आखिर किराये का घर छोड़ कर !!
आखिर किराये का घर छोड़ कर !!
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आखिर किराये का घर छोड़ कर !!

आखिर किराये का घर छोड़ कर , 

जाने लगे सब शहर छोड़ कर ,

अलग रास्ते है, अलग मंजिले है। 

आधा अधूरा सफर छोड़ कर , 

जाने लगे सब शहर छोड़ कर। 
जब दूर होंगे और पास होंगे ,

कुछ अपनी कहेंगे कुछ उनकी सुनेगे 
कदमो के निशां राहो पर छोड़ कर,

जाने लगे सब शहर छोड़ कर। 

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Written by Sahitynama

साहित्यनामा मुंबई से प्रकाशित साहित्यिक पत्रिका है। जिसके साथ देश विदेश से नवोदित एवं स्थापित साहित्यकार जुड़े हैं।

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