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Sahityanama Apr 25, 2024 0 109
नारी दुर्गा रूप को ,अबला कहे समाज। पहना कर फिर बेड़ियां,निर्बल करता आज ।
Sahityanama Apr 24, 2024 0 123
सीखो जीना अब समाज तुम एक काबिल नारी के संग
rangoli awasthi Apr 19, 2024 0 72
कविता - आज के युग में एक दूसरे की देखा देखी चलने वाले हम लोगों को , जो अपने इसी ...
Sahityanama Apr 17, 2024 0 107
प्रेम मेरे हिस्से उतना ही आया जितना जाल में फंसी मछली के हिस्से जीवन
Sahityanama Apr 16, 2024 0 102
बेटियाँ जब लौट आती हैं पीहर देखती है रूठा घर -द्वार अपना
Sahityanama Apr 16, 2024 0 105
सहना मत अन्याय को, इससे बड़ा न पाप। लो अपना अधिकार तुम, छोड़ो अपनी छाप ।
Sahityanama Apr 16, 2024 0 104
प्रेम और अनुराग से सिक्त था हृदय जो अब हमारे दिल से उठती वेदना है|
Sahityanama Apr 16, 2024 0 97
इस समाज की खातिर अबला, होती है बदनाम भला क्यों ?
Sahityanama Apr 12, 2024 0 84
लड़की पैदा होने पर जब लड्डू सारे गाँव बँटेगा.
Sahityanama Apr 3, 2024 0 98
आंधी तूफान चलती है साथ साथ, पर कर नही पाती
Sahityanama Mar 29, 2024 0 88
शिकायत बहुत थी जिंदगी से, पर बताता किसको? हर शख्स मुझे देखकर, बचता चला गया।
Sahityanama Mar 29, 2024 0 36
न रहेगी जिंदगी से शिकायत तुमको कभी, कई दिन से भूखे बच्चे की तरह,पल कर तो देखो।
Sahityanama Mar 29, 2024 0 35
उड़कर फुनगी पर चढ़े,रंगीली सी गात। कैसे वह पहचानती, होने वाली प्रात।।
Sahityanama Mar 29, 2024 0 30
पहला मधुकर रंग हो, इतना तो अधिकार। गोरी कोरी देह पर,दे पिचकारी मार।।
Sahityanama Mar 29, 2024 0 25
गई थी वस्त्र फैलाने, भाग कर झट से तू आई,
Sahityanama Mar 29, 2024 0 46
महिला बिन पुरुषों का अस्तित्व भला नज़र कहीं आता है
Sahityanama Nov 15, 2023 0 2065
Sahityanama Apr 25, 2024 0 741
Sahityanama Jun 21, 2024 0 498
Sahityanama Nov 23, 2023 0 497