एक कदम घर की ओर
एक कदम घर की ओर
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एक कदम घर की ओर

कदम बढ़ा रहा था, जाने क्यूं ओ घर की ओर ।

था पता उसे, नहीं है कुछ खाने को वहां, फिर भी घर की ओर ।।


एक उम्मीद भरी कदमे , चलता रहा ओ घर की ओर ।

कदम बढ़ा रहा था, जाने क्यूं ओ घर की ओर।।


पता नहीं दूरियां कितनी , हा सच में पता नहीं दूरियां कितनी,

निकल पड़ा ओ घर की ओर ।।


कदम बढ़ा रहा था ओ , जाने क्यूं ओ घर की ओर।। 

रख कर कंधो पर, जिम्मेदारी भरी बोरियां कदम बढ़ा रहा था ….


दूरियों की गिनतियां दिन में बता  कर चल दिए ओ घर की ओर ।

कदम बढ़ा रहा था , जाने क्यूं ओ घर की ओर

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Written by Sahitynama

साहित्यनामा मुंबई से प्रकाशित साहित्यिक पत्रिका है। जिसके साथ देश विदेश से नवोदित एवं स्थापित साहित्यकार जुड़े हैं।

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