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मिल गई मंजिल की राह

जेठ माह की तपती दुपहरी धूप में धरती में से जैसे आग उगल रही थी पेड़-पौधों तक झुलसकर दम तोड़ रहे थे आहोर में स्थित ईट भट्टे के मजदूर सिर पर सामान की गठरी बाँध, गमछे व कपड़े को मास्क की तरह मुँह पर लपेटे ,अपने स्त्री-बच्चों व परिवार को लेकर पैदल ही चल पड़े। तपती गर्म सड़को पर झुलसाती तेज हवाओं को चुनौती देते हुए अपनी मंज़िल की और अपने घर की ओर सुकून की चाह मन सन्जाए।

मार्ग के अनेक कष्टों को सहते हुए अपने छोटे-छोटे बच्चों और महिलाओं के साथ मजदूर परिवार जालोर पहुचा। *जालोर में शंकर और उनके मित्र रूपकिशोर, कल्याण, संजू, दीपक सुथार, कृष्ण और आज़ाद पढ़ाई कर रहे थे। शंकर बाजार से अपने रूम की और लौट रहे थे तो उनकी नजर आहोर से पैदल आ रहे इन मजदूर परिवार पर पड़ी।*

तो *शंकर* उनके पास पहुंचा और पूछा- कहा जा रहे हों भाई। *तब गंगाधर जी बोले-“अपने गाँव जा रहे हैं बागोड़ा और नवापुरा”* । यह सुनकर शंकर को आश्चर्य हुआ।इतनी दूर ये लोग पैदल जाने के लिए निकले हैं तब *शंकर* ने मजदूरों से पूछा-“आपका गाँव तो बहुत दूर है, आप लोग पैदल कैसे जा सकेंगे”। उदास स्वर में *उमाशंकर जी* कहने लगे-अब का दूर भईया, अपने घर तो जाना ही है ,धीरे-धीरे पहुँच जावेंगे पैदल चलते-चलते।

शंकर ने उनसे आग्रहपूर्वक निवेदन किया “”भाइयो”” आप लोग यहाँ रुककर कुछ विश्राम कर लीजिए, कुछ खा-पी लीजिए, तब तक हम कुछ व्यवस्था पर विचार करते हैं। शंकर ने उनको पास के  आश्रय स्थल ले गये। भोजन-पानी इत्यादि का प्रबंध किया और प्रेमपूर्वक उन्हें परोसा कुछ मजदूरो के पैरों में पैदल चलने के कारण छाले पड़ गए थे तो उनका भी यथोचित उपचार कर उनके विश्राम की व्यवस्था की गई।मजदूर परिवार के सभी लोग अब राहत महसूस करने लगे थे और लेट तो थकान के कारण उन्हें नींद आने लग गई।

अब शंकर व उनके मित्र रूपकिशोर, दीपक सुथार, कृष्ण, कल्याण, संजू ओर आज़ाद सभी मिलकर आगे की योजना बनाने में लग गये की इन सभी मजदुरो को बागोड़ा भेजने का प्रबंध कैसे किया जाये। शंकर ने अपने सभी मित्रों को बुलाकर बस मालिक के पास जाकर उनसे बात की ओर सारी स्थिति समझाकर उनके लिए आवश्यक अनुमति आदि की व्यवस्था की गई। शंकर को पता चला कि आज शाम को एक विशेष बस बागोड़ा जाने वाली हैं। शाम को मजदूर परिवारों को लेकर शंकर, दीपक सुथार, रूपकिशोर, कल्याण, कृष्ण, संजू व आज़ाद सभी मिलकर मजदूर परिवारों को लेकर बस स्टेशन पहुंचे।

बस में जगह मिल गई थी *शंकरमि* ने सभी को यथास्थान व्यवस्थित बिठाया। साथ मे खाने-पीने की व्यवस्था की। बस का सायरन बजा, बस चलने लगी, सभी मजदूर बस की खिड़कियों से झांकते हुए अत्यंत प्रसन्न दिख रहे थे उनकी आँखों मे कृतज्ञता के भाव थे।

*हाथ हिलाकर विदा कर रहे थे शंकर, दीपक सुथार, रूपकिशोर, कृष्ण, कल्याण, संजू व आज़ाद सभी मित्रों का मन विपदा ग्रस्त प्रवासी मजदूरों को घर भिजवाने की सेवा के अहसास से द्रवित और हर्षित हो रहे थे।* दोनों और ही भावधारा बह रही थीं और बस छुक-छुक करती चल पड़ी। अपनी मंजिल की और।

शंकर आँजणा नवापुरा धवेचा

बागोड़ा जालोर राजस्थान

BSTC दुतीय वर्ष (MATTC जोधपुर)

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Written by Shankar118

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यूपी में सब बा…!