डरे डरे से हैं हम, मरे मरे से हैं हम
कैसे जिएं जिंदगी, सहमे सहमे से हैं हम।
चहुं ओर राज बेइमानों का
डगमगा रहा मिजाज सत्य का
विचलित विचारों से भरे कैसे दंभ
कैसे जिएं जिंदगी सहमे सहमे से हैं हम।
धुंधला गया अस्तित्व,
छिपा चांद बदलियों में जैसे
भ्रष्टाचार के छटेंगे बादल वैâसे
सत्य असत्य के झूले में झूलते हम
कैसे जिएं जिंदगी सहमे सहमे से हैं हम।
एक महामारी बढ़ा रही लाचारी
विवश सामाजिक संबंध
बना गई रिश्तों को बेबस बेचारी।
सहयोग भाईचारा कैसे निभाएं हम।
कैसे जियें जिंदगी, सहमे सहमे से हैं हम।
लाचारी बेचारी बेबसी मुर्खो का पन्ना है
सकारात्मकता से जियो यारों संतों का कहना है।
ओढ़े संतोष धैर्य की चादर,
नैराश्य से ना घिरे हम
जैसे भी जिये मस्ती में जिएंगें,
सहमे सहमे से ना रहेंगे हम।
-रागिनी उपलपवार