फिर सोचती हूं गुस्से में बोला होगा, गुस्से में बोला होगा शायद! नहीं-नह...
बैठो न पास जरा-सी देर कि देख पाऊं तुम्हारी आंखों में अपनी परछाईं।
बुद्धि कलम दावात लिए कोरे पन्नों को हाथ लिए वाणी भावों का विमल विम्ब साहित...
शामो सहर ख्वाब नये दिखला रही है जिंदगी। बस गुजरती बस गुजरती जा रही है जिंदगी।। ...
बहुत पुरानी बात है तब की मैं अपने सपने को लगभग विस्मृत कर चुका हूं..! किंतु उस...