हिंदी साहित्य में सदा अग्रणी रही महिलाएं 

Nov 16, 2023 - 17:23
Mar 17, 2024 - 17:37
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हिंदी साहित्य में सदा अग्रणी रही महिलाएं 
Women have always been pioneers in Hindi literature

जिस भारत की मातृ भाषा ही हिंदी हो। मां ही मातृ भाषा हिंदी अपने बच्चों को सिखाती हो । ऐसे भारत में रहने वाली महिला हिंदी साहित्य में पीछे कैसे रह सकती है। हमारी वैदिक पुराण की भाषा संस्कृत रही है। संस्कृत से ही हिंदी का उद्भव हुआ है। आदिकाल से ही विदुषि महिलाओं ने पद्य सुक्तियां आदि हमारे वेद  पुराणों में स्वरचित किये। अगर हम ऋग्वेद देखे तो सत्ताइस महिलाएं रचनाकार थी। जिन्होने सुंदर सुक्तों की रचना की । ऐसा कोई भी प्राचीन ग्रंथ नही है, जिसमें महिला साहित्यकार का उल्लेख न हो। वैदिक काल से ही महिलाओं के सर्वागीण विकास की बातें हमारे वैदों में लिखी गई है।  गार्गी वाचनकंवी और मैत्रेयी,लोपामुद्रा,अदिती दाक्षाय़णी महान  दार्शनिक वेदों की प्रसिध्द व्यख्यताएं थी। साहित्य और ज्ञान में उस समय के राजाओ और ज्ञानियों को धूल चटा चुकी थी।

ऐसी कई सम्मानीय विदुषियां हमारे वैदिक काल से ही साहित्य क्षेत्र में अपना परचम फैला चुकी है। भक्तिकाल में राजस्थान की मीरा बाई के पदों से कौन परिचित न होगा भला ! मीरा बाई ने कृष्ण भक्ति में "राग गोविंद,राग टिका,मीरा मल्हार,राग सोरठा", अनेक पद्य आज भी लोगों की जुंबा पर रमें हुए है। मीरा बाई के कई पद्य अंग्रेजी अनुवाद भी हुए है,जिन्हे विदेशों में आज भी गाये जा रहे है। ,सहजो बाई द्वारा लिखित ग्रंथ "सहज प्रकाश" मानव जीवन, प्रेम, सगुण - निर्गुण भक्ति आदि रचनाएं है। राजस्थान की प्रख्यात साहित्यकार संत दया बाई  का पहला ग्रंथ "दया बोध", दूसरा ग्रंथ "विनय- मलिका" प्रकाशित हुआ था | समय चक्र के साथ धीरे धीरे साहित्यिक चक्र भी चलता रहा।

 आधुनिक काल में हिंदी साहित्य में नव जाग्रति,नव चेतना का उदय हुआ. हिंदी साहित्य की सभी विधाओ पर महिलाओं की लेखनी खूब चली। आधुनिक काल- महाराष्ट्र की सावित्री बाई फुले देश की पहली शिक्षिका,समाज सेवी,और कवियत्री थी। महिलाओं की शिक्षा को बढावा देने वाली मराठी भाषी कवियत्री थी। अपनी कलम से समाज में फैली कुरीतियों रूढीवादी परम्पराओं पर अपनी कलम से प्रहार करती रही। सावित्री बाई फुलें की दो कविता संग्रह प्रकाशित हुए। पहला कविता संग्रह "बावन काशी", दूसरा "बावन काशी सुबोध रतनाकर" प्रकाशित हुआ । इनकी कविताओं में महिला शिक्षा को बढावा देना साथ उन्हें नई ऊर्जा प्रदान करना होती थी।

महाराष्ट्र की तारा बाई शिंदे को कैसे भूल सकते है। तारा बाई ने पुरूषवादी समाज में महिलाओं को स्वयं जाग्रत होना होगा, विषय पर रचनाएं रची । महिला पुरूष की तुलना करते हुए, नारी के समर्थन में तीक्षण अभिव्यक्ति की "जिसके हांथ में लाठी, वही बलवान बाकी सब निर्बल यही तो आचरण है तुम्हारा, तुमने अपने हांथ में धन दोलत रख कर नारी को कोठी में सिर्फ दासी बना कर,धौंस जमा कर दूनियां से दूर रखा है,उस पर अपना अधिकार जमाया" | झूठे सन्यासी दरिंदो पर तारा बाई के खूब व्यंग्यबाढ़ चले | तारा बाई ने खोखली रीती रिवाज पर पुरुष के दोहरे आचरण पर खूब लिखा| विधवाओं के साथ होने वाले अत्याचारों को रोकने के लिए कार्य किए | "स्त्री -पुरुष तुलना",संवाद पुस्तक प्रकाशित हुई |

सुभद्रा कुमारी चौहान - "सिंहासन हिल उठे..... खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी की रानी", ऐसा कोई व्यक्ति न होगा जिसने यह कविता न पढ़ी हो, वीर रस की यह कविता स्वतन्त्रता आंदोलन में प्रेणा स्रोत बनी, उस समय की प्रभात फेरी में यही कविता गाई जाती थी | सुभद्रा जी ने सन सत्तावन की लड़ाई का आँखों देखा हाल अपनी रचनाओं में समेटा था|इनकी रचनाएं राष्ट्रीयता की भावना से परिपूर्ण होती थी | वे रचनाकार होने के साथ साथ स्वतन्त्रता सेनानी भी थी, इन्होने देश की आजादी के लिए जेल में कई दिन निकालें | इन्होने जेल के अनुभव को भी लिख कर प्रकाशित कराया | इनका पहला कहानी संग्रह " बिखरे मोती "इनकी अधिकतर कहानियाँ स्त्री विमर्श पर ही होती थी, दूसरा "उन्मादी " "तीसरा सीधे साधे चित्र" नारीवाद, पारिवारिक समस्याओ पर रिश्तों पर इनकी कहानियाँ होती है |

इसमत चुगताई आपा हिंदी और उर्दू भाषी सशक्त साहित्यकार थी इन्होने महिलाओं से जुड़े मुद्दों को बेबाकी से अपनी कलम से निखारा, पुरुष प्रधन देश में रचनाओं को रखा | रूढ़िवादी के खिलाफ आवाज उठाने और लिखने पर उनको कई बार जोखिम भी उठाना पड़ा | लिहाफ,टेड़ी लकीर, जिद्दी,मासुमा,आदि, साथ ही कई कहानी संग्रह भी प्रकाशित हुए | 

अमृता प्रीतम यह पंजाब की सबसे लोकप्रिय साहित्यकार रही साथ ही यह पंजाबी भाषा की पहली कवियत्री और कहानीकार भी थी |इनका प्रसिद्ध उपन्यास "पिंजर", नागमणि, कोरे कागज, सागर और सीपीयां और अनेक कहानियाँ संग्रह, कविता संग्रह भी प्रकाशित हुए | साहित्यकार मालती जोशी इन्होने ने घरेलु और रिश्तों के ताने बानो "मैं चुनौती हूँ पनौती नहीं""प्यार के दो पल"ग्रह प्रवेश, आदि,कई कहानियाँ लिखी साथ ही उपन्यास भी प्रकाशित हुए|

 आज भी महिला साहित्यकार समाज में फैली बुराइयों पर तलवार के समान अपनी कलम चला रही है, आज महिला साहित्यकारों ने अपनी कलम और विचारों का लोहा मनवा चुकी है | आज साहित्यकार ललिता विम्मी की भारत पाकिस्तान बटवारे पर आधारित "उजड़ी हुई औरतें " उपन्यास, काफ़ी सराहया गया है, साथ ही कहानी संग्रह में भी औरतो के उत्पीड़न पर आधारित है | डॉ रचना सिँह, यह भी आज के माहौल में व्याप्त महिलाओं का आधुनिकता के नाम अश्लील फूहड़ हरकतों पर इनकी कलम ने तीखा वार किया है,डॉ रश्मि जोशी, प्रवीणा दवेसर, श्वेता नागर,कांता राय,आज भी महिला साहित्यकार अपनी कलम के जरिये समाज में व्याप्त बुराइयों से लड़ रही है | एक महिला का घर परिवार रिश्ते नाते, आस पड़ोस फिर समाज और देश के निर्माण में अहम योगदान होता है | समाज को बनाने वाली और सही दिशा दिखाने वाली महिला साहित्यकार को हमेशा कलम निष्पक्ष रखनी चाहिए|

यह कहते हुए दुःख हो रहा है, कि आज कुछ लेखक प्रसिद्धि और रुपयों के लिए अश्लील साहित्य परोसने लगे हैं | समाज में फैली बुराइयों की हिमायतों पर बखूबी लिख रहे हैं |, जिससे परिवार और समाज दोनों आज खतरे में है |

-वैदेही कोठारी स्वतंत्र पत्रकार एवं लेखिका

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