंसर कोशिकाओं या रोगजनकों को लक्षित करने वाले विषाक्त पदार्थों को डिज़ाइन किया जा सके और जिससे दवा का सही और तुरंत उपयोग हो सके। यह एक बहुत बड़ी और उपयोगी खोज है जिसका प्रयोग चिकित्सा क्षेत्र में अतुलनीय होगा। इस काम में एक या दो दशक अभी और लग सकते हैं, लेकिन शोध के इस क्षेत्र का मतलब यह हो सकता है कि एक दिन, एस्प कैटरपिलर का जहर न केवल दर्द बल्कि राहत भी दे सकता है।
४.ऑक्सीजन-आयन बैटरा- लम्बी चलने वाली बैटरी  
वियना प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय ने २०२३ में सिरेमिक सामग्री पर आधारित ऑक्सीजन-आयन-बैटरी का आविष्कार किया गया है। यदि यह खराब भी हो जाती है, तो ये स्वत: ही ठीक भी हो जाती हैं, इसलिए संभावित रूप से इसका जीवनकाल बहुत लंबा होगा  है। इसके अलावा, इसमें किसी दुर्लभ तत्व के उपयोग की आवश्यकता नहीं होती है और यह दहनशील (घ्हfत्aस्स्aंत) नहीं होती है। बड़ी ऊर्जा भंडारण प्रणालियों के लिए, यह एक इष्टतम समाधान हो सकता है। लिथियम-आयन बैटरियाँ आज सर्वव्यापी हैं - इलेक्ट्रिक कारों से लेकर स्मार्टफ़ोन तक, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वे सभी क्षेत्रों में उपयोग के लिए सबसे अच्छा समाधान हैं। 
वैज्ञानिकों ने अब एक ऑक्सीजन-आयन बैटरी विकसित करने में सफलता प्राप्त की है जिसके कुछ महत्वपूर्ण लाभ हैं। हालाँकि यह लिथियम-आयन बैटरी की तरह उच्च ऊर्जा घनत्व को एकत्रित नहीं किया जा सकता है, लेकिन समय के साथ इसकी भंडारण क्षमता अपरिवर्तनीय रूप से कम भी नहीं होती है और सबसे बड़ी बात कि इसे पुनर्जीवित किया जा सकता है और इस प्रकार यह एक बहुत लम्बे समय तक प्रयोग में उपयोगी रह सकती है। ऑक्सीजन-आयन बैटरी बड़ी ऊर्जा भंडारण प्रणालियों के लिए एक उत्कृष्ट समाधान हो सकती है, उदाहरण के लिए नवीकरणीय स्रोतों से विद्युत ऊर्जा को संग्रहीत करना।
नई बैटरी अवधारणा स्मार्टफोन या इलेक्ट्रिक कारों के लिए नहीं है, क्योंकि ऑक्सीजन-आयन बैटरी केवल लिथियम-आयन बैटरी से लगभग एक तिहाई ऊर्जा घनत्व प्राप्त करती है और २०० से ४०० डिग्री फैरनहाइट के बीच के तापमान पर चलती है। यह तकनीक ऊर्जा भंडारण के लिए बेहद दिलचस्प है। सौर या पवन ऊर्जा को अस्थायी रूप से संग्रहीत करने के लिए एक बड़ी ऊर्जा भंडारण के लिए ऑक्सीजन-आयन बैटरी एक उत्कृष्ट समाधान हो सकती है।
५.मोबाइल फोन और ब्रेन कैंसर - एक मिथक 
अब अंत में आपके लिए सबसे महत्वपूर्ण खबर मोबाइल से सम्बंधित हैं। आजकल तो मोबाइल के बिना जीवन ही सूना सूना है। लगता है कि मोबाइल के बिना हम कुछ कर ही नहीं सकते तो ऐसे में आपके लिए खबर जानना जरुरी है। आपने बहुत से लोगों को कहते सुना होगा कि मोबाइल फोन के इस्तेमाल से कैंसर हो सकता है, लेकिन वैज्ञानिकों ने अब तक के सबसे व्यापाक अध्ययन के बाद कहा है कि यह सिर्फ एक मिथक है। अक्सर कहा जाता है कि मोबाइल फोन के इस्तेमाल से ब्रेन कैंसर हो सकता है। बहुत लंबे समय से ऐसी बातें कही जाती रही हैं क्योंकि फोन को सिर के पास रखा जाता है और इससे रेडियो तरंगें (नॉन-आयोनाइजिंग रेडिएशन) निकलती हैं। इसी वजह से लोगों में यह डर पैदा हुआ कि कहीं मोबाइल फोन से कैंसर का खतरा तो नहीं। 
अब एक नए व्यापक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि मोबाइल फोन के इस्तेमाल और ब्रेन कैंसर के बीच कोई महत्वपूर्ण संबंध नहीं है। यह अध्ययन अब तक का सबसे बड़ा और विस्तृत विश्लेषण है, जिसमें १९९४ से २०२२ के बीच प्रकाशित ६३ अध्ययनों को शामिल किया गया है। ऑस्ट्रेलिया की मोनाश यूनिवर्सिटी के केन कैरिपिडिस और वोलोनगॉन्ग यूनिवर्सिटी की सेरा लूगरान द्वारा किए गए अध्ययन के आंकड़े बताते हैं कि मोबाइल फोन इस्तेमाल करने वालों और न करने वालों के बीच कैंसर के खतरे में कोई खास अंतर नहीं है। यहां तक कि जिन लोगों ने १० साल या उससे ज्यादा समय तक मोबाइल फोन का इस्तेमाल किया, उनमें भी कैंसर का खतरा नहीं बढ़ा। इस अंक में इतना ही अब मिलेंगे अगले अंक में कुछ नयी और रोचक वैज्ञानिक खोजों के साथ।
डॉ. रवीन्द्र दीक्षित

What's Your Reaction?

like

dislike

love

funny

angry

sad

wow