बँटवारा रिश्तों का अकसर दिल तोड़ जाता है,
मासूम बच्चों के कोमल मन को चोट बहुत पहुँचाता है,
बड़े तो अपनी जीत पे खुशियाँ मनाते हैं, मुस्कुराते हैं,
पर ये मासूम बच्चे खुद को तो बहुत ही तन्हा पाते हैं,
अपनी मन की किसी से कह न पाते हैं,
बस अकेले बैठ कर सोचा करते हैं,
बड़े हो कर, सब ठीक करना है मुझे,
मेरे अपनों, मेरे प्यारों को फिर से जोड़ना है मुझे,
रिश्तों में पड़ी दरारों को भरना है मुझे,
पर मासूम बच्चे ये कहाँ समझ पाते हैं,
रिश्तों में पड़ी दरारों को भरना बड़ा ही मुश्किल होता है,
ज्यों-ज्यों वक़्त गुजरता जाता है,
ये और गहरा होता जाता है,
ये हक़ीक़त तो बड़े होने के बाद ही पता चलती है,
जब पता चलती है, फिर से मन पे चोट बहुत लगती है।
Faza Saaz
बंटवारा संपत्ति का होता दिल का नहीँ,
दिल पर जोर ना चलता किसी का भी.