कविता

योग

खान पान पर नहीं नियंत्रण  ठूंस ठूंसकर चरते हैं  जब पड जाते हैं बिस्तर पर फिर ...

जिजीविषा

पतझड़ हमेशा बुरा ही नहीं होता और न ही इसका आना पेड़ों की मृत्यु है,,, ये तो ए...

देखा है

तेरा-मेरा क्या करता है ? सुखी रोटी खाकर देश की रक्षा करते जवानों को देखा है ||

हमारे संस्कार हमारी धरोहर

दादी करें  जब पूजा-पाठ , और दादाजी सैर - सपाट । इन संस्कारों को  अपनायें , धर...

वसुंधरा को मान दे

धरा झुलस रही है और ये धूसरित अकाश है। मनुज के कर्मफल हैं ये, या प्रकृति उदास है?

ये पानी की बूंदें

हैं आँसू भी बहते ज़मीनों के संग संग, हैं अरमान मरते  ज़मीनों के संग संग,

रेडियो

मेरे दादा जी को सुनाता रोज खबर, लगाता हमारे लिए खबरो का अंबर,

जागो हे नवयुवकों

लोकतंत्र अब लोकतंत्र से,  भ्रष्टतंत्र में बदल गया।

एक कविता उनके नाम

कुछ दिवस की दूरियां रही पर लगता है बरसों की कुछ पल जैसे कटे ही नही जा रहे है अर...

वीर सैनिक

कलाई पर सजी राखी बहन की है कहती भैया फिर आना तू घर पर सुला मुझको तू लोरी आ...

तुमको वंदन हे रघुनंदन

ना जाने ये कैसी परीक्षा थी           सदियों - सदियों से प्रतीक्षा थी

चींटी के पर

"सर ये विनोद इधर क्यों आ रहा है?" "अरे वही...हर साल की तरह अपना प्रमोशन न होन...

नव वर्ष

भूल कर बीती बातों को एक नया मुकाम हासिल हो

राम सत्य है सदा से उनका न कोई सानी है

आज सनातनी  एक हुए तो  राममय हुआ संसार| हर जन-जन,कण -कण में छाई है खुशियां अपार|

सूखा पेड़

सूखे पेड़ को हराभरा होने की आश है खाद, बीज पानी की जरूरत इसे खास है

कौन हिन्दू है ?

एक सनातनी ने बौद्ध से कहा है- तुम हिन्दू नहीं, तुमने बुद्ध को चुना है। यह सुन...