इंसानी जंगी जुसच में तुम्हारे बिन अधूरा हूँ
दुनिया के सामने चेहरे पर हँसी लाता हूँ
ख़ूब मुस्कराता भी हूँ
पर तन्हाइयों में व़क्त जैसे
मुझे काटने को दौड़ता है
तुम्हारे साथ बिताए
वो खूबसूरत पल रह रह कर याद आते हैं
वो ख़ुशनुमा पल मुझे सताते हैं
न जाने कितनी यादें चलचित्र के रील की तरह
घूमने लगती हैं और मैं किसी थिएटर में
बैठ कर उन लम्हों को देखने लगता हूँ
तुम्हारे साथ लांग ड्राइव पर जाना
सुदूर किसी ढाबे पर तख्त पर बैठकर
प्रâाई दाल और तंदूरी रोटी खाना
मलाई वाली कड़क पत्ती वाली चाय पीना
रुक रुक कर जगह जगह सेल्फी लेना
ऐसे ही न जाने कितने साथ गुजारे पल
मोबाइल की गैलरी में कैद हैं
अकेलेपन में देखता हूँ
तो लगता है कि बगल में
आकर खड़ी हो गई हो
कह रही हो कैसे सुंदर फोटोज आए हैं
न जाने कितने फोटोज को
तुम्हारा प्रिंट कराने का वादा
क्या हुआ वो तुम्हारा इरादा
न जाने क्यूँ! कैसे! तुम सब भूल गई
तुम्हारे वादे अभी भी अधूरे
अब जल्द आ जाओ
तभी तुम्हारे इरादे और
हमारे साथ रहने के ख़्वाब होंगे पूरे…नून पर नहीं कोई बंदिशें
नापने जमीं पड़ी थोड़ी, उड़ने को नभ सारा
क्यों गुजारे एक ढर्रे पर अनमोल जीवन
रोजमर्रे के निर्वहन में खपे, अमूल्य धड़कन
अपनी कल्पना के असीम उड़ानों को
आओ चलें कोई अमूर्त नाम दें…
चुनौतियों ने खोले अवसरों के सुनहरे द्वार कई..
हम जुझारू, कर्मवीर योद्धा प्रण करें
असंभव ना कोई लक्ष्य अगर ठान लें
क्रूरता, वैमनस्य, मतभेदों को स्वाहा कर
साथ, सहयोग, एकजुटता के अभियान से
जोखिम, पराक्रम के उतंग शिखरों पर
अपनी अडिग आस्था के मानवीय जयघोषों से
पन्नों में है दर्ज जोशीले कारनामों के आगे
अद्भुत कामयाबियों के मील के पत्थर गाड़े
ना थमेंगे, ना ठिठकेंगे किंंचित ये कदम अब
हम तय करें.. अपने अछुये, अभेद्य मंजिलें
जीत-हार के खेल से परे होकर
मानवता के नये सोपानों पर, बढ़ते चलें..
एकलौ में… संगठित… हमसंगी-हमराही—!!
-लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव