Tag: poem

पास बैठो

बैठो न पास जरा-सी देर  कि देख पाऊं तुम्हारी  आंखों में अपनी परछाईं।

हाइकु

सिर पर धर धूप की गठरिया- सूरज चला। फुनगियों से  उतरी धरा पर- धूप चिड़ैया। ...

पूर्णिका

आंधी से तूफानों से, ये मजदूर लड़ता है जलता है धूप में वो, तब चूल्हा जलता है ग...

श्रम का प्रतिदान

हो गया संतुष्ट  अपने हुनर का  बस ले दाम। नहीं, कभी नहीं  अपने सृजन पर  किया...

ज़िन्दगी

शामो सहर ख्वाब नये दिखला रही है जिंदगी। बस गुजरती बस गुजरती जा रही है जिंदगी।। ...

दिखावे की ज़िंदगी

पूर्वा दादी के साथ घूमने जाने के लिए जिद कर रही है। मेरे लाख कहने के बाद भी मेरे...

उलझन

अजय जी अपने निजी जीवन से न जाने क्यों त्रस्त थे ।अच्छे खासे पढ़ने वाले बच्चेअच्छी...