कदम बढ़ा रहा था, जाने क्यूं ओ घर की ओर ।
था पता उसे, नहीं है कुछ खाने को वहां, फिर भी घर की ओर ।।
एक उम्मीद भरी कदमे , चलता रहा ओ घर की ओर ।
कदम बढ़ा रहा था, जाने क्यूं ओ घर की ओर।।
पता नहीं दूरियां कितनी , हा सच में पता नहीं दूरियां कितनी,
निकल पड़ा ओ घर की ओर ।।
कदम बढ़ा रहा था ओ , जाने क्यूं ओ घर की ओर।।
रख कर कंधो पर, जिम्मेदारी भरी बोरियां कदम बढ़ा रहा था ….
दूरियों की गिनतियां दिन में बता कर चल दिए ओ घर की ओर ।
कदम बढ़ा रहा था , जाने क्यूं ओ घर की ओर