आदमी को देता पहचान हृदय जिस पर लुटाता प्राण इसके बिन बदल जाता वेश का सखि साजन...
जन्म से मृत्यु तक आशाओं को ढोता, पूर्वनिश्चित रास्तों पर बेहोशी में लुढ़कता
इसमें भी है जीव, जीव को व्यथा न बांटो । पूज्यनीय हैं पेड़, पेड़ को कभी न काटो ।।
ऊँगली थाम जिसे दुनियां की सरपट सैर कराया वृद्धाश्रम की भेंट चढ़े हम, बेटा हुआ प...
मैं धरती माँ हूँ, ईश्वर की अनमोल रचना, प्राकृतिक-संसाधनों से परिपूर्ण चिर-यौवना,
शांति और सकून ममता और अपनत्व क्या क्या समझा था क्या से क्या बन गए आप ।
लगता है सूरज ने है ज़िद ठानी, आना है मुझको धरती पर, पीना है मुझको पानी।
मैं डरती हूँ अपनी उधेड़बुन मंहगी डायरियों में दर्ज करने से किसी भरोसे को तोड़न...
किस बात की अबला है तूं हौंसले प्रतन्च चढ़ा बौद्धिक ढंकार भर
ये कहानी जुबानी माँ के कष्ट को कहती हैं जो रुलाता है माँ को हर उस शस्क को कहती ...