इंसानी जंगी जुनून पर नहीं कोई बंदिशें
नापने जमीं पड़ी थोड़ी, उड़ने को नभ सारा
क्यों गुजारे एक ढर्रे पर अनमोल जीवन
रोजमर्रे के निर्वहन में खपे, अमूल्य धड़कन
अपनी कल्पना के असीम उड़ानों को
आओ चलें कोई अमूर्त नाम दें…
चुनौतियों ने खोले अवसरों के सुनहरे द्वार कई..
हम जुझारू, कर्मवीर योद्धा प्रण करें
असंभव ना कोई लक्ष्य अगर ठान लें
क्रूरता, वैमनस्य, मतभेदों को स्वाहा कर
साथ, सहयोग, एकजुटता के अभियान से
जोखिम, पराक्रम के उतंग शिखरों पर
अपनी अडिग आस्था के मानवीय जयघोषों से
पन्नों में है दर्ज जोशीले कारनामों के आगे
अद्भुत कामयाबियों के मील के पत्थर गाड़े
ना थमेंगे, ना ठिठकेंगे किंंचित ये कदम अब
हम तय करें.. अपने अछुये, अभेद्य मंजिलें
जीत-हार के खेल से परे होकर
मानवता के नये सोपानों पर, बढ़ते चलें..
एकलौ में… संगठित… हमसंगी-हमराही—!!
-अर्चना श्रीवास्तव