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" अकेलापन मेरा रहबर "

दीवारों से गले लग कर कर लेती हूँ मन हल्का ।

प्रेम भरी पाती

से ही पाती के नायक का सरनेम लिखने लगी थी । नेहा के दिल में अपने प्रेमी के लिए प्...

मां है ममता की मूरत

नौ माह तक बच्चों को गर्भ में रखती है न जाने कितने दुखों को सहती है, झेलती है फ...

वो दौर

घर मे सुकून रहता था, ख़ुद मे जुनून रहता था।

सही शिक्षा से जागृति लाकर अंधविश्वास मिटाये

ढोंगी एवं पाखंडी लोग जादू-टोने के नाम पर जनसामान्य को बेवकूफ बनाते है। इसके लिए ...

संतुलन बनाकर

डोर किसी के हाथ सधी, हम बने हुए कठपुतली। नाच रहे ज्यों हम ख़ुद हों,

भीतर का मौसम

टँगे रहा करते थे जिन पर दिन अपने बहुरंगे।  लुप्त हो गए शनैः शनैः 

संबंधों के धागे

अक्सर घिरा समस्याओं से, किन्तु किसी को नहीं जताया।

गज़ल

शीर्षक (मानवता)

शीर्षक (मानवता) (सचिन कुमार सोनकर)

शब्द और वाक्य

खो जाना चाहती हूं मैं किसी किताब के पन्नों के बीच

प्यारी मां

तेरी इस अलौकिक छवि के पीछे छुपे हैं सैंकड़ों त्याग जिन्हें चाहे अनचाहे तूने ब...

अनमोल दीपक

अपने जीवन काल में मैंने कभी ऐसा  नहीं देखा है कि बारहों महीने में किसी दिन तु...

माँ अब बूढ़ी होने लगी हैं...

पिताजी की हठ पर अब माँ खीझ जाती हैं... काम करते-करते अब कई बार झीक जाती हैं...

मां

ममता मीठी खांड सी। ममता है अंबार ।

गर्भनाल या प्लेसेंटा

भिन्न-भिन्न प्रकार की मायें माँ प्रकृति के वृक्षस्थल पर