मैला किये है मिल कर सबने निखरा है अभी रूप सौंदर्य
ये नदियाँ ,पर्वत झरने का निखरा है अभी रूप सौंदर्य।
अरबो किये है खर्चे इन पर… किये बहुत जतन,
अब नदियाँ के पानी कहता बस कर यही जतन।
प्रदूषित पानी नदियाँ में डाला भूल गए कहर
दूर से दिखता पर्वत कहता बस रोक लो ये कहर।
जब साथ बैठ नदियाँ ,पर्वत,झरने करते होंगे बातें ,
मानव देखा सौंदर्य जब उसकी,अफ़सोस करते होंगे।
हमने रोका पर्वतो से किया सुरक्षा दुश्मनो से।
हमने दिया संजीवनी बुट्टी किया सुरक्षा अशुरों से।
देख लिया प्रकृति की शक्ति और निखरा रूप सौंदर्य
ये नदिया ,पर्वत झरने का निखरा है अभी रूप सौंदर्य।
एक छोटी सी प्रयास
साहब कुमार
मोतिहारी (बिहार)