कविता

अनमोल दीपक

अपने जीवन काल में मैंने कभी ऐसा  नहीं देखा है कि बारहों महीने में किसी दिन तु...

माँ अब बूढ़ी होने लगी हैं...

पिताजी की हठ पर अब माँ खीझ जाती हैं... काम करते-करते अब कई बार झीक जाती हैं...

मां

ममता मीठी खांड सी। ममता है अंबार ।

गर्भनाल या प्लेसेंटा

भिन्न-भिन्न प्रकार की मायें माँ प्रकृति के वृक्षस्थल पर

भोजन की कीमत

स्वाद  लेकर खा  रहा  रेस्त्रां में नौजवान, नज़रे उस पर टिकी शायद हो मेहरबान।

जिंदगी की कश्मकश

सुर  सुरा  सुंदरी  से महक  रही थी जिंदगी 

पुरानी किताबें और स्मृतियां

दायित्वों के बोझ तले, इक अरसा हुआ बिना मिले। घनिष्ठ मित्रता थी जिनसे, दायित्व...

मैं भारत हूं

मैं भारत हूं, मैं भारत हूं ,मैं भारत हूं , भारतीय सभ्यता संस्कृति की मैं विरासत...

बारिश जैसी है तुम्हारी याद

बिजली की चमक से  कौंध उठता है अतीत।

यमुना की कराह

किनारे लगी सीढ़ियों को बहुत दूर छोड़कर  यमुना ने बना लिया है अपनी मझधार को किन...

कहा क्यों नहीं?

अपने शरीर से थोड़ी दूर खड़ी हो कह रही थी खुद से जो किया सही किया माँ-बाबा का मा...

वेदना- सुजल

मानवता का शर्मनाक दृश्य  बचपन नालियाँ करता साफ कैसा होगा इनका भविष्य। ये नियत...

मेरे छोटे भाई

मेरे छोटे भाई जब से तू गया है , मेरे भीतर जो तर्पण चलता है,

सावन का महीना

माँ के प्रेम भरे स्पर्श का सुखद अहसास कराती है सुखदायक, सुहावना और मनोहारी मौसम

हुनर

अपने क्या पराए भी साथ खड़े होंगे जीवन में कभी मुश्किलों का सामना होगा

मृत्यु जब मेरे सिरहाने खड़ी होगी

रात-रात भर जाग कर जो मैंने कहानियाँ लिखी हैं उन कहानियों में मानवीय संवेदना और ...